भारत के गांवों में भारत बसता है। लेकिन इन गांवों की हालत देखकर ऐसा लगता है कि गांव भारत के 100 साल पुराने पिछड़े दौर को दर्शाते हैं। इन गांवों में कोई सुख-सुविधा नहीं है, जिसकी वजह से ग्रामीण लोग बेहतर जीवन जीने के लिए शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। लेकिन इसी बीच पंजाब के 4 ऐसे गांवों की तारीफ हो रही है जिनमें शहर जैसी सारी सुविधाएं हैं। इन गांवों के निवासियों ने पेशेवर तरीके से काम करके गांव में विकास की नई कहानी लिखी है। ग्रामीणों ने चारों गांवों के विकास के लिए एक ग्रामीण सहकारी समिति बनाई है। इस समिति की मेहनत का नतीजा है कि ग्रामीणों के पास अपनी एंबुलेंस, अपना बैंक, अपनी टैक्सी, जिम, ट्रैक्टर-ट्रॉली और आधुनिक कृषि उपकरण हैं। हर घर में गोबर गैस की सुविधा भी है। इन गांवों की आबादी करीब 26 सौ है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं पंजाब के होशियारपुर के चार गांवों लांबड़ा, कांगड़ी, बग्गेवाल और डडियाना कलां की, जिन्होंने इस दिशा में एक अद्भुत मिसाल कायम की है।
सौ साल पुराने समाज में नई जान फूंकी
लांबड़ा कांगड़ी बहुउद्देशीय सहकारी सेवा समिति की स्थापना 1920 में किसानों के लाभ के लिए की गई थी। इसके वर्तमान संरक्षक के.एस. पन्नू हैं, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने गांव के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सोसायटी के सचिव और परियोजना प्रबंधक जसविंदर सिंह ने बताया कि के.एस. पन्नू ने 1999 में इस समुदाय को गोद लिया था। इसके बाद सोसायटी ने अपना ध्यान कृषि से हटाकर बहुआयामी विकास गतिविधियों की ओर लगाया। जसविंदर सिंह के अनुसार, समूह ने सबसे पहले अपने सदस्यों की सुविधा के लिए एक तिपहिया वाहन खरीदा।
बाद में पांच और तिपहिया वाहन खरीदे गए। जब फंड उपलब्ध हुआ तो एंबुलेंस खरीदी गई, जिसके लिए मामूली शुल्क लिया जाता है। जब पैसे बढ़े तो डीजल पंप लगाया गया। इससे स्थानीय लोगों ने डीजल खरीदना शुरू कर दिया। सोसायटी यहीं नहीं रुकी। स्थानीय लोगों को बागवानी के लिए बीज और नर्सरी की सुविधा दी गई। हेल्थ क्लब खोला गया। समूह के माध्यम से बैंक भी खोला गया, जहां से किसान कम ब्याज दर पर लोन ले सकते हैं। चारों बस्तियों को विकास की राह पर लाने का लक्ष्य है। गोबर गैस और ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाए गए हैं।
ग्रामीणों की मेहनत लाई रंग
सोसायटी से जुड़े सभी ग्रामीणों की मेहनत इतनी रंग लाई कि वर्ष 2015 में गोबर गैस प्लांट लगा दिया गया। इससे लोगों को आमदनी भी होने लगी। गोबर खरीदा जाने लगा। गैस खरीदने से फुर्सत मिली। गोबर गैस के लिए मात्र 250 रुपये प्रतिमाह शुल्क लिया जाता है। वर्तमान में 43 घरों में गोबर गैस की सुविधा है। गोबर गैस प्लांट से बनी खाद का उपयोग खेतों में किया जाता है। इससे सोसायटी को आमदनी भी होती है।
युवाओं की फिटनेस के लिए कम लागत वाली जिम सुविधा उपलब्ध है। महिलाओं के लिए सिलाई प्रशिक्षण केंद्र है। समूह का अपना कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र भी है। जल संरक्षण के लिए एक उपचार सुविधा भी बनाई गई है। समुदायों से प्रदूषित पानी का उपचार किया जाता है और 35 एकड़ भूमि की सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। किराए पर पांच बड़े जनरेटर भी उपलब्ध हैं।
वहीं जसविंदर सिंह का कहना है कि 73 लाख रुपये की लागत से अन्य प्रोजेक्ट पर काम होना है। आटा चक्की, मिनी शेलर, तेल चक्की और मसाला पीसने की चक्की लगाने की योजना है।
और पढ़ें: इटली से पंजाब आए बिक्रम सिंह ने प्याज की खेती से किया कमाल, किसान बनकर कमा रहे हैं लाखों रुपए