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जब आदिवासी विरोध प्रदर्शन में मारे गए 9 मुस्लिम, घटना का शिबू सोरेन के भविष्य पर पड़ा था गहरा असर

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Chirudih massacre: 23 जनवरी 1975 को झारखंड के चिरुडीह गांव में आदिवासियों और मुसलमानों के बीच हिंसक और खूनी संघर्ष हुआ था। इस घटना ने इलाके में गहरा असर छोड़ा और दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया। संघर्ष के पीछे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे शामिल थे, जिससे हालात बिगड़ गए और कई लोगों की जान चली गई। यह घटना झारखंड के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इस खूनी संघर्ष ने झारखंड की राजनीति का रंग बदल दिया। इस घटना के बाद शिबू सोरेन ने अपनी राजनीति की नींव रखी और बाद में केंद्रीय मंत्री बने। आइए आपको बताते हैं कि इस घटना ने शिबू सोरेन (Shibu Soren’s political journey) के भविष्य को कितनी गहराई से प्रभावित किया।

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23 जनवरी 1975, चिरूडीह गांव, जामताड़ा- Chirudih massacre case

मुहर्रम के दिन बिहार के दुमका जिले के चिरुडीह गांव में मुसलमान जुलूस और शोक दिवस की तैयारी कर रहे थे। आज यह गांव झारखंड के जामताड़ा जिले का हिस्सा है। इस बीच, सैकड़ों आदिवासी लोग तीर-धनुष लहराते हुए चिरुडीह गांव के पास एक मैदान में एकत्र हुए थे। सूदखोरी के खिलाफ उनका विरोध उनका मुख्य लक्ष्य था। जनजाति ने साहूकारों का विरोध किया क्योंकि वे ब्याज न चुकाने पर उनकी जमीनें ले लेते थे।

Chirudih massacre Shibu Soren
Source: Google

वहां 31 साल का एक युवक आदिवासियों का नेतृत्व कर रहा था और उसने घोषणा की, ‘हम साहूकारों की फसल काटेंगे।’ आदिवासी इस आह्वान का पालन करते हुए साहूकारों की फसल काटने निकल पड़े। जैसे ही यह खबर साहूकारों तक पहुंची, वे अपने हथियारों के साथ चिरुडीह और आसपास के गांवों में इकट्ठा होने लगे।

गांव में लगी आग

इस बीच, कुछ लोग आदिवासी सभा में पहुंचे और बताया कि कुछ लोगों ने उनके गांव में आग लगा दी है और उसे लूट रहे हैं। इस खबर से आदिवासी भड़क गए और वे चिरुडीह की ओर भाग गए। यहीं से एक भयंकर लड़ाई शुरू हो गई। साहूकारों ने बंदूकें निकाल लीं और आदिवासियों ने धनुष-बाण निकाल लिए। दोनों समूहों के बीच हिंसा हुई। हर तरफ चीख-पुकार मच गई और घरों में आग लग गई। स्थिति को संभालने के लिए घंटों मशक्कत करने के बाद आखिरकार पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा।

रातों-रात हीरो बने शिबू सोरेन- Shibu Soren’s political journey

शाम तक हिंसा थम गई, लेकिन 11 शव मिले- इनमें से 9 मुस्लिम थे। इसी दौरान आदिवासियों का नेता बना 31 वर्षीय युवक रातों-रात हीरो बन गया। उसका नाम था शिबू सोरेन (Shibu Soren’s political journey), जिसे बाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का मुखिया बना दिया गया। वह मनमोहन सरकार में कोयला मंत्री बने, तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे और आठ बार सांसद रहे। हालांकि चिरुडीह की घटना के कारण उन्हें केंद्रीय मंत्री रहते हुए फरार होना पड़ा और जेल भी जाना पड़ा।

Chirudih massacre Shibu Soren
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शिबू सोरेन बने आदिवासियों के मसीहा

इस घटना ने शिबू सोरेन को न केवल आदिवासियों का मसीहा बना दिया, बल्कि राजनीति में भी उन्हें एक अहम शख्सियत बना दिया। हालांकि, बाद में यह घटना उनके लिए एक काला अध्याय बनकर सामने आई, जिसमें उन्होंने पुलिस की नजरों से बचते हुए अपनी जिंदगी छुपकर गुजारी। आज भी जामताड़ा और आसपास के गांवों के लोग इस घटना को याद करते हैं। आदिवासियों और महाजनों के बीच हुए इस संघर्ष ने झारखंड के इतिहास में एक गहरी छाप छोड़ी है, जो न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करने वाली घटना बन गई।

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