Sindhi vs Sikh Controversy: पाकिस्तान में सिंध प्रांत हिंदुओं की बड़ी आबादी का घर है। सिंधी हिंदुओं की परंपरा और धर्म हिंदू, सिख और सूफी इस्लाम का एक अनोखा मिश्रण है। यह सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता सिंध के इतिहास और वहाँ के सामाजिक ताने-बाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। खासतौर पर सिख धर्म और गुरु नानक देव के प्रति सिंधी हिंदुओं की श्रद्धा उन्हें भारत और पाकिस्तान के अन्य हिंदुओं से अलग बनाती है।
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सिंध में हिंदू समुदाय का इतिहास और आंकड़े- Sindhi vs Sikh Controversy
1998 की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान में 2.3 मिलियन हिंदू थे। हालांकि, पाकिस्तान हिंदू परिषद के मुताबिक यह संख्या 8 मिलियन तक हो सकती है। इनमें से 93% हिंदू सिंध में रहते हैं। इनका धर्म और परंपराएं हिंदू धर्म, सिख धर्म, और सूफीवाद का अनूठा संयोजन हैं।
ब्रिटिश युग में, रिचर्ड एफ. बर्टन ने सिंध में हिंदुओं के धर्म को “विधर्मी सिख” बताया। उनके अनुसार, सिंधी हिंदू धर्म और सिख धर्म का ऐसा मिश्रण करते थे कि उन्हें अलग-अलग पहचानना मुश्किल था।
गुरु नानक और सिंध- History of Sindhi and Sikh Communities
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव (Guru Nanak Dev) ने अपने यात्रा काल में सिंध का दौरा किया। जन्मसाखी परंपरा में गुरु नानक के सिंध में आने का उल्लेख है। शिकारपुर और सुक्कुर में उनकी सभाओं और प्रवचनों का ज़िक्र मिलता है। उनकी शिक्षाओं ने सिंधी समुदाय पर गहरी छाप छोड़ी।
गुरु नानक के पुत्र, बाबा श्री चंद, और उदासी पंथ के अनुयायियों ने भी सिंध में गुरबानी का प्रचार किया। उदासी पंथ की धार्मिक गतिविधियां सिंध में प्रमुख थीं।
सिख धर्म का सिंधी हिंदुओं पर प्रभाव
सिंध में ब्रिटिश कब्जे से पहले, हिंदुओं को अपनी धार्मिक गतिविधियों में बाधाओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन सिख धर्म के उदय ने हिंदुओं को आत्मविश्वास और धार्मिक स्वतंत्रता का अनुभव कराया। सिंधी हिंदू, जो मुख्यतः व्यापारी समुदाय से थे, सिख धर्म के नैतिक और धार्मिक पहलुओं को अपनाने लगे।
ब्रिटिश शासन के दौरान, पंजाब के सिखों ने सिंध में कई गुरुद्वारे बनवाए। महाराजा रणजीत सिंह ने हैदराबाद (सिंध) में गुरुद्वारे के निर्माण के लिए एक प्रति गुरु ग्रंथ साहिब भिजवाई थी। हालांकि, 1947 के विभाजन के बाद अधिकांश सिख और हिंदू सिंध छोड़कर भारत चले गए।
सिंध में गुरसिख और नानकपंथी परंपरा
सिंध के गुरसिख और नानकपंथी परंपरा के अनुयायी गुरु नानक और गुरु ग्रंथ साहिब में गहरी आस्था रखते हैं। वे मूर्तिपूजा नहीं करते और अधिकांशतः शाकाहारी हैं। इनकी परंपराएं हिंदू और सिख संस्कारों का संयोजन हैं।
सिंधी हिंदुओं की वैश्विक उपस्थिति
भारत, खासकर गुजरात और महाराष्ट्र में, विभाजन के बाद आए सिंधी समुदाय ने सिख परंपराओं को जीवित रखा। पिंपरी (पुणे), इंदौर, ग्वालियर और गुजरात के कई शहरों में गुरुद्वारों का निर्माण किया गया।
सिंधी और सिखों में विवाद की जड़ें
- गुरु नानक और धार्मिक मान्यता
सिंधी समुदाय गुरु नानक को अपना आध्यात्मिक मार्गदर्शक मानता है और उनके विचारों को अपने धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा मानता है। सिख धर्म गुरु नानक को अपने पहले गुरु के रूप में मान्यता देता है। हालांकि, सिख समुदाय गुरु ग्रंथ साहिब को ही धार्मिक मार्गदर्शन का अंतिम स्रोत मानता है, जबकि सिंधी समुदाय का गुरु ग्रंथ साहिब के प्रति वैसा रुख नहीं है। - पूजा और रीति-रिवाजों में अंतर
सिंधी और सिख समुदायों के पूजा पद्धति में बड़ा अंतर है। सिंधी लोग हिंदू रीति-रिवाजों के साथ-साथ सिख गुरुओं को मानते हैं। वे गुरुद्वारों के अलावा अपने मंदिरों में भी पूजा करते हैं, जो सिख समुदाय के साथ उनके मतभेद का कारण बनता है। - गुरुद्वारों पर अधिकार का विवाद
कई बार गुरुद्वारों पर सिंधी और सिख समुदायों के बीच अधिकार को लेकर विवाद हुआ है। सिंधी समुदाय का दावा है कि वे गुरु नानक के अनुयायी हैं और गुरुद्वारों में उनकी भी समान भूमिका होनी चाहिए।
सिंधी और सिखों में इतिहास में विवाद के उदाहरण
- सिंधी विस्थापन और सिख नेतृत्व का विवाद
1947 के विभाजन के बाद, सिंधी समुदाय ने भारत में विस्थापन का सामना किया। उनके धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र छिन गए। कई सिंधी गुरुद्वारों में शामिल हुए, लेकिन उनके पूजा पद्धति सिखों से अलग होने के कारण विवाद उभरे। - धार्मिक आयोजनों में असहमति
सिंधी और सिख धार्मिक आयोजनों में भी कई बार असहमति देखी गई। उदाहरण के लिए, गुरु पर्व जैसे आयोजनों में सिंधी अपने तरीके से पूजा करते हैं, जिसे सिख परंपराओं के विपरीत माना जाता है। - गुरुद्वारा प्रशासन में भागीदारी
भारत में कई गुरुद्वारों के प्रशासन को लेकर सिंधी और सिख समुदायों में टकराव हुए हैं। सिंधी समुदाय की मांग रहती है कि उन्हें भी गुरुद्वारों के प्रबंधन में भागीदारी दी जाए।
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