Sikhism in Norway: नॉर्वे में सिख समुदाय की उपस्थिति पिछले कुछ दशकों में काफी बढ़ी है, और अब वहां लगभग 5000 सिख बस चुके हैं। इनमें से अधिकांश सिख ओस्लो में रहते हैं, जहां गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव जी और गुरुद्वारा सिख संगत जैसे प्रमुख धार्मिक केंद्र सिख धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था और सेवा का केंद्र बने हुए हैं। नॉर्वे में सिखों की पहली दस्तक 1970 के दशक में हुई थी, जब पंजाब में ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद उत्पन्न तनाव और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ हुई हिंसा ने उन्हें विदेशों में स्थायित्व की ओर प्रेरित किया। इस समय के बाद नॉर्वे में सिखों की संख्या में इज़ाफा हुआ।
नॉर्वे में सिखों का योगदान- Sikhism in Norway
SikhiWiki की रिपोर्ट के अनुसार, ओस्लो के अलावा ड्रामेन नामक शहर में भी सिखों की महत्वपूर्ण उपस्थिति है, जो ओस्लो से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां के लियर शहर में, जो ड्रामेन नगर निगम का हिस्सा है, उत्तर यूरोप का सबसे बड़ा गुरुद्वारा 11 अप्रैल 2010 को स्थापित किया गया था। यह गुरुद्वारा नॉर्वे में सिख धर्म के प्रसार और समुदाय के धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गया है।
सिख समुदाय नॉर्वे की राजनीति में भी सक्रिय रूप से भाग ले रहा है। कई सिखों को स्थानीय सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया है। इसके अलावा, सिख समुदाय के सदस्य चिकित्सा, इंजीनियरिंग, और तकनीकी सेवाओं जैसे पेशेवर क्षेत्रों में भी काम कर रहे हैं।
गुरुद्वारों की भूमिका
ओस्लो में दो प्रमुख गुरुद्वारे हैं – गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव जी और गुरुद्वारा सिख संगत, जो न केवल धार्मिक गतिविधियों का आयोजन करते हैं, बल्कि सिख समुदाय के लोगों के लिए एक सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र के रूप में भी कार्य करते हैं। गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव जी ओस्लो के अलनाब्रु इलाके में स्थित है और यहां हर दिन और सप्ताह के नियमित कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिनमें कीर्तन, प्रार्थनाएं, धर्म उपदेश और गुरु का लंगर जैसी गतिविधियां शामिल हैं। इस गुरुद्वारे में सिख धर्म से जुड़े कार्यशालाओं और व्याख्यानों का आयोजन भी होता है, जिन्हें सिख समुदाय के युवा नियमित रूप से अटेंड करते हैं।
इंटरफेथ सेंटर का गठन
नॉर्वे में धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए 8 नवंबर 2001 को एक ऐतिहासिक समारोह हुआ था, जिसमें विभिन्न धर्मों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने ओस्लो घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इस सम्मेलन में बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, इस्लाम, यहूदी धर्म, सिख धर्म, मानवतावाद और विभिन्न ईसाई संप्रदायों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। यह एक महत्वपूर्ण कदम था, जो नॉर्वे में धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उठाया गया था।
राजनीतिक क्षेत्र में सिखों की भूमिका
नॉर्वे में भारतीय मूल के लोगों की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी है। बालविंदर कौर, जो एक पंजाबी महिला हैं, ओस्लो कम्यून (नगर पालिका) की सदस्य हैं। उन्होंने सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी से चुनाव लड़ा था और 1980 में अपने परिवार के साथ नॉर्वे आई थीं। वे अब नॉर्वे में भारतीय समुदाय के लिए काम करने की दिशा में सक्रिय रूप से योगदान दे रही हैं। नॉर्वे में भारतीय मूल के लोग अब स्थानीय राजनीतिक संस्थाओं में अपनी आवाज उठा रहे हैं और विभिन्न स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है।
नॉर्वे में अब तक आठ भारतीय मूल के लोग विभिन्न स्थानीय निकायों में चुनकर आए हैं, जिनमें से सात पंजाबी हैं और एक हैदराबाद से संबंधित हैं। इसके अलावा, इंडियन वेलफेयर सोसाइटी ऑफ नॉर्वे का नेतृत्व एक सिख, सुरजीत सिंह कर रहे हैं। हालांकि, अभी तक नॉर्वे में भारतीय मूल का कोई सांसद नहीं है, लेकिन स्थानीय राजनीति में भारतीयों की बढ़ती भागीदारी दर्शाती है कि आने वाले समय में ये समुदाय राजनीतिक तौर पर भी और मजबूत हो सकता है।