Sikhism in Indonesia: इंडोनेशिया में सिख समुदाय एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण धार्मिक अल्पसंख्यक है। वर्तमान में यहां 10,000 से 15,000 के बीच सिख निवास करते हैं। हालांकि, सरकारी मान्यता न मिलने के कारण उनकी सही जनसंख्या को लेकर निश्चित आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। सिख धर्म यहां अपने ऐतिहासिक संबंधों, व्यापारिक गतिविधियों और सामुदायिक सहयोग के कारण एक विशिष्ट पहचान रखता है।
प्राचीन काल और प्रारंभिक इतिहास (Sikhism in Indonesia)
स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, गुरु नानक देव जी ने अपने उदासियों (यात्राओं) के दौरान सुमात्रा द्वीप की यात्रा की थी। हालांकि, इस दावे का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। 1828 में पश्चिमी बोर्नियो स्थित लांगफैंग गणराज्य के एक रिकॉर्ड में दो पगड़ीधारी भारतीयों, नांचा सिंह और मीका सिंह, का उल्लेख मिलता है, जो उस समय राज्य की सेना के सलाहकार थे। यह संभवत: इंडोनेशिया में सिख उपस्थिति का पहला दस्तावेजी प्रमाण हो सकता है।
ब्रिटिश और डच औपनिवेशिक काल
1870 के दशक में सिखों का इंडोनेशिया में आगमन शुरू हुआ। यह प्रवासन मुख्य रूप से पिनांग (मलेशिया) और अंडमान द्वीपसमूह के माध्यम से हुआ। प्रारंभिक वर्षों में, सिख समुदाय के अधिकतर लोग व्यापार, सुरक्षा सेवाओं और टैक्सी संचालन में संलग्न थे। कई सिख तंबाकू और रबर बागानों में भी काम करते थे।
19वीं सदी के अंत तक, मेडान (सुमात्रा) में De Javasche Bank की एक शाखा स्थापित हुई, जहां सिख सुरक्षा गार्ड के रूप में कार्यरत थे। इसके बाद, पुलिस बल और सेना में भी सिखों की भर्ती शुरू हुई। ब्रिटिश प्रशासन ने 1894 में एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि डच सरकार सिखों को बेहतर वेतन देकर अपनी सेना और पुलिस में भर्ती कर रही थी, जिससे ब्रिटिश प्रशासन को चिंता हुई। हालांकि, ब्रिटिश सिखों के इस प्रवासन को रोक नहीं पाए।
20वीं सदी में सिख समुदाय का विस्तार
1900 से 1910 के बीच, सिखों का प्रवासन जकार्ता और सुराबाया की ओर बढ़ा। यहां उन्होंने व्यापार और सुरक्षा क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत की। 1920 तक, मेडान और बिनजाई में सिख गुरुद्वारों की स्थापना की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। 1925 में, जकार्ता में पहला गुरुद्वारा (तानजुंग प्रियोक) स्थापित किया गया।
खेल उद्योग में भी सिखों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। Bir & Co., Nahar Sports, Hari Brothers जैसी कंपनियां इंडोनेशिया में खेल उपकरणों के उत्पादन में अग्रणी बनीं। 1930 तक, इंडोनेशिया में 5,000 पंजाबी सिख बस चुके थे।
द्वितीय विश्व युद्ध और स्वतंत्रता संग्राम में सिखों की भूमिका
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, इंडोनेशिया के सिख समुदाय ने भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में सेवा दी। जापानी कब्जे के दौरान, सिखों ने जापानी सेना और नौसेना के साथ अनुबंध प्राप्त किए। हालांकि, कई सिख ब्रिटिश और मित्र देशों की सेनाओं के साथ भी जुड़े रहे और जापानियों के खिलाफ युद्ध में शामिल हुए।
इंडोनेशियाई स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, सिखों ने स्वतंत्रता सेनानियों के पक्ष में लड़ाई लड़ी। कई सिखों ने डच उपनिवेशवादियों के खिलाफ लड़ते हुए इंडोनेशियाई सेना में शामिल हो गए। सिख समुदाय की भूमिका के कारण, स्वतंत्रता के बाद इंडोनेशियाई सरकार ने कई सिखों को सम्मानित किया।
स्वतंत्रता के बाद सिख समुदाय
1949 में जब इंडोनेशिया ने अपनी संप्रभुता प्राप्त की, तो अधिकांश सिख समुदाय वहीं रहने का निर्णय लिया। 1953 में, मेदान में गुरुद्वारा श्री गुरु अर्जन देव जी स्थापित किया गया। 1954 में, जकार्ता में पसार बारु गुरुद्वारा बनाया गया, जिसे सिंधी व्यवसायियों ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया।
आधुनिक काल में सिख धर्म की स्थिति
1990 के दशक में, सिख समुदाय के आंतरिक संघर्षों के कारण मेदान के खालसा स्कूल को बंद करना पड़ा। 2010 में, वर्ल्ड सिख काउंसिल – अमेरिका रीजन (WSC-AR) ने अमेरिका-इंडोनेशिया द्विपक्षीय अंतरधार्मिक सम्मेलन में भाग लिया। 2015 में, इंडोनेशिया में सिख धर्म की सर्वोच्च परिषद की स्थापना हुई।
इंडोनेशिया में सिख धर्म की आधिकारिक मान्यता
इंडोनेशिया सरकार द्वारा सिख धर्म को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी गई है, इसलिए कानूनी रूप से सिखों को हिंदू धर्म के अंतर्गत गिना जाता है। इससे सिख समुदाय को अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, सिख गुरुद्वारों और सामाजिक संगठनों के माध्यम से समुदाय ने अपनी संस्कृति और परंपराओं को बनाए रखा है।
इंडोनेशिया में प्रमुख गुरुद्वारे
- तानजुंग प्रियोक गुरुद्वारा (1925, जकार्ता)
- यायासन मिशन गुरुद्वारा (1930, मेदान)
- गुरुद्वारा श्री गुरु अर्जन देव जी (1953, मेदान)
- पसार बारु गुरुद्वारा (1954, जकार्ता)
- गुरुद्वारा गुरु नानक (दक्षिण जकार्ता, 2001 में स्थानांतरित)
इंडोनेशिया में सिख धर्म का इतिहास संघर्ष, व्यापार, सैन्य सेवा और धार्मिक सहिष्णुता की गाथा है। यह समुदाय, जिसने औपनिवेशिक युग से लेकर आधुनिक काल तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, आज भी अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए संघर्षरत है।
और पढ़ें: Sikhism in Germany: जर्मनी में सिखों का बढ़ता प्रभाव, धार्मिक अल्पसंख्यक से मजबूत समुदाय तक का सफर