23 मार्च 1931 की तारीख भारत के इतिहास में काले अक्षरों में लिखी गई है। यह वो दिन है जब देश के वीर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी पर लटकाया गया था। जिस जगह पर उन्हें फांसी दी गई थी, वो जगह आज भी मौजूद है, लेकिन भारत में नहीं बल्कि पाकिस्तान में है। पाकिस्तान में इस जगह के सामने एक मस्जिद बनाई गई है। आइए आपको बताते हैं कि आज पाकिस्तान में मौजूद भगत सिंह की आखिरी निशानियां किस हालत में हैं।
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भगत सिंह और पाकिस्तान का रिश्ता
पाकिस्तान से भगत सिंह का रिश्ता काफी मजबूत है। खटकर कलां का पंजाबी गांव। इसे भारत में भगत सिंह का पैतृक गांव माना जाता है। लेकिन असल में उनका जन्म यहां नहीं हुआ था। भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। बंगा गांव लायलपुर शहर में है। यह शहर अब पाकिस्तान के नक्शे पर नहीं दिखेगा। इस शहर का नाम 1977 में सऊदी अरब के राजा फैसल के नाम पर बदलकर फैसलाबाद कर दिया गया। वहीं, खटकर कलां को पैतृक गांव का दर्जा एक और वजह से मिला है। भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह का जन्म खटकर कलां में हुआ था। भगत सिंह के दादा अर्जुन सिंह 1900 में अपने परिवार के साथ खटकर कलां से लायलपुर चले गए थे। भगत सिंह के माता-पिता उनकी फांसी के बाद वापस खटकर कलां चले गए। और आजादी के बाद उनके परिवार के बाकी सदस्य भी यहीं आकर बस गए।
जानें क्यों दी गई थी भगत सिंह को फांसी
सबसे पहले यह जान लेते हैं कि भगत सिंह को फांसी क्यों दी गई? दरअसल देश की आज़ादी के लिए भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ़ मोर्चा खोला था। 1928 में लाहौर में अंग्रेज़ जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा मामले की सुनवाई के लिए स्थापित विशेष न्यायाधिकरण ने तीनों को मौत की सज़ा सुनाई थी। 23 मार्च 1931 को तीनों को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया। इस मामले में सुखदेव को भी दोषी पाया गया था।
जानें कहां दी गई थी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी
23 मार्च को ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका और “नाटकीय हिंसा” के लिए मौत की सज़ा दी थी। 23 मार्च को, तीनों को पाकिस्तान की लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी थी। आज भी, राष्ट्र उनके योगदान का सम्मान करता है, और आने वाली पीढ़ियों को किताबों, कहानियों, नाटकों, फिल्मों और अन्य मीडिया के माध्यम से उनके बलिदानों के बारे में बताया जाता है।
एक दिन पहले ही दे दी गई थी भगत सिंह को फांसी
सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के मामले में भगत सिंह को फांसी देने की तारीख 24 मार्च तय की गई थी। लेकिन इस दिन को अंग्रेजों के उस खौफ के तौर पर भी याद किया जाना चाहिए, जिसके चलते इन तीनों को 11 घंटे पहले ही फांसी पर लटका दिया गया। फांसी पर जाते समय भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु मस्ती में गाना गा रहे थे।
क्या थे भगत सिंह के आखिरी शब्द
फांसी के समय मौजूद चुनिंदा अधिकारियों में यूरोप के डिप्टी कमिश्नर भी शामिल थे। जीतेंद्र सान्याल की किताब भगत सिंह में लिखा है कि फांसी से कुछ क्षण पहले भगत सिंह ने मजिस्ट्रेट को संबोधित करते हुए कहा था, “मिस्टर मजिस्ट्रेट, आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए कैसे फांसी पर चढ़ते हैं।”
भगत सिंह की आखिरी निशानियां
लेखक पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में भगत सिंह के आखिरी निशानों के बारे में विस्तार से बताया है। कुलदीप नैयर ने शहीद भगत सिंह पर एक किताब लिखी है जिसका नाम है “शहीद भगत सिंह, क्रांति के प्रयोग (The Martyr Bhagat Singh Experiments in revolution)। इस किताब की प्रस्तावना में उन्होंने स्पष्ट किया है कि जिस जगह पर भगत सिंह को फांसी दी गई थी, उसकी अब क्या स्थिति है।
लेखक के अनुसार, “वह स्थान जहाँ भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दी गई थी, अब खंडहर बन चुका है। उनकी कोठरियों की दीवारें ढहकर खेत में तब्दील हो चुकी हैं। क्योंकि वहाँ का प्रशासन नहीं चाहता कि भगत सिंह की कोई निशानी वहाँ अच्छी हालत में बची रहे।”
कोठरियों के सामने खड़ी कर दी मस्जिद
कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक भगत सिंह, क्रांति के प्रयोग में विस्तार से बताया है कि जिस स्थान पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी, वह अब बहुत बुरी स्थिति में है। इसके अलावा, जिन कोठरियों में उन्हें रखा गया था, उनकी दीवारें गिर गई हैं और वहाँ एक घर बन गया है। अगर कुलदीप नैयर की किताब पर यकीन किया जाए, तो भगत सिंह और उनके साथियों को जिन कोठरियों में रखा गया था, उनके सामने शादमा कॉलोनी नाम की एक कॉलोनी बनाई गई है। हालाँकि पुलिस मुख्यालय अभी भी वहाँ है, लेकिन वहाँ भगत सिंह के बारे में कोई नहीं जानता।
कुलदीप नैयर कहते हैं, “जब हम यहां पहुंचे तो इस जगह पर कुछ पुलिस मुख्यालय बचे थे। लेकिन जेल को तोड़कर कॉलोनी बनाई जा रही थी। मैंने शादमा के कुछ लोगों से पूछा कि क्या वे भगत सिंह को जानते हैं? उनमें से ज़्यादातर के पास अस्पष्ट जानकारी थी।”
जिस जगह दी गई थी फांसी, उसे चौराहे में बदल दिया गया
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान सरकार भगत सिंह की फांसी से जुड़ी हर याद को मिटाना चाहती है। नैयर की किताब के मुताबिक, जिस जगह पर भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी देने संबंधित तख्ता था, वहां अब चौराहा बन गया है। गाड़ियों की धूल में ये तख्ते कब और कहां खो गए, किसी को पता नहीं।
आजादी के आंदोलन में बस एक पंजाबी मरा था!
कुलदीप नैयर के अनुसार, 1980 के दशक में लाहौर में एक विश्व पंजाबी सम्मेलन आयोजित किया गया था। जिस सभागार में यह आयोजित किया गया था, वहां भगत सिंह की केवल एक तस्वीर लगी हुई थी। दूसरी ओर, कई पंजाबियों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। लेखक का दावा है कि जब उन्होंने पूछा कि वहां केवल एक ही तस्वीर क्यों लटकी हुई है, तो उन्हें बताया गया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान केवल एक पंजाबी की मृत्यु हुई थी।