सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी ने अपने पूरे जीवन में कई लोगों के जीवन में सुधार किया। वे जहां भी जाते, वहां के लोगों को कोई न कोई अच्छी सीख जरूर देते। यही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य था। वह लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते थे। हालांकि, वह यह सब कैसे करते थे, इस बारे में सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने अपने एक उपदेश में बताया है। अपने विचारों और व्यक्तित्व से लाखों लोगों की भटकी जिंदगी को सकारात्मक दिशा देने वाले सद्गुरु अक्सर अपने उपदेशों में भारत के प्रभावशाली लोगों की कहानियां सुनाकर लोगों को प्रेरित करते हैं। 03 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर में जन्मे सद्गुरु बचपन से ही एक अलग सोच रखते थे और जो कुछ भी देखते थे उसके बारे में चिंतन करने लगते थे। आध्यात्मिकता से उनका जुड़ाव बहुत पहले ही शुरू हो गया था। इसलिए बड़े होकर उन्होंने लोगों को आध्यात्मिकता से जोड़ने का फैसला किया। इसी कड़ी में सद्गुरु ने अपने उपदेश में बाबा नानक के बारे में एक ऐसी घटना साझा की, जिसे जानने के बाद आपका जीवन को देखने का नजरिया बदल जाएगा।
और पढ़ें: ‘डॉ. अंबेडकर की पूजा करना बंद करें’, सद्गुरु ने अंबेडकर को लेकर ऐसा क्यों कहा?
गुरु नानक पर सद्गुरु के विचार
सद्गुरु ने गुरु नानक के बारे में कहा कि वह बहुत दयालु और साहसी थे। एक बार वह एक गांव से दूसरे गांव तक पैदल यात्रा कर रहे थे और लोगों को उपदेश दे रहे थे। इसी दौरान वह एक बहुत अमीर व्यक्ति के घर मेहमान बनकर पहुंचे। कुछ दिनों के बाद जब वह जाने लगे तो उन्होंने उस अमीर आदमी को एक सुई दी और कहा – ‘इसे अपने पास रखो। फिर जब कभी तुम मुझसे मिलो तो उसे मुझे लौटा देना।’ गुरु नानक के जाने के बाद अमीर आदमी ने यह बात अपनी पत्नी को बताई। यह सब जानकर पत्नी बहुत क्रोधित हुई और अपने पति से बोली, ‘तुमने गुरु से यह सुई क्यों ली? वह बूढ़े हो चुके हैं। मान लीजिए कि वह कल को नहीं रहे, तो आप उन्हें यह सुई कैसे लौटाएंगे? उनके जैसे व्यक्ति की सेवा करना सही है, लेकिन उनसे कुछ भी लेना गलत है। यदि उनका निधन हो गया तो आप सदैव उसके ऋणी रहेंगे। तुम उस एक कर्म को मिटाने में असमर्थ रहोगे और उसकी वजह से तुम्हें हजारों जन्म लेने होंगे। यह अच्छी बात नहीं है। किसी तरह से उन्हें ढूंढो और तुरंत यह सुई उन्हें वापस कर आओ।’
गुरु कि खोज में निकला धनी आदमी
सद्गुरु आगे बताते हैं कि इस तरह वह अमीर आदमी अपनी पत्नी की बात मानकर गुरु की तलाश में निकल पड़ा। दो महीने बाद उसने गुरु नानक को ढूंढ लिया और कहा – ‘गुरुजी, मैं यह सुई अपने पास नहीं रखना चाहता। आप बूढ़े हैं। यदि आप मर जाओ तो मैं इस सुई को अपने साथ स्वर्ग नहीं ले जा सकता और वहां आपको दे नहीं सकता। मैं सदैव आपका ऋणी रहूंगा।’ आदमी कि बात सुनकर गुरु बोले, ‘तो तुम जानते हो कि इस सुई को स्वर्ग में अपने साथ नहीं ले जा सकते?’ आदमी बोला – ‘बिल्कुल’।
गुरु ने फिर कहा, ‘अगर तुम एक सुई तक अपने साथ लेकर नहीं जा सकते तो उस धन दौलत का क्या जो तुम इक्कठा कर रहे हो, उसे भी तो तुम लेकर नहीं जा पाओगे।’
धनी आदमी को मिली सीख
उस धनवान व्यक्ति को गुरु से सीख मिल गयी। वह उनके पैरों पर गिर पड़ा। घर लौटकर उस व्यक्ति ने अपने पास केवल उतना ही धन रखा जिसकी उसे अपने परिवार के लिए आवश्यकता थी। इसके बाद उसने खुद को उन कार्यों के लिए समर्पित कर दिया जिनकी समाज को जरूरत थी।
सद्गुरु कहते हैं कि हर इंसान को अपने मन में यह तय करना होगा कि उसकी जरूरतें क्या हैं। उसे जितनी जरूरत है उतना लेना चाहिए और इसके अलावा अपनी क्षमताओं का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होता, मनुष्य स्वयं और इस संसार के लिए दुर्भाग्यशाली है। इस धरती पर विनाश का असली कारण भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी नहीं हैं, इसका असली कारण इंसानों की अज्ञानता है। अज्ञान ही एकमात्र विपत्ति है और इसका एक ही समाधान है और वह है ज्ञान।
और पढ़ें: 84 दंगों की कहानी पंजाबी सिंगर मलकीत सिंह की जुबानी, किस्सा याद कर आज भी कांप जाती है सिंगर की रूह