Minipunjab in Rajasthan Alfanagar: राजस्थान के कोटा जिले में स्थित अल्फानगर को “मिनी पंजाब” के नाम से जाना जाता है। यह गांव अपनी पंजाबी संस्कृति, समृद्ध कृषि और जीवनशैली के कारण पूरे क्षेत्र में अद्वितीय है। 1947 में विभाजन के दौरान पाकिस्तान से पलायन करने वाले पंजाबी परिवारों ने इस गांव को बसाया और इसे बंजर भूमि से सोना उगलने वाली भूमि में बदल दिया। आइए आपको बताते हैं राजस्थान के अंदर बसे इस छोटे से “पंजाब” की कहानी
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अल्फानगर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-Mini punjab in Rajasthan Alfanagar
भारत के विभाजन के बाद लाखों पंजाबी परिवार पाकिस्तान से भारत में आकर बस गए। राजस्थान सरकार ने इन परिवारों को बसने के लिए कोटा जिले का अल्फानगर क्षेत्र आवंटित किया। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, अटवाल परिवार 1969 में सबसे पहले यहाँ बसने वाला परिवार था और उसके बाद अन्य पंजाबी परिवार यहाँ आने लगे (Sikh Population in Alfanagar)। उन्होंने बंजर और पथरीली ज़मीनें खरीदीं और उन्हें उपजाऊ बनाने के लिए दिन-रात काम किया।
अल्फानगर के शुरुआती निवासियों में से एक निर्मल सिंह अटवाल बताते हैं कि जब वे यहाँ आए तो यह इलाका जंगल जैसा था। खेतों में बबूल के पेड़ और गहरी खाईयाँ थीं। उनके 4-5 परिवारों ने 1250 बीघा ज़मीन खरीदी और उसे उपजाऊ बनाना शुरू किया। आज यह ज़मीन राजस्थान की सबसे उपजाऊ ज़मीनों में गिनी जाती है।
कृषि में क्रांति: मेहनत और समर्पण का नतीजा
आज अल्फानगर (Sikh in Alfanagar) की धरती धान, गेहूं और सोयाबीन जैसी फसलों के लिए मशहूर है। यहां उगाए जाने वाले धान और गेहूं की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि इसे नाम से बेचा जाता है।
- धान की खासियत: अल्फानगर का धान अपने स्वाद और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है।
- गेहूं की मांग: बड़ी कंपनियों ने यहां गेहूं के बीज की गुणवत्ता को प्रमाणित किया है।
हरियाणा से आकर 2009 में यहां बसे संजय चौधरी ने यहां 100 बीघा जमीन खरीदी। उन्होंने बताया कि इस जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए 14,000 ट्रॉली मिट्टी डालनी पड़ी। इससे पता चलता है कि यहां शुरुआती किसानों ने कितनी मेहनत की होगी।
डेयरी उत्पादन में भी आगे
अल्फानगर न केवल कृषि बल्कि डेयरी उत्पादन में भी आगे है।
- दूध उत्पादन:
हर घर में गाय-भैंस हैं और कुछ परिवारों में 100-200 से भी ज्यादा पशु हैं। इसके अलावा यहां रोजाना करीब 4,000 लीटर दूध का उत्पादन होता है। इसी वजह से यह गांव कोटा संभाग के शीर्ष दूध उत्पादक गांवों में गिना जाता है।
- बाजार में सीधी बिक्री:
कोटा डेयरी के आंकड़ों के अनुसार जिले में रोजाना 1 लाख लीटर दूध आता है, जिसमें से 60 हजार लीटर बूंदी जिले से आता है। हालांकि अल्फानगर का दूध डेयरी की बजाय सीधे बाजार में बिकता है, जिससे किसानों को ज्यादा मुनाफा होता है।
500 लोगों को मिला रोजगार
अल्फानगर के सिख किसानों ने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति सुधारी, बल्कि आसपास के गांवों को भी रोजगार मुहैया कराया।
- लक्ष्मीपुरा, भवानीपुरा, मालियों की मुरादी और भीलों की मुरादी जैसे गांवों के करीब 500 लोगों को रोजगार मिलता था।
- हालांकि नरेगा योजना लागू होने के बाद मजदूर मिलना थोड़ा मुश्किल हो गया, लेकिन अब भी धान की कटाई के लिए बिहार से मजदूर बुलाए जाते हैं।
- वर्तमान में अल्फानगर के खेतों पर करीब 100 मजदूर काम करके अपनी आजीविका चला रहे हैं।
बंजर से सोना उगलने तक का सफर
अल्फानगर के शुरुआती दिनों की तुलना में आज यह गांव कृषि और डेयरी उत्पादन में सबसे आगे है।
- यहां के किसानों ने जंगल जैसी जमीन को 4000 बीघा उपजाऊ जमीन में बदल दिया है।
- नहरी पानी की उपलब्धता और कड़ी मेहनत के कारण यह इलाका अब राजस्थान में सबसे ज्यादा उपज देने वाले इलाकों में से एक है।
अल्फानगर की सांस्कृतिक पहचान
अल्फानगर अपनी पंजाबी संस्कृति के कारण “मिनी पंजाब” कहलाता है।
- पंजाबी परंपराएं: यहां के लोग आज भी पंजाबी भाषा बोलते हैं और पारंपरिक पोशाक पहनते हैं।
- त्योहार: लोहड़ी, बैसाखी, और गुरुपर्व जैसे त्योहार पूरे उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।
- गुरुद्वारा: गांव का गुरुद्वारा धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है।
अल्फानगर को न केवल “मिनी पंजाब” के नाम से जाना जाता है, बल्कि यह भारतीय कृषि और संस्कृति का एक प्रेरणादायक उदाहरण भी है। विभाजन के दर्द से उभरकर इस गांव के निवासियों ने कड़ी मेहनत और लगन से इसे समृद्धि की ओर अग्रसर किया। आज यह गांव कोटा जिले के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत है। अगर आपको भारतीय संस्कृति और मेहनत की मिसाल देखनी है, तो अल्फानगर जरूर जाएं।
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