PM Morarji Desai Plane Crash: उत्तर प्रदेश के जोरहाट जिले के तेकेलागांव गांव में 4 नवंबर 1977 की रात हुआ एक भयानक विमान हादसा इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इस हादसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई समेत कई लोग बाल-बाल बच गए, लेकिन कॉकपिट में मौजूद पांच जांबाज अधिकारियों ने अपनी जान देकर प्रधानमंत्री को सुरक्षित बचा लिया।
यह हादसा, जिसे रूस में निर्मित टुपोलेव टीयू-124 विमान ‘पुष्पक’ की दुर्घटना के रूप में जाना जाता है, वरिष्ठ पत्रकार दिवंगत एनवीआर स्वामी की नई किताब ‘द ओडिसी ऑफ एन इंडियन जर्नलिस्ट’ में विस्तार से दर्ज है।
हादसे का खौफनाक मंजर- PM Morarji Desai Plane Crash
विमान ने 4 नवंबर 1977 की रात दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से जोरहाट के लिए उड़ान भरी थी। जब विमान लैंडिंग के करीब था, तो ‘क्रैश लैंडिंग’ की स्थिति उत्पन्न हुई। विमान निर्धारित रनवे पर उतरने में चूक गया और एक ऊंचे पेड़ से टकरा गया। टक्कर से विमान का कॉकपिट बाकी हिस्से से अलग हो गया, जिससे कॉकपिट में मौजूद पांचों अधिकारी शहीद हो गए। इसके बाद विमान बांस की झाड़ियों और धान के खेत में जाकर रुका।
प्रधानमंत्री और यात्रियों की स्थिति
हादसे के बाद, प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के संयुक्त निदेशक जॉन लोबो और निजी सुरक्षा अधिकारी मदन लाल जैदका ने विमान से बाहर निकाला। देसाई घायल होने के बावजूद पूरे समय शांत और संयमित रहे।
स्वामी ने अपनी किताब में लिखा, “देसाई बार-बार अधिकारियों से कह रहे थे, ‘मैं ठीक हूं, पहले घायलों को बचाओ।’”
विमान में देसाई के साथ अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पीके थुंगन, आईबी के पूर्व प्रमुख जॉन लोबो, देसाई के बेटे कांतिलाल देसाई, और सामाजिक कार्यकर्ता नारायण देसाई भी सवार थे। हालांकि, दुर्घटना में कांतिलाल देसाई के पैर कुचले गए थे और वह दर्द से कराह रहे थे। वहीं, नारायण देसाई की कई हड्डियां टूट गईं और वह खड़े होने में असमर्थ थे।
इन अधिकारियों ने दी शहादत
कॉकपिट में मौजूद पांचों अधिकारियों ने अपनी जान देकर यात्रियों को बचाया। शहीद होने वाले अधिकारी थे:
- विंग कमांडर सीजेडडी लिमा
- विंग कमांडर जोगिंदर सिंह
- स्क्वाड्रन लीडर वीवीएस सुनकर
- स्क्वाड्रन लीडर एण सायरिक
- फ्लाइट लेफ्टिनेंट ओपी अरोड़ा
इनकी कुर्बानी ने प्रधानमंत्री और अन्य यात्रियों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाई।
‘द ओडिसी ऑफ एन इंडियन जर्नलिस्ट’ में हादसे का विवरण
दिवंगत पत्रकार एनवीआर स्वामी, जो उस समय पीटीआई के विशेष संवाददाता थे, खुद इस यात्रा का हिस्सा थे। उन्होंने अपनी किताब में हादसे का विस्तार से वर्णन किया है। स्वामी ने लिखा, “विमान तेजी से डगमगाया और फिर जोरदार टक्कर हुई। चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। विमान में तेज आवाज आई, ‘दुर्घटना हो गई है, बाहर निकलें।’” घटना के दौरान कोई चिकित्सक विमान में मौजूद नहीं था, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई।
प्रधानमंत्री की संयमित प्रतिक्रिया
देसाई की इस त्रासदी के दौरान की गई प्रतिक्रिया उल्लेखनीय थी। घायल होने के बावजूद, वे सभी यात्रियों का हालचाल पूछते रहे। हादसे के बाद, उन्हें पास के एक घर में सुरक्षित ले जाया गया।
1977 के जोरहाट विमान हादसे की कहानी ना केवल भयावह है, बल्कि यह साहस, कर्तव्यनिष्ठा और बलिदान की मिसाल भी है। एनवीआर स्वामी की किताब इस घटना के हर पहलू को जीवंत करती है और उन अधिकारियों की याद दिलाती है, जिनकी कुर्बानी आज भी प्रेरणा का स्रोत है।