बिहार के लोक नाट्य जगत में एक ऐसा नाम जिसने अपनी कला और समर्पण से वर्षों तक दर्शकों का मनोरंजन किया और लोक संस्कृति को बचाए रखने में योगदान दिया – वह हैं रामचंद्र मांझी (Ramchandra Manjhi)। रामचंद्र मांझी एक प्रतिष्ठित भारतीय भोजपुरी लोक कलाकार (Folk Drama of Bihar) थे, जिन्हें विशेष रूप से ‘लौंडा नाच’ के लिए जाना जाता है। 2017 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जो उनके अतुलनीय योगदान का प्रमाण है। रामचंद्र मांझी ने न केवल भोजपुरी नाट्य कला में खुद को स्थापित किया बल्कि अपनी मेहनत से उस कला को संजीवनी प्रदान की, जिसे लोग धीरे-धीरे भूल रहे थे।
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प्रारंभिक जीवन– Birth of Ramchandra Manjhi
रामचंद्र मांझी का जन्म बिहार के सारण जिले के ताजपुर गांव में एक दलित (Dalit) परिवार में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्मे मांझी ने जीवन की कठिनाइयों को करीब से देखा। उनकी शिक्षा-दीक्षा ज्यादा नहीं हुई, लेकिन बचपन से ही कला में उनकी रुचि थी। मांझी की कला में विशेष रुचि थी और उन्होंने अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया।
‘नौटंकी’ और रामचंद्र मांझी
रामचंद्र मांझी का नाम सुनते ही ‘नौटंकी’ का चित्र (Art of Ramchandra Manjhi) उभरता है। नौटंकी एक पारंपरिक नाट्य कला है जो भोजपुरी और अन्य उत्तर भारतीय क्षेत्रों में लोकप्रिय है। इसमें नाटक, संगीत, और नृत्य का समावेश होता है, और यह कला समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार करने के साथ-साथ मनोरंजन का भी एक प्रमुख माध्यम है। मांझी का इस कला में प्रवेश किसी संयोग से नहीं बल्कि उनकी गहरी रुचि और प्रयास का परिणाम था। उन्होंने अपनी शुरुआती यात्रा बिहार के ही एक नौटंकी समूह से की और वहां से उनके सफर की शुरुआत हुई। सिर्फ दस वर्ष की आयु में, वे भिखारी ठाकुर की नाट्य मंडली में शामिल हो गए और 1971 में ठाकुर के निधन तक उनके साथ जुड़े रहे।
करियर की उन्नति और चुनौतियां
रामचंद्र मांझी ने अपने करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे। लोक नाट्य के क्षेत्र में उस समय इतनी प्रसिद्धि या सम्मान नहीं था, और आर्थिक स्थिति भी बहुत मजबूत नहीं थी। लेकिन मांझी ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं में काम किया, चाहे वह मुख्य नायक का हो या फिर किसी खलनायक का। उनकी अभिनय क्षमता ऐसी थी कि वे जिस भी भूमिका में होते, उसे जीवंत बना देते।
उनके प्रदर्शन का प्रभाव इतना गहरा था कि दर्शक उनकी कला के माध्यम से समाज में बदलाव की प्रेरणा लेने लगे। यही कारण है कि उनकी प्रस्तुतियों को न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी लोकप्रियता मिली।
लौंडा नाच और योगदान
‘लौंडा नाच’ एक पारंपरिक लोक कला है, जिसमें पुरुष कलाकार स्त्री वेशभूषा में नृत्य और अभिनय करते हैं। रामचंद्र मांझी ने इस कला को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार किया। उन्होंने ‘बिदेसिया’, ‘गबरघिचोर’, ‘पिया निसाइल’, ‘बिरहा बहार’ और ‘बेटीबेचवा’ जैसे नाटकों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं।
90 के दशक तक बिहार और पूर्वांचल के इलाकों में शादी-ब्याह के मौके पर लौंडा नाच आम बात थी। लेकिन ऑर्केस्ट्रा के दौर में जब लड़कियां स्टेज पर आने लगीं तो यह कला लुप्त होने लगी। उन्हें इस बात का दुख था।
रामचंद्र मांझी की कला का महत्व
रामचंद्र मांझी ने अपनी कला के माध्यम से न केवल मनोरंजन किया बल्कि समाज में व्याप्त कुरीतियों पर भी प्रहार किया। उनके नौटंकी प्रस्तुतियों में सामाजिक मुद्दों पर आधारित कथानक होते थे, जिन्हें उन्होंने अपने अभिनय से जीवंत बना दिया। उनके संवाद और अदायगी का ऐसा प्रभाव होता था कि दर्शक उन पर मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से समाज के हर वर्ग तक अपनी बात पहुंचाई और उन्हें जागरूक किया।
पद्मश्री पुरस्कार और राष्ट्रीय पहचान– Ramchandra Manjhi awards
जीवन के अंतिम दिनों में बिहार सरकार के कला एवं युवा मंत्रालय ने वर्ष 2017 में रामचंद्र मांझी को सम्मानित किया। वर्ष 2021 में भारत सरकार ने रामचंद्र मांझी को ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया। यह न केवल उनके लिए बल्कि पूरे भोजपुरी लोक कला जगत के लिए गर्व का विषय था। इस सम्मान ने साबित कर दिया कि कला का वास्तविक उद्देश्य समाज में सकारात्मक बदलाव लाना और संस्कृति को संरक्षित करना है। इस सम्मान के बाद मांझी की लोकप्रियता और भी बढ़ी, और वे युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन गए।
रामचंद्र मांझी निधन
7 सितंबर 2022 को, 97 वर्ष की आयु में, रामचंद्र मांझी (Death of Ramchandra Manjhi) का पटना के आईजीआईएमएस अस्पताल में निधन हो गया। रामचंद्र मांझी का जीवन और कार्य भारतीय लोक कला के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है, जिसने समाज में सांस्कृतिक जागरूकता और परिवर्तन को प्रेरित किया।
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