KAPL: 40 वर्षों से लाभ में चल रही कंपनी 8 महीने में संकट में…

0
392
Nirja Saraf Managing Director
Source- Google

Nirja Saraf Managing Director – भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में से एक कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (KAPL) इन दिनों गंभीर वित्तीय और प्रबंधन संकट से जूझ रही है। इस कंपनी, जिसने पिछले चार दशकों में लगातार मुनाफा कमाया था, की स्थिति अप्रैल 2024 से लगातार बिगड़ रही है। कंपनी की गिरती बिक्री और प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी ने इसके भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

गिरती बिक्री और प्रबंधन की भूमिका

KAPL की बिक्री में अप्रैल 2024 से लेकर अब तक लगभग 50% की गिरावट दर्ज की गई है। कर्मचारियों और विशेषज्ञों का आरोप है कि कंपनी की मौजूदा एडिशनल मैनेजिंग डायरेक्टर नीरजा श्रॉफ (Nirja Saraf Managing Director) के नेतृत्व में गलत निर्णय और नियमों का पालन न करने जैसी समस्याएं उभरकर सामने आई हैं।

नीरजा श्रॉफ पर आरोप है कि उन्होंने कंपनी के कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स को बिना आवश्यक सरकारी मंजूरी के रोक दिया और कई अनौपचारिक फैसले भी लिए। जबकि, सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (CVC) और जनरल फाइनेंशियल रूल्स (GFR) के तहत हर बड़े फैसले को उचित प्रलेखन और स्वीकृति की आवश्यकता होती है।

और पढ़ें: EXCLUSIVE: फार्मास्यूटिकल सेक्टर में ‘धांधली’ की खुलने लगी परतें! सवालों के घेरे में DoP और नीरजा श्रॉफ 

कर्मचारियों में असंतोष

KAPL के कर्मचारियों का आरोप है कि पिछले कुछ महीनों में बोनस में कटौती, फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट (FTC) कर्मचारियों को वार्षिक उपहार न देने, और अनुचित कारणों से शो-कॉज नोटिस जारी करने जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। कर्मचारियों का यह भी कहना है कि कई पुराने सेवानिवृत्त कर्मचारियों के फाइनल सेटलमेंट लंबित हैं, जिससे असंतोष गहराता जा रहा है।

प्राइवेट कंपनियों को दिया गया अनुचित लाभ

नीरजा श्रॉफ के नेतृत्व में सरकारी संसाधनों के प्रबंधन को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ है, जिसमें यह आरोप लगाया जा रहा है कि सरकारी संसाधनों का अनुचित लाभ प्राइवेट कंपनियों को पहुँचाया जा रहा है। सूत्रों का दावा है कि HAL के प्लांट्स को प्राइवेट कंपनियों के उपयोग के लिए उपलब्ध कराया गया है।

इसके अलावा, ऐसी नीतियों को अन्य अधीनस्थ सरकारी कंपनियों पर भी लागू करने की योजना बताई जा रही है, जिससे सरकारी संसाधनों का प्राइवेट कंपनियों को स्थानांतरित करने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। इन प्राइवेट कंपनियों द्वारा सरकारी कंपनियों के संसाधनों का उपयोग करके स्वामित्व कंपनियों से कई गुना ज्यादा मुनाफा कमाया जा रहा है। यह मामला सरकारी संसाधनों के निजीकरण और पारदर्शिता की आवश्यकता पर सवाल उठाता है और यदि आरोप सत्य हैं, तो यह सरकारी नीतियों की निष्पक्षता और जवाबदेही पर गंभीर असर डाल सकता है।

गुणवत्ता और NSQ मुद्दे पर लापरवाही

KAPL और HAL में उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर भी गंभीर सवाल उठे हैं। उदाहरण के तौर पर, पेरासिटामोल 650 एमजी, मेट्रोनिडाजोल 400 एमजी जैसी दवाओं को नॉन-स्टैंडर्ड क्वालिटी (NSQ) घोषित किया गया था। इन मुद्दों को प्रबंधन द्वारा समय पर संबोधित नहीं किया गया, जिससे अंततः राज्य के रसायन और उर्वरक मंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा और दवाओं को बदलने का निर्देश देना पड़ा।

कंपनी के उत्पादों की गुणवत्ता और मानकों को बनाए रखने में बार-बार लापरवाही देखने को मिली है। इन घटनाओं ने न केवल कंपनी की विश्वसनीयता को प्रभावित किया है बल्कि सरकारी फार्मा सेक्टर की छवि पर भी नकारात्मक असर डाला है।

इससे प्रथम दृष्ट्या तो यही प्रतीत हो रहा है कि नीरजा श्रॉफ कोई भी जिम्मेदारी लेने से बच रही हैं और तकनीकी सलाहकार के पद पर नियुक्त व्यक्ति अपनी मनमानी कर रहा है. यह कदम न केवल प्रोफेशनलिज्म पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि नीरजा श्रॉफ की कार्यशैली में कितनी गंभीर खामियाँ हैं.

उज्जैन प्रोजेक्ट और आउटसोर्सिंग विवाद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत चल रहे महत्वपूर्ण “उज्जैन प्रोजेक्ट” को लेकर हाल ही में विवाद गहराता जा रहा है। यह प्रोजेक्ट 7ACA के निर्माण के लिए भारत में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा था, जो देश की 7ACA से प्राप्त होने वाले सेफालोस्पोरिन दवाइयों के साल्ट की निर्भरता में मील का पत्थर साबित हो सकता था।

सूत्रों के अनुसार, मार्च 2024 तक यह परियोजना सुचारू रूप से प्रगति कर रही थी और इसके सफल कार्यान्वयन को लेकर सरकार और संबंधित विभागों का रुख सकारात्मक था। लेकिन अचानक नीरजा श्रॉफ के नेतृत्व में इस परियोजना को रोक दिया गया, जिससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। परियोजना रोकने के कारणों पर अब तक स्पष्टता नहीं दी गई है, लेकिन इससे इस महत्वाकांक्षी योजना पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।

इसके साथ ही, हाल ही में ऐसी खबरें सामने आई हैं कि इस प्रोजेक्ट को बेचने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। हालांकि, इस संभावित बिक्री के लिए संबंधित मंत्रालय से स्वीकृति लिए जाने के प्रमाण अभी उपलब्ध नहीं हैं। यह स्थिति न केवल परियोजना की पारदर्शिता पर सवाल उठाती है बल्कि देश की औद्योगिक आत्मनिर्भरता को भी कमजोर कर सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह प्रोजेक्ट सही दिशा में संचालित होता तो इससे क्षेत्रीय विकास के साथ-साथ रोजगार के नए अवसर भी पैदा होते। इस मुद्दे पर सरकार से जल्द से जल्द स्थिति स्पष्ट करने की मांग की जा रही है ताकि परियोजना का भविष्य सुरक्षित रह सके और आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो। इसके अलावा, कंपनी में पुराने आपूर्तिकर्ताओं के स्थान पर नए आपूर्तिकर्ताओं को प्राथमिकता देने और पुराने एजेंटों के अनुबंध रिन्यू न करने के आरोप भी लगे हैं।

और पढ़ें: Exclusive: सरकार की 4 सबसे बड़ी फार्मा कंपनियों में एक ही महिला का राज, ये कोइंसिडेंस तो नहीं हो सकता!

सरकारी फार्मा कंपनियों पर बढ़ता संकट

KAPL के साथ-साथ अन्य सरकारी फार्मा कंपनियों जैसे कि HAL, IDPL और RDPL भी लंबे समय से वित्तीय दबाव का सामना कर रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि एक ही व्यक्ति के नेतृत्व में कई कंपनियों का संचालन इन समस्याओं को और जटिल बना रहा है। KAPL, जो कभी सार्वजनिक क्षेत्र का गौरव था, अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। गिरती बिक्री और बढ़ते विवादों के बीच, यह स्पष्ट है कि सरकार को इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।

समस्याओं के समाधान की आवश्यकता

KAPL की स्थिति को सुधारने के लिए प्रबंधन में पारदर्शिता लाना और कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना आवश्यक है। साथ ही, सरकारी प्रोजेक्ट्स और वित्तीय निर्णयों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए। यदि इन मुद्दों का समाधान नहीं किया गया, तो यह सिर्फ KAPL ही नहीं, बल्कि अन्य सरकारी फार्मा कंपनियों के अस्तित्व के लिए भी खतरा साबित हो सकता है।

नोट: यह लेख सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी और सूत्रों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर तैयार किया गया है। लेख का उद्देश्य कंपनी के संचालन और प्रबंधन में पारदर्शिता की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करना है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here