Nalanda Mosque: देश में हम अक्सर हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक तनाव की खबरें सुनते रहते हैं, लेकिन बिहार के नालंदा जिले के मादी गांव ने एक अनूठी मिसाल कायम की है। यहां एक मस्जिद है, लेकिन उससे भी खास बात यह है कि इस मस्जिद की देखभाल और संचालन पूरी तरह से हिंदू समुदाय (Hindus take care of Nalanda Mosque) के हाथों में है, जबकि गांव में कोई भी मुस्लिम परिवार नहीं रहता है। यह ऐसे समय में हो रहा है जब हर जगह सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की मिसाल की जरूरत है।
हिंदू समुदाय द्वारा मस्जिद की देखभाल – Nalanda Mosque
नालंदा जिले के बेन प्रखंड के मादी गांव में सिर्फ़ हिंदू रहते हैं लेकिन यहां एक मस्जिद है। और मुसलमानों की अनुपस्थिति में इस मस्जिद की बिल्कुल भी उपेक्षा नहीं की जाती। गांव के हिंदू लोग नियमित रूप से इसकी देखभाल करते हैं, मस्जिद का रखरखाव करते हैं और यहां पांच वक्त की नमाज़ का भी प्रबंध करते हैं। मस्जिद की देखभाल, रंगाई-पुताई और सफाई का काम हिंदू समुदाय के लोग ही करते हैं। वे इसे अपने मंदिर की तरह मानते हैं और इसके प्रति सम्मान दिखाते हैं।
संभल में 46 साल पुराने मंदिर को इलाके के मुसलमानों ने सुरक्षित रखा। इलाके में मुसलमान ज्यादा थे फिर भी मंदिर में कहीं से भी कोई तोड़फोड़ नहीं हुई।
अब नालंदा की मस्जिद को देखिए जो 200 साल पुरानी है और यहां हिंदू अज़ान देते हैं क्योंकि इस इलाके में पिछले 50 साल से कोई भी मुसलमान… pic.twitter.com/rUVPc7BUx5
— Kavish Aziz (@azizkavish) December 15, 2024
पेन ड्राइव से होती है अजान
मस्जिद में अजान की भी व्यवस्था की जाती है, हालांकि गांव में कोई मुस्लिम परिवार न होने के कारण अजान देने वाला कोई व्यक्ति नहीं है। इसके लिए गांव के हिंदू लोग एक नवाचारी तरीका अपनाते हैं। वे पेन ड्राइव के माध्यम से अजान की रिकॉर्डिंग मस्जिद में सुनाते हैं। हर दिन पांच बार अजान दी जाती है, जिससे यह दिखता है कि गांव में सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल पूरी तरह से कायम है।
यहां रखे पत्थर से दूर होती है बीमारी
इसके अलावा, किसी भी शुभ काम की शुरुआत से पहले गांव के हिंदू निवासी यहां दर्शन के लिए आते हैं। यहां शादी के मौके पर कार्ड भेजे जाते हैं, जैसे हिंदू देवी-देवताओं के मंदिरों में भेजे जाते हैं। ऐसा न करने वाले लोगों को परेशानी होती है। लोग सदियों पुरानी इस परंपरा का बखूबी पालन कर रहे हैं। इसके अलावा, स्थानीय लोगों का दावा है कि इस मस्जिद में रखे पत्थर को छूने से इलाके में गाल कफ नामक बीमारी से पीड़ित कोई भी व्यक्ति ठीक हो जाता है। मस्जिद के अंदर एक मजार भी है। इस पर लोग चादर भी चढ़ाते हैं।
200-250 साल पुराना है यह मस्जिद (Nalanda Mosque History)
हालांकि, इस मस्जिद की सही तारीख और निर्माता अज्ञात हैं, लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि यह 200 से 250 साल पुरानी है, जो उनके बुजुर्गों ने उन्हें बताया है। इसके अलावा, मस्जिद के सामने एक मकबरा है जहां चादरपोशी की जाती है। माडी गाँव में स्थित मस्जिद का रखरखाव अभी भी हिंदुओं द्वारा किया जाता है, इस तथ्य के बावजूद कि मुसलमानों का अब इससे कोई संबंध नहीं है।
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल
माड़ी गांव की यह घटना इस बात का प्रमाण है कि धर्म और समुदाय से परे, इंसानियत और एकता की भावना सबसे ऊपर होती है। माड़ी गांव के लोग बताते हैं कि यह मस्जिद किसी एक समुदाय की नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत की है। यहां के लोग मानते हैं कि धार्मिक स्थानों का सम्मान करना और उनका संरक्षण करना हमारा मानवीय कर्तव्य है, चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हो।