इतिहास पर नज़र डालें तो पंजाब ने हमेशा से ही भारत में बहुत अहम भूमिका निभाई है। कहा जाता है कि घुसपैठिए पंजाब के ज़रिए ही भारत में घुसकर राज करने की रणनीति बनाते थे। अंग्रेज़ों और मुगलों ने भी पंजाब को ही अपना लक्ष्य माना था ताकि वे भारत पर कब्ज़ा कर सकें। इतना ही नहीं, पंजाब के विधानसभा चुनाव ही पाकिस्तान के निर्माण का कारण बने। आइए, आपको बताते हैं पूरी कहानी।
मुस्लिम लीग बनी मुसलमानों की पार्टी
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस काफ़ी प्रभावशाली थी। कांग्रेस के साथ-साथ कई अन्य पार्टियाँ भी उभरी थीं। दूसरी ओर मुस्लिम लीग खुद को भारतीय मुसलमानों की पार्टी कहती थी। मुहम्मद अली जिन्ना मुस्लिम लीग के सबसे बड़े नेता थे। उस समय जनता में अलग देश को लेकर कोई भावना नहीं थी। इस विचार को सबसे पहले 19वीं सदी के मुस्लिम बुद्धिजीवियों सैयद अहमद खान और अमीर अली ने प्रस्तावित किया था। लेकिन उस समय भी यह बहुत लोकप्रिय नहीं था। धीरे-धीरे जिन्ना ने इस विचार को फैलाना शुरू कर दिया। उस समय भारत में सबसे ज़्यादा मुसलमान बंगाल और पंजाब में थे। बंगाल में धीरे-धीरे मुस्लिम लीग का प्रभाव बढ़ने लगा क्योंकि ढाका के नवाब भी मुस्लिम लीग से जुड़ गए थे। लेकिन पंजाब में मुस्लिम लीग को 1940 के दशक तक ज़्यादा फ़ायदा नहीं हुआ।
1945 का चुनाव बना मुस्लिम लीग का आखिरी मौका
1945 में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि राष्ट्रीय और विधान सभाओं के लिए चुनाव होंगे। फरवरी 1946 में पंजाब में चुनाव होने थे। कांग्रेस इन चुनावों को जीतना चाहती थी ताकि वह देश और दूसरे राज्यों में सरकार बना सके। मुस्लिम लीग का लक्ष्य पंजाब और बंगाल में जीत हासिल करना था। साथ ही, दूसरे मुस्लिम बहुल इलाकों में जीत हासिल करना था ताकि यह कहा जा सके कि मुस्लिम लीग मुसलमानों की पार्टी है। पंजाब में 57 प्रतिशत आबादी मुस्लिम थी। मुस्लिम लीग पहले भी यहां हारी थी। अगर इस बार हार जाती तो पूरी तरह से खत्म हो जाती।
जिन्ना ने बदला माहौल
जिन्ना ने उस समय पंजाब के अध्यक्ष ममदोट के खान के साथ मिलकर हर तरह की चालें चलनी शुरू कर दीं। दोनों ने कॉलेज और यूनिवर्सिटी से लड़के-लड़कियों को गाँवों और शहरों में भेजना शुरू कर दिया। ये लोग जाकर बताते कि मुस्लिम लीग किस तरह मुसलमानों की सारी समस्याओं का समाधान करेगी। धीरे-धीरे पीर मुस्लिम लीग से जुड़ने लगे। लेकिन जब नतीजे आए तो सब हैरान रह गए। मुस्लिम लीग को 175 में से 73 सीटें मिलीं। यूनियनिस्ट को 20 सीटें मिलीं। कांग्रेस को 51 और अकाली दल को 22 सीटें मिलीं। मुस्लिम लीग को 65 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले।
पंजाब में कांग्रेस ने भले ही अल्पमत की सरकार बनाई, लेकिन मुस्लिम लीग ने अपनी सत्ता कायम की। बंगाल में मुस्लिम लीग ने 230 में से 113 सीटें जीतीं और सिंध में 60 में से 27 सीटें जीतीं। लेकिन पंजाब में पहले स्थान पर आने से मुस्लिम लीग को हर तरह की बहस में हिस्सा लेने का मौका मिला। इससे पहले सब कुछ इस भावना पर आधारित था कि मुस्लिम लीग मुसलमानों की पार्टी है। इसके बाद पाकिस्तान बना। और उस पाकिस्तान में मुस्लिम लीग कुछ ही सालों में खत्म हो गई।
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