मिलिए उस महिला से जिसने अंबेडकर से ली बौद्ध धर्म की दीक्षा, बताया 1956 में क्या हुआ था?

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Meet the woman who took initiation into Buddhism from Ambedkar
Source: Google

13 अक्तूबर 1935 को भीमराव अंबेडकर ने महाराष्ट्र के येवला में कहा था, “मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं, कम से कम यह तो मेरे वश में है।” दरअसल, अंबेडकर जाति व्यवस्था के इतने खिलाफ हो गए थे कि अपने जीवन के आखिरी चरण में उन्होंने हिंदू धर्म की कुरीतियों को छोड़कर कोई अन्य धर्म अपनाने का फैसला कर लिया। धीरे धीरे उनका झुकाव बौद्ध धर्म की तरफ हो रहा था। अंबेडकर को ये यकीन हो चला था कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए जो कोशिशें की जा रही हैं वो उतनी असरकारी नहीं है। कहा जाता है कि नागपुर में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को अपने 3.65 लाख समर्थकों के साथ हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। नागपुर में हुई इस घटना को इतिहास में धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना के तौर पर याद किया जाता है।

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बचपन से किया भेदभाव का सामना

14 भाइयों में सबसे छोटे अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर के पास एक छोटे से गांव महू में हुआ था। दलित परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें बचपन से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा। स्कूल में अम्बेडकर को आखिरी पंक्ति में बैठाया जाता था। यहीं से अम्बेडकर भेदभाव की इस व्यवस्था के ख़िलाफ़ हो गये। अंबेडकर का कहना था, “मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है। मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है; धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए”।

बौद्ध भिक्षुओं का पड़ा प्रभाव

1950 से 1956 के बीच बाबा साहब कुछ बौद्ध भिक्षुओं से प्रभावित थे। इसी कारण 1950 के दशक में बाबा साहेब बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुए और एक बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका (तब सीलोन) चले गये। इसके बाद ही 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने अपनी पत्नी और लाखों समर्थकों के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म अपना लिया। कहा जाता है कि जब उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया तो उनके साथ बच्चों से लेकर बूढ़े दलित भी शामिल थे। इसी भीड़ में शामिल थी 18 साल की लड़की गीता बाई। जो उस वक्त दो बच्चों की मां थीं। बाबा साहब के समूह में शामिल गीता बाई ने भी बौद्ध धर्म अपनाया और करीब 67 साल बाद भी वह बाबा साहब के साथ ली गई दीक्षा का पालन करती हैं।

अंबेडकर से ली बौद्ध दीक्षा

लल्लनटॉप को दिए इंटरव्यू में गीता बाई बताती हैं कि 1956 के दौरान जब अंबेडकर ने दीक्षा ली थी तो वह भी उनके शरण में दीक्षा लेने गई थीं। बाबा अंबेडकर ने गीता बाई को प्यार से आशीर्वाद दिया और कहा कि बेटा तुम्हें कुछ नहीं होगा। गीता बाई बताती हैं कि उनके साथ कई अन्य अनुयायी भी थे जो अंबेडकर की शरण में आकर दीक्षा लेने का इंतजार कर रहे थे। नागपुर की दीक्षा भूमि आज जरूर सफल है, यहां सड़कें हैं, अंबेडकर की याद में स्मारक बने हैं, लेकिन 1956 के दौरान यहां सिर्फ जंगल था। सभी ने जंगल में ही स्थान बनाकर दीक्षा ले ली। इसके बाद जब बाबा साहेब का निधन हुआ तो उनके एक अनुयायी ने उनकी मूर्ति ली और उसे नागपुर में दीक्षाभूमि में स्थापित कर दिया। गीता बाई का कहना है कि जब से उन्होंने अंबेडकर से दीक्षा ली है तब से वह उनके दिखाए रास्ते पर चल रही हैं। वह नागपुर के दीक्षाभूमि में रहती है और अंबेडकर की तस्वीरें और अंबेडकर से जुड़ी चीजें बेचकर अपना गुजारा कर रही है। गीता बाई के मुताबिक, अंबेडकर जयंती के दिन यहां भारी भीड़ आती है और बेहद खुशनुमा माहौल रहता है।

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