जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।। महान संत कबीरदास जी की ये पंक्तिया आज भी जाती के नाम पर हो रहे इस भेदभाव को करार जवाब देने के लिए काफी है। दलित होते हुए भी दुनिया ने उन्हें श्रद्धा के शिखर पर बैठाया। संत रविदास, संत नामदेव ये सभी भी दलित थे। इतिहास पर नजर डालें तो हम देखेंगे कि रामायण काल में भगवान राम के दरबार में सबसे ऊंचे पद पर बैठा व्यक्ति, निषाद राज, दलित था, यहां तक कि जिस शबरी के झूठे बेर भगवान राम ने खाये थे, वह शबरी भी दलित थी। यहां तक कि जिस केवट के सामने श्रीराम ने हाथ जोड़े थे वह भी दलित था। और ये पूरी कहानी लिखने वाले ऋषि वाल्मिकी भी दलित थे। भले ही उस समय जाति व्यवस्था आज जैसी न रही हो, लेकिन उनकी गिनती दलितों में होती थी। अब आप सोच रहे होंगे कि आज हम इधर-उधर की बात क्यों कर रहे हैं? दरअसल ये सारी बातें मनोज मुंतशिर कह रहे हैं। जी हां, वही मनोज मुंतशिर जिन्हें हाल ही में फिल्म आदिपुरुष के विवादित डायलॉग लिखने के लिए ट्रोल किया गया था। आज हम उनकी ट्रोलिंग के बारे में नहीं बल्कि बाबा अंबेडकर पर उनके विचारों के बारे में बात करेंगे। दरअसल, मनोज मुंतशिर का कहना है कि दलित शब्द सनातन धर्म ने नहीं बल्कि उन आतंकवादियों ने बनाया था जो हमारी एकता को तोड़ना चाहते थे। क्योंकि सनातन धर्म में कभी भी ऊंच-नीच जाति की चर्चा नहीं की गई। बस कुछ लोगों ने हमारे मन में ऊंच-नीच की यह भावना भर दी और हम उसके साथ चलते चले गए, बिना यह जाने कि हमारे धर्म में ऊंच-नीच के बारे में कभी कुछ नहीं कहा गया। यहां तक मनोज मुंतशिर ने बाबा साहब को लेकर भी बहुत कुछ कहा। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
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मनोज मुंतशिर ने की बाबा साहब की प्रशंसा
मनोज मुंतशिर ने अपने यूट्यूब चैनल मनोज मुंतशिर शुक्ला पर बाबा साहब के बारे में कई कहानियां बताई हैं। बकौल मनोज, बाबा साहेब 9 भाषाओं के ज्ञातक थे और उनके पास 32 डिग्री थीं। यहां तक कि बाबा साहब विदेश जाकर अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले पहले भारतीय व्यक्ति थे। बाबा साहेब उस समिति के अध्यक्ष भी थे जिसने हमारे महान भारतीय संविधान का निर्माण किया था। मनोज कहते हैं कि जिस क्लास में अंबेडकर को कोने में बैठाया जाता था और जाति के नाम पर भेदभाव किया जाता था, उसी जाती के अंबेडकर आज सम्मान के शिखर पर पहुंचे हुए हैं।
अधर्म के मार्ग पर नहीं चले अंबेडकर
बाबा साहब से जुड़ा एक बेहद दिलचस्प किस्सा सुनते हुए मनोज कहते हैं कि आजादी से पहले 1943 में बाबा साहब को वायसराय ऑफिस में शामिल कर श्रम मंत्री बनाया गया था। बाबा साहब ने उस वक़्त लोक निर्माण विभाग (PWD) का भी पद संभाला था। उस समय भी PWD का बजट करोड़ों में हुआ करता था। देश के बड़े-बड़े ठेकेदार ठेका लेने के लिए PWD के बाहर लाइन में खड़े रहते थे। ठेका किसे दिया जाए? इसका फैसला बाबा साहब की कलम किया करती थी। एक बार की बात है, दिल्ली के एक बड़े ठेकेदार ने बाबा साहेब के बेटे यशवन्त राव से संपर्क किया और अपनी सिफ़ारिश के साथ कहा, अपने पिता अंबेडकर से मुझे ठेका दिलवा दो, मैं तुम्हें कमीशन के तौर पर कंपनी में आधा हिस्सा दे दूंगा। उस समय में कंपनी में आधा हिस्सा लेना भी करोड़ों रुपये कमाने के बराबर था। ठेकेदार की यह बात सुनकर यशवन्त राव दिल्ली में अपने पिता अंबेडकर के पास आये और उन्हें पूरी बात बतायी। यशवन्त राव की बात सुनकर बाबा साहब ने कहा, ‘मैं इस कुर्सी पर समाज के कल्याण के लिए बैठा हूँ, अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए नहीं। जिसने तुम्हें यह प्रलोभन दिया वह तो अपराधी है ही, परंतु तुम इस अपराध के दूत बने, मेरे लिए तो तुम भी अपराधी हो।’ इसके बाद बाबा साहब ने अपने बेटे को एक गिलास पानी तक नहीं पूछा और उन्हें सीधे मुंबई वापस भेज दिया। इस वाक्य से आप जान सकते हैं कि बाबा साहब अपने काम के प्रति कितने ईमानदार थे और अपने कर्तव्य के प्रति कितने वफादार थे।
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