Lahori Ram Bali biography: लाहौरी राम बाली, जिन्हें एल.आर. बाली के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख अंबेडकरवादी नेता थे जिन्होंने पंजाब में डॉ. भीमराव अंबेडकर की विचारधारा और उनके मिशन को बढ़ावा दिया। उनका जन्म 20 जुलाई 1930 को पंजाब के नवांशहर जिले में हुआ था। अपने 93 साल के जीवन में उन्होंने सामाजिक न्याय, समानता और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में अतुलनीय योगदान दिया।
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प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि (Lahori Ram Bali biography)
बाली का जन्म प्रेमी देवी और भगवान दास के घर हुआ था। उनके दादा चौधरी इंदर राम आदि धर्म आंदोलन के संस्थापक बाबू मंगूराम मुगोवालिया के करीबी सहयोगी थे। उनका बचपन ऐसे माहौल में बीता, जहां सामाजिक सुधार और समानता के लिए संघर्ष को प्राथमिकता दी जाती थी। यही वजह थी कि बाली का झुकाव शुरू से ही सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों की ओर था।
डॉ. आंबेडकर से प्रेरणा
बाली ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर से प्राप्त की और भारत के विभाजन के बाद दिल्ली आ गए। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद बाली ने 1947 में दिल्ली में सरकारी गवर्नमेंट प्रेस में नौकरी की। दिल्ली में ही उन्हें डॉ. आंबेडकर से व्यक्तिगत रूप से मिलने का अवसर मिला। इस मुलाकात ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने आंबेडकर के मिशन को अपनाने का संकल्प लिया।
सामाजिक और राजनीतिक योगदान
डॉ. आंबेडकर की मृत्यु के बाद बाली ने अपनी नौकरी छोड़ दी और सामाजिक न्याय के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने चरण दास निधारक के साथ मिलकर शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन को पुनर्जीवित किया और पंजाब में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की।
बाली ने जालंधर में आंबेडकर भवन का निर्माण करवाया, जो आंबेडकरवादी आंदोलन का केंद्र बन गया। उन्होंने आंबेडकर भवन ट्रस्ट, आंबेडकर मिशन सोसाइटी, ऑल इंडिया समता सैनिक दल और बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया जैसी संस्थाओं की स्थापना की और इनका नेतृत्व किया।
‘भीम पत्रिका’ का प्रकाशन
1958 में, बाली ने ‘भीम पत्रिका’ नामक मासिक पत्रिका की शुरुआत की। यह पत्रिका उर्दू और पंजाबी में प्रकाशित होती थी। 1965 से इसे हिंदी और अंग्रेजी में भी प्रकाशित किया जाने लगा। ‘भीम पत्रिका पब्लिकेशंस’ ने डॉ. आंबेडकर के लेखन और भाषणों को प्रकाशित कर समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया। बाली ने आंबेडकरवादी साहित्य पर कई पुस्तिकाएं भी प्रकाशित कीं।
राजनीतिक सक्रियता
जालंधर में जिस स्थान पर डॉ. अंबेडकर ने 27 अक्टूबर, 1951 को अपना प्रसिद्ध भाषण दिया था, वहां बाली ने अंबेडकर भवन का निर्माण करवाया। उन्होंने अंबेडकर भवन ट्रस्ट, अंबेडकर मिशन सोसाइटी, अखिल भारतीय सैनिक दल और भारतीय बौद्ध सोसाइटी के पंजाब प्रभागों का गठन किया और जीवन भर इन सभी का नेतृत्व किया। 1957 में दूसरे आम चुनाव से पहले पंजाब के त्वरित दौरे पर ले जाने के बाद बाली ने अंबेडकर के बेटे यशवंत अंबेडकर को 1962 के आम चुनाव में होशियारपुर से लोकसभा के लिए खड़ा होने के लिए राजी किया। 1957 के चुनाव में बाली ने खुद कांग्रेस के उम्मीदवार और बाद में केंद्रीय मंत्री स्वर्ण सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा। 1963 में, वे धम्म का प्रसार करने और अंबेडकरवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए बौद्ध बन गए।
भाषाई कौशल और विचारधारा
बाली पंजाबी, हिंदी, उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेज़ी भाषाओं में पारंगत थे। उनकी भाषाई दक्षता और विचारधारा ने उन्हें एक अद्वितीय व्यक्तित्व बनाया। वे अपने मुखर विचारों और अंबेडकरवादी सिद्धांतों के प्रचार के लिए जाने जाते थे।
मृत्यु और विरासत
लाहौरी राम बाली का 6 जुलाई 2023 को 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन के साथ ही सामाजिक न्याय के एक महान स्तंभ ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। बाली ने अपना जीवन पूरी तरह से डॉ. अंबेडकर के मिशन को समर्पित कर दिया। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने पंजाब में अंबेडकरवादी आंदोलन को एक नई दिशा दी।
लाहौरी राम बाली का जीवन डॉ. अंबेडकर की विचारधारा का जीवंत उदाहरण है। उनका योगदान समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणादायी है। उन्होंने अपने जीवन का हर पल समानता, मानवता और न्याय के लिए समर्पित कर दिया। उनके कार्य और विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरित कर रहे हैं और उनकी विरासत हमेशा अमर रहेगी।
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