कांशी राम (1934-2006) भारतीय राजनीति में एक प्रमुख समाज सुधारक और दलित आंदोलन के प्रमुख नेता थे। उन्होंने दलितों, पिछड़े वर्गों और अन्य सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों के लिए एक मजबूत राजनीतिक आंदोलन खड़ा किया। कांशी राम को मुख्य रूप से बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के संस्थापक के रूप में जाना जाता है, जिसने भारत में दलित राजनीति को एक नई दिशा दी और समाज में सामाजिक न्याय और समानता के लिए आवाज़ उठाई। लेकिन उन्होंने इन सभी कामों के लिए कभी मीडिया का सहारा नहीं लिया। क्योंकि वे अक्सर मीडिया से बहुत नाराज़ रहते थे। बीबीसी के पूर्व पत्रकार मार्क टुली ने अपने एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया था।
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पूर्व बीबीसी पत्रकार मार्क टुली, जिन्होंने भारत में अपने लंबे पत्रकारिता करियर के दौरान कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को कवर किया, ने एक बार बताया था कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम अक्सर उनसे नाराज रहते थे।
कांशीराम की नाराजगी की वजह
कांशीराम अपने विचारों और आंदोलन के प्रति बेहद समर्पित थे। उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन वे अक्सर मीडिया से नाखुश रहते थे, खासकर जिस तरह से मुख्यधारा का मीडिया उनके काम को कवर करता था। मार्क टुली ने भी कांशीराम के आंदोलन और विचारधारा पर रिपोर्टिंग की, लेकिन कांशीराम को लगा कि मीडिया उनके संघर्ष को सही तरीके से नहीं दिखा रहा है या उनके उद्देश्यों को गलत तरीके से पेश कर रहा है।
मीडिया नहीं देता आंदोलन को पर्याप्त महत्व
कांशीराम का मानना था कि मीडिया उनके आंदोलन को पर्याप्त महत्व नहीं दे रहा था और उनकी पार्टी के उद्देश्यों को सही संदर्भ में नहीं दिखा रहा था। उनके अनुसार, मीडिया हमेशा मुख्यधारा की पार्टियों पर ध्यान केंद्रित करता था, जबकि दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए उनकी पार्टी के संघर्ष को नजरअंदाज कर दिया जाता था। कांशीराम की शिकायत थी कि पत्रकार अक्सर सवालों को गलत दिशा में ले जाते थे या उन्हें विवादास्पद बना देते थे, जिससे उनके आंदोलन की छवि खराब होती थी।
मार्क टुली के साथ मतभेद
मार्क टुली ने माना कि उनके और कांशीराम के बीच इस नाराजगी के बावजूद, वे हमेशा कांशीराम का सम्मान करते थे। कांशीराम के साथ उनके साक्षात्कार और बातचीत कभी-कभी गरमागरम हो जाती थी, क्योंकि टुली उनके पत्रकारिता के सिद्धांतों पर आधारित सवाल पूछते थे, जो कांशीराम को परेशान कर सकते थे। कांशीराम को लगता था कि टुली जैसे वरिष्ठ पत्रकारों को उनके आंदोलन की गहराई को समझने की कोशिश करनी चाहिए और उसे वैसा ही दिखाना चाहिए जैसा वह था।
कांशीराम का मीडिया के प्रति दृष्टिकोण
कांशीराम मीडिया के प्रति संदेहपूर्ण रवैया रखते थे, क्योंकि उनका मानना था कि मीडिया उनके विचारों को सही तरीके से नहीं समझता। वह हमेशा अपने आंदोलन और उसके उद्देश्यों के बारे में मीडिया से अधिक संवेदनशीलता और गहराई की अपेक्षा रखते थे। कांशीराम एक मुखर वक्ता थे और उन्होंने अपने विचार बेबाकी से व्यक्त किए, लेकिन मीडिया द्वारा उनके विचारों की व्याख्या से अक्सर उनके और पत्रकारों के बीच तनाव पैदा होता था।
हालांकि, कांशीराम की नाराजगी के बावजूद मार्क टुली ने हमेशा कांशीराम के संघर्ष और उनके सामाजिक आंदोलन को गंभीरता से लिया। उनके और कांशीराम के बीच मतभेद थे, लेकिन इससे पत्रकारिता के प्रति टुली की प्रतिबद्धता और कांशीराम के विचारों का महत्व कम नहीं हुआ।