जानें गुरु अर्जुन देव ने भाई गुरदास जी को रस्सी से बांधकर लाने का हुक्म क्यों दिया

Bhai Gurdas ji Sakhi
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Bhai Gurdas ji Sakhi – गुरु अर्जन देव जी सिख धर्म के पांचवें गुरु थे। गुरु अर्जुन देव जी की शहादत अतुलनीय है। गुरु अर्जुन देव मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत एवं गंभीर स्वभाव के, अपने युग के सर्वमान्य नेता थे जो दिन-रात संगत की सेवा में लगे रहते थे। गुरु अर्जुन देव जी के साथ एक व्यक्ति था जो साये की तरह उनके साथ रहता था और उनके हर आदेश का पालन करता था। दरअसल हम बात कर रहे हैं भाई गुरदास की। भाई गुरदास बहुत विद्वान व्यक्ति थे। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास की मदद से गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया था। एक समय की बात है जब भाई गुरुदास ने गुरु अर्जुन देव के सामने बहुत सुंदर शब्द कहे, जिससे गुरु अर्जुन देव जी प्रसन्न तो हुए, लेकिन उनकी बातों में अहंकार झलकने लगा। जिसके बाद गुरु अर्जुन देव ने भाई गुरुदास को सही रास्ते पर लाने के लिए एक तरकीब आजमाई।

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भाई गुरुदास ने कहे अनमोल वचन – Bhai Gurdas ji Sakhi

एक बार की बात है, जब भाई गुरुदास हर दिन की तरह गुरु अर्जुन देव के साथ बैठे थे, तो वे उन्हें अपनी लिखी पंक्तियाँ सुना रहे थे। भाई गुरुदास कह रहे थे कि ‘यदि माँ उद्दंड है तो पुत्र को इस बारे में नहीं सोचना चाहिए, न तो माँ को दण्ड देना चाहिए और न ही उसे छोड़ना चाहिए’ …… ‘अगर गाय के पेट में हीरा चला जाए तो उसका पेट फाड़ना नहीं चाहिए’… इसी प्रकार, ‘यदि पति अन्य स्त्रियों से मिलने के लिए बाहर जाता है, तो उसकी पत्नी को पति की नकल नहीं करनी चाहिए और अपनी पवित्रता बनाए रखनी चाहिए’… ‘यदि गुरु परीक्षा लेता है, तो ‘शिष्य को डरना नहीं चाहिए’… भाई गुरुदास की बातें सुनकर गुरु अर्जुन को बहुत संतुष्टि हुई, लेकिन गुरु अर्जुन को उनकी बातों में अहंकार की बू आने लगी।

गुरु अर्जुन ने सोचा क्यों न भाई गुरुदास की परीक्षा ली जाए। गुरु अर्जुन ने भाई गुरुदास की परीक्षा लेने के स्वभाव से कहा कि मामा जी काबुल से घोड़े खरीदने है, कृपया खरीद लाओ। गुरु अर्जुन की बात मानकर भाई गुरुदास अपने कुछ शिष्यों के साथ सोने के सिक्के लेकर काबुल के लिए रवाना हो गए। भाई गुरुदास एक महान विद्वान थे, इसलिए डाकुओं और चोरों से बचने के लिए वे गाँव-गाँव जाकर कीर्तन करते हुए काबुल पहुँचे।

काबुल जाकर उड़े भाई गुरुदास के होश

Bhai Gurdas ji Sakhi – काबुल जाते ही भाई गुरुदास ने पठानों से घोड़े खरीदने का सौदा किया। भाई गुरुदास ने अपने शिष्यों से कहा कि तुम घोड़े लेकर बाहर चले जाओ, मैं सौदा चुका दूंगा। इसके बाद जब भाई गुरुदास ने तंबू के अंदर जाकर अपनी पोटली खोलकर देखा तो उसमें सोने के सिक्कों की जगह कंकड़-पत्थर थे। जिसके बाद भाई गुरुदास मन ही मन सोचने लगे कि अगर बाहर खड़े पठानों को पैसे नहीं दिए गए तो वह उन्हें मार डालेंगे। इस प्रकार भाई गुरुदास ने तम्बू फाड़ दिया और पोटली वहीं छोड़कर काशी भाग गये। काशी जाकर वे सत्संग करने लगे। जब शिष्यों ने देखा कि इतना समय बीत गया तो भाई गुरुदास तंबू से बाहर नहीं आये। इसके बाद जब शिष्यों ने तंबू के अंदर देखा तो पाया कि भाई गुरुदास तंबू फाड़कर भाग गए हैं और पोटली भी वहीं छोड़ गए हैं। इसके बाद शिष्यों ने घोड़ों के लिए भुगतान किया। अमृतसर पहुँचकर शिष्यों ने गुरु अर्जुन को सारी सच्चाई बता दी।

गुरु अर्जुन देव ने भाई गुरदास जी को रस्सी से बांधकर लाने का हुक्म

उसी समय, जब गुरु अर्जुन को पता चला कि भाई गुरुदास काशी भाग गए हैं और वहां सत्संग कर रहे हैं, तो उन्होंने काशी के राजा को पत्र लिखा और कहा कि आपके राज्य में हमारा एक चोर घुस आया है, कृपया उस चोर को रस्सी से बांधकर हम तक पहुंचा दें। गुरु जी ने यह भी कहा कि उस चोर को पकड़ने के लिए आप नागरी में घोषणा करवा दीजिये कि गुरु अर्जुन का एक चोर यहीं नगरी में घूम रहा है। गुरु अर्जुन ने कहा कि चोर चुपचाप रस्सी बांधकर अमृतसर की ओर निकल जाए।

Bhai Gurdas ji Sakhi – इस प्रकार राजा ने गुरु अर्जुन देव की ओर से पूरे नगर में यह घोषणा करवा दी। जब यह घोषणा भाई गुरुदास तक पहुंची तो उन्होंने अपने हाथ अपनी पगड़ी से बांध लिये और गुरु अर्जुन देव के पास पहुंच गये। जिसके बाद गुरु अर्जुन ने कहा, वही शब्द दोहराओ जो तुमने पहले कहा था। गुरु साहिब की बातें सुनकर भाई गुरुदास उनके चरणों में गिर पड़े और बोले कि यदि माँ ही बच्चे को सताए तो बच्चे को कौन बचा सकता है… और यदि चौकीदार घर में चोरी कर ले तो रक्षा कौन करेगा? इस प्रकार भाई गुरुदास ने समझा और कहा कि जब तूफान आता है तो बड़े-बड़े पेड़ों को भी उखाड़ देता है और उससे बचा नहीं जा सकता।

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