Nishan Sahib: इस साल अगस्त महीने की शुरुआत में, सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) अकाल तख्त ने एक महत्वपूर्ण सर्कुलर जारी कर सभी गुरुद्वारों को निशान साहिब का रंग बसंती (हल्का पीला) या सुरमई (भूरा नीला) रखने को कहा था। बसंती, वसंत ऋतु से जुड़ा एक चमकीला पीला रंग है, जो पंजाब की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
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यह कदम उन शिकायतों के बाद उठाया गया है, जिनमें आरोप लगाया गया था कि कई गुरुद्वारों में निशान साहिब के लिए केसरी (भगवा) रंग का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो सिख परंपरा का हिस्सा नहीं है।
सिख परंपरा और मर्यादा के अनुसार रंग- Nishan Sahib
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने इस फैसले का समर्थन किया और स्पष्ट किया कि सिख मर्यादा के अनुसार निशान साहिब की पोशाक का रंग केवल बसंती और सुरमई होना चाहिए। दरअसल भगवा रंग हिंदू धर्म का प्रतीक माना जाता है और यह सिख धर्म की परंपरा के अनुरूप नहीं है।
पंज सिंह साहिबान (सिख धर्म के पांच प्रमुख धार्मिक नेता) पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि सिख धर्म में निशान साहिब के लिए भगवा रंग का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
शिकायतें और धार्मिक मान्यताएं
पिछले कुछ वक्त से कुछ सिख संगठनों और समुदाय के लोगों द्वारा शिकायत की जा रही थी कि कई गुरुद्वारों में भगवा रंग का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो सिख धर्म की पहचान के विपरीत है। शिकायतकर्ताओं के अनुसार, भगवा रंग हिंदू धर्म और सनातन परंपरा का प्रतीक है, जबकि सिख धर्म की अलग पहचान बसंती और सुरमई रंगों से जुड़ी है।
पहला बदलाव: गुरुद्वारा बेर साहिब
पहले, 4 अगस्त को, पंजाब के कपूरथला जिले के सुल्तानपुर लोधी में स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा बेर साहिब ने निशान साहिब का रंग बदलकर बसंती किया। यह गुरुद्वारा गुरु नानक देव जी से जुड़ा हुआ है।
SGPC का कदम
वहीं, SGPC द्वारा प्रबंधित पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के सभी गुरुद्वारों में निशान साहिब के रंग को बदलने की प्रक्रिया जारी है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (DSGMC) ने भी SGPC का अनुसरण करने का संकेत दिया है।
केसरिया से बसंती तक का सफर
SGPC के अधिकांश गुरुद्वारों में पहले केसरिया निशान साहिब था, जो भजवा (भगवा) रंग से मेल खाता था। 2020 में, मोहाली के सेक्टर 60 स्थित गुरुद्वारा सच्चा धन साहिब ने निशान साहिब का रंग केसरिया से बदलकर बसंती कर दिया। हालांकि, 2022 में नए अध्यक्ष द्वारा इसे फिर से केसरिया कर दिया गया। इसके बाद, पूर्व अध्यक्ष राजिंदर पाल सिंह ने अकाल तख्त से अनुरोध किया कि बसंती रंग को सिख रेहत मर्यादा के अनुसार बहाल किया जाए।
अकाल तख्त के जत्थेदार ने 6 जुलाई, 2023 को SGPC से निशान साहिब के रंग को लेकर चल रहे भ्रम को सुलझाने को कहा। सिख कोड ऑफ कंडक्ट के अनुसार, निशान साहिब का रंग बसंती (पीला) या सुरमई (धूसर नीला) होना चाहिए।
रंगों को लेकर ऐतिहासिक बहस
एसजीपीसी के प्रकाशन गुरमत प्रकाश में 1995 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार भगवा और बसंती के बीच बहस स्वतंत्रता आंदोलन से ही शुरू हो गई थी। 1931 में जब राष्ट्रीय ध्वज के रंगों पर चर्चा हो रही थी, तब अकाली नेताओं ने सिख रंग को शामिल करने की मांग की थी। उस समय एसजीपीसी के अध्यक्ष बाबा खड़क सिंह ने बसंती रंग का समर्थन किया था, जबकि मास्टर तारा सिंह ने भगवा रंग को स्वीकार किया था।
1936 में सिख रहत मर्यादा ने निशान साहिब के लिए बसंती और सुरमई रंगों को मान्यता दी। इसके बावजूद समय के साथ भगवा रंग का प्रचलन बढ़ता गया।
राजनीतिक प्रभाव
1980 और 1990 के दशक में पंजाब में उग्रवाद के दौरान, केसरिया रंग सिख प्रतिरोध का प्रतीक बन गया। जरनैल सिंह भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwale) ने अपने भाषणों में केसरिया का जिक्र किया और सिखों को इसके तहत एकजुट होने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, आधुनिक केसरिया रंग को भगवा के समान माना जाने लगा, जो दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों से जुड़ा हुआ है। कई सिख विद्वानों का मानना है कि यह रंग हिंदू प्रभाव का परिणाम है।
बसंती रंग की सांस्कृतिक महत्ता
बसंती रंग सिख संस्कृति में हमेशा से लोकप्रिय रहा है। इस रंग को भगत सिंह के बलिदान से भी जोड़ा जाता है। प्रसिद्ध गीत “मेरा रंग दे बसंती चोला”, जिसे राम प्रसाद बिस्मिल ने लिखा था, स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
वर्तमान में, बसंती रंग का उपयोग आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी किया है, जिसके नेता इस रंग की पगड़ी और दुपट्टे पहनते हैं।
वर्तमान स्थिति: कौन सा रंग प्रचलित है?
अधिकांश गुरुद्वारों में भगवा रंग का निशान साहिब लगाया जाता है। निहंग समूह और उनके द्वारा प्रबंधित गुरुद्वारे बेज रंग का उपयोग करते हैं। स्वर्ण मंदिर परिसर में अकाल तख्त के पास झंडा बुंगा साहिब गुरुद्वारे का निशान साहिब भी भगवा रंग का है।
मीरी-पीरी का प्रतीक- Nishan Sahib importance in Sikhism
मीरी-पीरी (धर्म और राजनीति का संगम) की अवधारणा का प्रतीक निशान साहिब के जुड़वां झंडे अकाल तख्त और सिख धर्म में विशेष महत्व रखते हैं।