टाटा, गोदरेज, वाडिया, मिस्त्री, पूनावाला – ये नाम भारत की समृद्धि में अहम भूमिका निभाते हैं। ये सभी आज सफल व्यवसायी हैं। इन पांचों में एक समानता यह है कि ये सभी पारसी समुदाय (Parsi Community) से हैं। यही वजह है कि पारसी देश के सबसे अमीर अल्पसंख्यकों में गिने जाते हैं। लेकिन यहां चिंता की बात यह है कि यह समुदाय सिमटता (Parsi Community population decreased) जा रहा है और देश में इनकी आबादी अब 60 हजार से भी कम रह गई है। आइए आपको बताते हैं पारसी समुदाय की अमीरियत से लेकर घटती आबादी तक की पूरी कहानी।
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60 हजार से कम है आबादी- Parsi Community population decreased
पारसी समुदाय देश की कुल आबादी का सिर्फ़ 0.005% है। लेकिन, यह समुदाय देश के शीर्ष पाँच उद्योगपतियों (टाटा, गोदरेज, वाडिया, मिस्त्री, पूनावाला) का घर है। अकेले उनकी संपत्ति का मूल्य 14 लाख करोड़ से ज़्यादा है। 2011 की जनगणना के अनुसार इस समुदाय की कुल आबादी 57,264 थी, जबकि 2001 में यह संख्या 69601 थी। वर्तमान में, ये संख्या लगातार घट रही है। माना जाता है कि इस समय देश में पारसी समुदाय के लगभग 55,000 लोग रहते हैं।
घटती जनसंख्या को रोकने के लिए सरकार का रोल
पारसी समुदाय की घटती जनसंख्या को देखते हुए सरकार ने “जियो पारसी” नामक योजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य पारसी समुदाय की जनसंख्या संकट को हल करना है। इस योजना के तहत पारसी परिवारों को वित्तीय सहायता, विवाह सुविधाएं और परिवार नियोजन सहायता प्रदान की जाती है।
कहां से आए थे पारसी – Where did Parsi community come from?
पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। इसकी स्थापना 3500 साल पहले प्राचीन ईरान में जरथुस्त्र ने की थी। यह लंबे समय तक एक शक्तिशाली धर्म बना रहा। यह ईरान का आधिकारिक धर्म भी था, जो आज मुस्लिम बहुल है। इसके अनुयायियों को पारसी या ज़ोरबियन कहा जाता है।
ईरान से क्यों गायब हुआ धर्म
वहां ये लोग छठी शताब्दी तक फलते-फूलते रहे। इसके बाद ईरानियों पर इस्लाम अपनाने का दबाव बनाया गया, जिसके कारण इस्लामी क्रांति (Iran Islamic Revolution) हुई। जिन लोगों ने धर्म परिवर्तन करने से इनकार किया, उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। इस दौरान पारसी समुदाय के लोग पूरी दुनिया में पलायन करने लगे। वे उस समय भारत पहुंचे। पूर्वी भारत में पारसियों की अच्छी-खासी आमद होने लगी। वे मुंबई पहुंचने के लिए गुजरात के वलसाड से भी होकर जाते थे। अब ज़्यादातर पारसी मुंबई में रहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि पारसियों की मेहनत ही मुंबई की समृद्धि का असली कारण थी। पारसी कॉलोनियाँ और पारसी व्यंजनों के संकेत कई जगहों पर पाए जा सकते हैं। वे तेज़ी से आगे बढ़ते हैं और उनकी शिक्षा का स्तर ऊँचा है।
पारसी समुदाय की समृद्धि
पारसी समुदाय की समृद्धि और उनकी घटती जनसंख्या दोनों ही ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं से जुड़ी हुई हैं। पारसी समुदाय की समृद्धि उनके व्यावसायिक नैतिकता, शिक्षा और ब्रिटिश शासन के दौरान उन्हें मिले अवसरों के कारण है। उन्होंने भारत में उद्योग और व्यापार में अग्रणी भूमिका निभाई, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।
वास्तव में, पारसी समुदाय ने भारत में शुरुआती औद्योगीकरण और व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटिश शासन के दौरान, पारसियों ने कई व्यवसायों में प्रवेश किया, विशेष रूप से शिपिंग, बैंकिंग, कपड़ा और इस्पात उद्योग। जैसे-जैसे भारत का व्यापार और उद्योग बढ़ा, पारसी समुदाय ने भी अपनी संपत्ति का विस्तार किया। प्रमुख पारसी उद्योगपतियों में सबसे प्रसिद्ध टाटा परिवार है, जिसने टाटा समूह की स्थापना की और इसे वैश्विक उद्योग में बदल दिया।
ब्रिटिश शासन से निकटता
पारसी समुदाय के बारे में कुछ रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि ब्रिटिश राज के दौरान पारसियों को अंग्रेजों से समर्थन मिला था। उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा को अपनाया और पश्चिमी जीवनशैली के प्रति खुलेपन का परिचय दिया, जिससे उन्हें ब्रिटिश प्रशासन और व्यापारिक समुदाय में उच्च दर्जा मिला। पारसी समुदाय के आधुनिक दृष्टिकोण और उनके व्यापारिक नैतिकता ने उन्हें आर्थिक रूप से सफल होने में मदद की।
परोपकार और सामाजिक जिम्मेदारी
पारसियों की संपत्ति का एक और पहलू उनकी परोपकारी प्रवृत्ति है। टाटा ट्रस्ट और अन्य पारसी ट्रस्टों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान और समाज सेवा के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उनकी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा समाज की बेहतरी के लिए समर्पित है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति को स्थिरता मिली है।
पारसी समुदाय की घटती जनसंख्या
आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पारसी समुदाय में जन्म दर (Parsi community Birth Rate) काफी कम है। कई परिवार छोटे हैं और कई पारसी पुरुष और महिलाएं शादी नहीं करते हैं। इसका मुख्य कारण सामाजिक और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अलावा जीवनशैली और आधुनिक सोच है। ज़्यादातर पारसी परिवार एक या दो बच्चों तक सीमित हैं, जिसके कारण समुदाय की आबादी धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
अंतर-विवाह पर प्रतिबंध
पारसी समुदाय के धर्म और परंपराओं के अनुसार, अगर कोई पारसी महिला किसी गैर-पारसी पुरुष से शादी करती है, तो उसके बच्चे पारसी समुदाय में नहीं माने जाते। इससे समुदाय की आबादी और कम हो जाती है। यह नियम पारसी पुरुषों पर लागू नहीं होता, फिर भी यह प्रथा कई बार विवाद का विषय रही है।
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