भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायियों को अहिंसा का मार्ग दिखाया, जो बौद्ध धर्म का एक प्रमुख सिद्धांत है। बुद्ध ने कभी भी मांस खाने की सीधे तौर पर सलाह नहीं दी, लेकिन उन्होंने इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित भी नहीं किया। हालांकि, इस मुद्दे पर बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों में मतभेद हैं और मांस खाने को लेकर कुछ जटिलताएं भी हैं। सीधे तौर पर कहें तो बुद्ध ने मांस खाने के बारे में स्पष्ट रूप से कोई सख्त नियम नहीं बनाए, लेकिन उन्होंने जानवरों को मारने या मारने के लिए प्रेरित करने पर रोक लगाई। बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों में मांसाहार के विषय पर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, तथा इसका पालन क्षेत्रीय और सांस्कृतिक आधार पर किया जाता है। आइए आपको बताते हैं कि भगवान बुद्ध मांसाहारी भोजन खाने के बारे में क्या सोचते थे।
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भगवान बुद्ध और मांस खाना – Lord Buddha and non-vegetarian food
त्रिपिटक यानि बौद्ध धर्मग्रंथ (Buddhist Scriptures) में वर्णित एक नियम के अनुसार, भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायियों से कहा कि वे अपने लिए जानवरों को न मारें और न ही किसी को मारने के लिए कहें। हालाँकि, अगर कोई भिक्षु (साधु) भिक्षाटन के दौरान भोजन प्राप्त करता है, तो उसे यह जाँचने की ज़रूरत नहीं है कि भोजन कैसे प्राप्त किया गया है, बशर्ते मांस तीन शर्तों को पूरा करता हो:
– मांस जानबूझकर (भिक्षु के लिए) नहीं मारा गया है
– मांस को भिक्षु के सामने नहीं मारा गया है
– भिक्षु को यह नहीं पता कि मांस उसके लिए मारा गया है
यह व्यवस्था इसलिए लागू की गई थी क्योंकि बौद्ध भिक्षुओं (Buddhist Monks) को समाज से भिक्षा के रूप में प्राप्त भोजन को ही स्वीकार करना आवश्यक था। यदि उन्हें मांस दिया जाता तो वे उसे खा सकते थे, लेकिन मांस खाने के लिए किसी जानवर को मारना वर्जित था।
बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदाय और मांसाहार
बौद्ध धर्म में मांसाहार के विषय पर विभिन्न संप्रदायों में अलग-अलग विचार हैं। कुछ प्रमुख संप्रदायों में मांसाहार के बारे में निम्नलिखित विचार हैं:
– थेरवाद संप्रदाय, जो मुख्य रूप से श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार और कंबोडिया में प्रचलित है, मांसाहार की अनुमति देता है, बशर्ते कि ऊपर बताई गई तीन शर्तें पूरी हों। मठों में रहने वाले भिक्षु भिक्षा में प्राप्त कोई भी भोजन खाने के लिए बाध्य हैं, चाहे वह मांस हो या शाकाहारी।
– महायान बौद्ध धर्म, जो मुख्य रूप से चीन, जापान, कोरिया और तिब्बत में प्रचलित है, मांसाहार का विरोध करता है। महायान शास्त्रों में मांसाहार को स्पष्ट रूप से हानिकारक और अहिंसा के सिद्धांत के विपरीत बताया गया है। इसलिए, महायान संप्रदाय के अनुयायी आम तौर पर शाकाहारी होते हैं।
– वज्रयान बौद्ध धर्म, जो मुख्य रूप से तिब्बत और हिमालयी क्षेत्रों में प्रचलित है, मांसाहार को अस्वीकार नहीं करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ ठंडे मौसम और कठोर परिस्थितियों के कारण शाकाहारी भोजन उपलब्ध नहीं है। फिर भी, अनुयायियों को अनावश्यक हिंसा से बचने और जानवरों को न मारने की सलाह दी जाती है।
आधुनिक बौद्ध समाज पर मांस खाने का प्रभाव
वर्तमान में, बौद्ध धर्म के अनुयायी अपने भौगोलिक और सांस्कृतिक संदर्भ के अनुसार मांस या शाकाहार का पालन करते हैं। कुछ बौद्ध देशों में, मांस खाना एक आम प्रथा है, जबकि अन्य में शाकाहार अधिक महत्वपूर्ण है। यह ध्यान देने योग्य है कि बौद्ध धर्म का मुख्य सिद्धांत अहिंसा है, और भिक्षुओं से अपेक्षा की जाती है कि वे हिंसा से बचें और उन्हें जो भोजन दिया जाए, उसे खाएं। बौद्ध धर्म में मांस पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं होने का कारण यह था कि बुद्ध ने अपने अनुयायियों के लिए व्यावहारिकता को ध्यान में रखा, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ शाकाहारी भोजन आसानी से उपलब्ध नहीं था।
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