Home विशेष जानिए कौन थे रामस्वरूप वर्मा? जिन्हें राजनीति का ‘कबीर’ कहा जाता है

जानिए कौन थे रामस्वरूप वर्मा? जिन्हें राजनीति का ‘कबीर’ कहा जाता है

0
जानिए कौन थे रामस्वरूप वर्मा? जिन्हें राजनीति का ‘कबीर’ कहा जाता है
Source: Google

Ramswaroop Verma works: भारतीय समाज सुधारकों और सामाजिक न्याय के आंदोलन में रामस्वरूप वर्मा का नाम महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उत्तर प्रदेश के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे रामस्वरूप वर्मा ने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, असमानता और शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। उनके जुझारू व्यक्तित्व और दलितों के उत्थान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें उत्तर भारत में अंबेडकर जैसे नायक का दर्जा दिया है। यहां तक ​​कि 1950 के दशक में उत्तर भारत में जब पेरियार और अंबेडकर के संघर्ष और विचारधारा से प्रेरित एक सांस्कृतिक आंदोलन शुरू हुआ, तो महामना रामस्वरूप वर्मा इस आंदोलन के नेता थे।

और पढ़ें: पेरियार की पत्रकारिता: सामाजिक सुधार और न्याय की आवाज, उनके बारे में जानें ये खास बातें

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

22 अगस्त 1923 को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के गौरीकरन नामक गांव के एक किसान परिवार में जन्मे रामस्वरूप वर्मा का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना था, जिसमें सभी लोग पूर्ण मानवीय सम्मान के साथ रह सकें। किसान परिवार में जन्म लेने के बावजूद उनकी शिक्षा में रुचि थी और उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। महामना रामस्वरूप वर्मा एक किसान परिवार से थे। उन्होंने 1949 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की।

राजनीतिक सफर- Ramswaroop Verma political career

रामस्वरूप वर्मा ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत समाजवादी विचारधारा से की और धीरे-धीरे सामाजिक न्याय के आंदोलन से जुड़ते गए। राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव के करीबी रहे राम स्वरूप वर्मा बार-बार विधायक चुने गए। 1967 में चौधरी चरण सिंह के मुख्यमंत्री रहने के दौरान वे उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री रहे। राम स्वरूप वर्मा आज़ादी के बाद की भारतीय राजनीति में उस पीढ़ी के सक्रिय राजनेता थे, एक जोशीले और समर्पित समाजवादी जिन्होंने अपना जीवन राजनीति और व्यापक जनहित के दर्शन के लिए समर्पित कर दिया।

राजनीति के कबीर थे रामस्वरूप वर्मा

राजनीति के कबीर कहे जाने वाले रामस्वरूप वर्मा पचास साल से भी अधिक समय तक राजनीति में सक्रिय रहे। रामस्वरूप वर्मा मात्र 34 वर्ष की आयु में 1957 में भोगनीपुर विधानसभा से सोशलिस्ट पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए चुने गए। विधान सभा ने उन्हें 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में, 1969 में निर्दलीय के रूप में, 1980 और 1989 में शोषित समाज दल के प्रतिनिधि के रूप में तथा 1999 में छठी बार शोषित समाज दल के प्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित किया।

सामाजिक न्याय की दिशा में योगदान- Ramswaroop Verma works

रामस्वरूप वर्मा ने सामाजिक न्याय की दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने “अर्जक संघ” (Ramswaroop Verma Arjak Sangh) नामक संगठन की स्थापना की जिसका उद्देश्य दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए समानता, शिक्षा और सामाजिक न्याय की दिशा में काम करना था (Ramswaroop Verma work for dalits)। उन्होंने 1 जून 1968 को अर्जक संघ की स्थापना की। अर्जक संघ के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त धार्मिक और जातिगत कुरीतियों का विरोध किया और समाज के हर वर्ग में समानता की भावना जागृत की।

उनकी विचारधारा और कार्यशैली से प्रेरित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बने और समाज में जागरूकता लाने के उनके प्रयासों में उनका साथ दिया। रामस्वरूप वर्मा का यह योगदान उन्हें एक महान समाज सुधारक और दलित आंदोलन के प्रतीक के रूप में स्थापित करता है।

रामस्वरूप का अंबेडकर के लिए आंदोलन

रामस्वरूप ने अंबेडकर की पुस्तकों को जब्त किए जाने के खिलाफ भी आंदोलन किया था। डॉ. भगवान स्वरूप कटियार द्वारा संपादित पुस्तक ‘रामस्वरूप वर्मा: व्यक्तित्व और विचार’ में उपेंद्र पथिक लिखते हैं, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तक जाति भेद का उच्छेद और अछूत कौनपर प्रतिबंध लगाया तो रामस्वरूप ने अर्जक संघ के बैनर तले सरकार के खिलाफ आंदोलन किया और अर्जक संघ के नेता ललई सिंह यादव की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस प्रतिबंध के खिलाफ मुकदमा दायर किया। वर्मा जी स्वयं कानून के अच्छे जानकार थे। अंततः मुकदमा जीत गए और उन्होंने सरकार से अंबेडकर के साहित्य को सभी राजकीय पुस्तकालयों में रखने की अनुमति दिलवा दी।

और पढ़ें: जानें थंगलान के बाद अब बिरसा मुंडा, भीमा कोरेगांव और नांगेली पर भी फिल्म क्यों बननी चाहिए?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here