दलित समुदाय का वो लेखक जिसने हिंदी साहित्य में अपनी कलम से हड़कंप मचा दी। उनकी लिखी हर कविता में लिखे शब्द दिल को छू जाते हैं और शोषक के सीने को छलनी कर देते हैं। उनकी कविता का भाव-बोध कब किसी पाठक का विचार-बोध बन जाता है, यह जानना कठिन है। उनकी कवितायें मनुष्य और मनुष्य के बीच बढ़ती दूरी को पाटती हैं और समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे की वकालत करती हैं। हम बात कर लेखक मलखान सिंह की। मलखान सिंह की कविताएँ आजादी के उस सपने को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवनकाल में देखा था। कुछ आलोचकों ने मलखान सिंह की कविताओं को संक्षिप्त करते हुए उन्हें ‘आक्रोश’ के कवि के रूप में स्थापित करने की कोशिश की और कुछ ने उन्हें ‘जनवादी’ की खादी भी पहनाई। कुछ लोग उन्हें दलित साहित्य का आधुनिक शेक्सपियर कहते थे। आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ खास तथ्य।
मलखान सिंह का प्रारंभिक जीवन
क्रांतिकारी एवं विद्रोही दलित कवि मलखान सिंह का जन्म 30 सितम्बर 1948 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्राम वसई काजी, जिला हाथरस (अब अलीगढ) के एक दलित परिवार में हुआ था। दलित होने के कारण मलखान सिंह जीवन भर इस जातिगत कलंक का शिकार बने रहे। मलखान सिंह ने उच्च शिक्षा अलीगढ और आगरा से प्राप्त की। मलखान सिंह के पिता का नाम श्री भोजराज सिंह और माता का नाम श्रीमती कलावती था। जब वे आठवीं कक्षा के छात्र थे तभी उनकी माता का निधन हो गया।
मलखान सिंह की पढ़ाई
आठवीं कक्षा की परीक्षा गांव से दो किलोमीटर नंगे पैर चलकर पास की थी। मलखान सिंह मानते हैं कि उस समय दलित समुदाय के बच्चों की संख्या बहुत कम थी लेकिन स्कूल में जातिगत भेदभाव था। मलखान सिंह ने चौधरी चरण सिंह की शिक्षा नीति का अनुसरण करते हुए धर्म समाज इंटर कॉलेज और बलवंत विद्यापीठ बिसपुरी, आगरा से 10वीं और 11वीं की पढ़ाई पूरी की और ‘ग्रामीण सेवा डिप्लोमा’ (समाजवादी नीति) पाठ्यक्रम पूरा किया जो बीए के बराबर है। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने 1972 में राजनीति विज्ञान में एमए किया।
नौकरी के लिए किया संघर्ष
पढ़ाई पूरी करने के बाद भी उन्हें लंबे संघर्ष के बाद नौकरी मिली। बाद के दिनों में इलाहाबाद में रहकर सिविल सेवा की तैयारी करते हुए उन्होंने कई बार पीसीएस और आईएएस के लिए इंटरव्यू दिये लेकिन अंतिम रूप से चयनित नहीं हो सके। इसके बाद 1982 में उन्हें संयुक्त उत्तर प्रदेश के इंटर कॉलेज, कुइली टेहरी गढ़वाल (अब उत्तराखंड) में लेक्चरर के पद पर पहली नियुक्ति मिली। इसके बाद उनकी नियुक्ति रामपुर के नेशनल इंटर कॉलेज में हो गयी। यहां उनका कार्यकाल 17-18 साल का था। यहां रामपुर में ही उन्हें प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त किया गया और फिर 1995 में मथुरा में उन्हें एसोसिएट डीआईओएस के पद पर नियुक्त किया गया। 1998 में उन्हें फिरोजाबाद का बेसिक शिक्षा अधिकारी नियुक्त किया गया। उनकी नियुक्ति बीएसए आगरा, झांसी, ललितपुर और महोबा में हुई। फिर वह आगरा में डीआईओएस रहे और 2008 में वहीं से सेवानिवृत्त हो गये।
दलित होने का संघर्ष
देश में अधिकांश दलितों के पास बहुत कम जमीन है या भूमिहीनता की लाइलाज समस्या से पीड़ित हैं, वहीं मलखान सिंह के पूर्वज अच्छी भूमि वाले किसान थे। फिर भी इस जातिवादी समाज में जाति के दंश से बचना कैसे संभव है? मलखान सिंह जीवन भर इसी जातिवाद का शिकार रहे। बड़ी ज़मीन के मालिक होने के बावजूद मलखान सिंह के परिवार की स्थिति बहुत दयनीय थी। भौतिक संसाधनों की कमी के कारण, एक तो उपज बहुत कम होती थी और दूसरे, उपज का एक बड़ा हिस्सा जमींदार को भू-राजस्व के रूप में देना पड़ता था। कई बार तो बड़े किसान की हालत भी एक मजदूर जैसी हो जाती थी।
मलखान सिंह अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि उनके पिता खेती के अलावा गाड़ी चलाने और गांव के बनिया के लिए सामान ढोने का काम करके भी कुछ अतिरिक्त पैसे कमा लेते थे ताकि परिवार का भरण-पोषण ठीक से हो सके। अत्यंत गरीबी के दिनों में उनकी दादी बड़े जमींदारों के यहां चक्की पीसने जाती थीं और चक्की पीसने के बाद मिलने वाली मजदूरी से परिवार का भरण-पोषण करती थीं। मलखान सिंह कहते हैं कि दलित चाहे कितना भी संपन्न हो जाए, लोग उससे यही उम्मीद करते हैं कि वह मजदूर ही बना रहे।
दो बार गए जेल
श्रमिक आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी के कारण मलखान सिंह को दो बार तिहाड़ जेल जाना पड़ा। वह 1979 से 2008 के बीच आगरा के पूर्व बेसिक शिक्षा अधिकारी और एटा के पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक थे।
मलखान सिंह उपलब्धियां
मलखान सिंह को आउटलुक पत्रिका ने 2012 के अपने साहित्यिक सर्वेक्षण में सबसे लोकप्रिय दलित कवि माना था। मलखान सिंह 1996 में अपने पहले कविता संग्रह ‘सुनो ब्राह्मण’ से सुर्खियों में आए। इसके अलावा उनका एक और काव्य संग्रह ‘ज्वालामुखी के मुहाने’ 2016 में प्रकाशित हुआ था। इसी तरह वह अपनी कुछ 15-20 कविताओं के साथ हिंदी में नक्षत्र के रूप में उभरे।
मलखान सिंह निधन
हिंदी दलित साहित्य को नई ऊंचाई देने वाले साहित्यकार मलखान सिंह का 9 अगस्त 2019 को निधन हो गया था। खबरों की मानें तो वह कैंसर से पीड़ित थे।
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