“एक लड़की को हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहना चाहिए, शादी के बाद उसे अपने पति द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए, पति की मृत्यु के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर रहना चाहिए। लेकिन किसी भी परिस्थिति में एक महिला स्वतंत्र नहीं हो सकती।”….. हो सकता है कि ये सुनकर कई इंडिपेंडेंट महिलाएं नाराज़ हो जाएँ। लेकिन ये शब्द हमारे नहीं हैं। ये मनुस्मृति के पाँचवें अध्याय के 148वें श्लोक में लिखा है। अब आपने भी मनुस्मृति के बारे में कहीं न कहीं सुना ही होगा, बस तो अब ये भी जान लीजिये कि इस तरह के श्लोकों की वजह से मनुस्मृति विवादों में रहती है। इसके अलावा मनुस्मृति में दलितों और महिलाओं को लेकर कई रूढ़िवादी विचार व्यक्त किए गए हैं, जिसकी वजह से बाबा साहब अंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाया भी था। आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
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क्या है मनुस्मृति?
मनुस्मृति हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। इसे मनु संहिता या मानव धर्मशास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसे भगवान मनु ने लिखा था जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। उन्हें हिंदू धर्म में मानव जाति का पहला पुरुष भी कहा जाता है। मनु संहिता में कुल 12 अध्याय और 2684 श्लोक हैं। हालाँकि, इसके कुछ संस्करणों में 2,964 श्लोकों का उल्लेख है। संस्कृत में लिखा गया यह ग्रंथ धर्म, सामाजिक व्यवस्था और कानून से जुड़े विषयों पर जानकारी देता है। हालाँकि, इसमें दर्ज जाति व्यवस्था और महिलाओं की स्थिति को लेकर कई बार विवाद भी हुआ है।
ब्रिटिश काल में मनुस्मृति का महत्व
बीबीसी की एक रिपोर्ट कहती है, जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पाया कि मुसलमानों के पास शरिया है जो उनकी कानूनी किताब है। इसी तरह हिंदुओं के पास मनुस्मृति है। इस तरह उन्होंने मुकदमों की सुनवाई के दौरान मनुस्मृति को आधार बनाया। काशी के पंडितों ने अंग्रेजों को सुझाव दिया कि मनुस्मृति को हिंदुओं का सूत्रग्रंथ कहा जाना चाहिए और मनुस्मृति हिंदुओं के मानक धार्मिक ग्रंथ के रूप में जानी जाने लगी।
इतिहासकार नरहर कुरुंदकर के अनुसार, यह पुस्तक ईसा के जन्म के दो-तीन सौ वर्ष बाद लिखी गई थी। इसके प्रथम अध्याय में प्रकृति की रचना, चार वर्णों के लोग, उनके व्यवसाय तथा ब्राह्मणों की महानता का उल्लेख है। इसके द्वितीय अध्याय में ब्रह्मचर्य तथा स्वामियों की सेवा का वर्णन है। तृतीय अध्याय में विवाह के प्रकार, उसकी रीति-रिवाज, चतुर्थ अध्याय में गृहस्थ धर्म तथा खान-पान के नियमों का वर्णन है। वहीं पंचम अध्याय में स्त्रियों के कर्तव्य, पवित्रता और अपवित्रता का वर्णन है। छठा अध्याय संतों से, सातवां अध्याय राजा के कर्तव्यों से, आठवां अध्याय अपराध, न्याय तथा वचन से संबंधित है। नौवां अध्याय पैतृक संपत्ति से, दसवां अध्याय जातियों के प्रकार से, ग्यारहवां अध्याय पापों से तथा बारहवां अध्याय वेदों से संबंधित है। मनुस्मृति में अपराध, अधिकार, कथन तथा न्याय की व्याख्या की गई है।
मनुस्मृति को लेकर क्यों उठता है विवाद?
कुछ लोग मनुस्मृति के पक्ष में हैं तो कुछ इसके विरोध में। आलोचकों का कहना है कि यह किताब बताती है कि महिलाओं को धार्मिक अधिकार नहीं हैं, वे अपने पति की सेवा करके ही स्वर्ग प्राप्त कर सकती हैं। यहीं से जाति और महिलाओं के अधिकारों को लेकर बहस और विवाद शुरू होता है। मनुस्मृति को मानने वाले कहते हैं कि दुनिया का कानून प्रजापति-मनु-भृगु की परंपरा से आया है। इसलिए इनका सम्मान किया जाना चाहिए। कई समर्थक ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि इसके कुछ हिस्सों को छोड़ दिया जाए तो यह पूरी किताब समाज के कल्याण की बात करती है।
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