पेरियार ई.वी. रामासामी (Periyar E.V. Ramasamy), जिन्हें आमतौर पर पेरियार के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख समाज सुधारक, दार्शनिक और पत्रकार थे। उन्हें दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु में सामाजिक सुधार आंदोलनों के लिए एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है। उनकी पत्रकारिता ने न केवल सामाजिक अन्याय और धार्मिक पाखंड पर हमला किया, बल्कि लोगों को जागरूक करने और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का एक माध्यम भी बनी।
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पत्रकारिता की शुरुआत और उद्देश्य- Periyar E.V. Ramasamy career
इरोड में कन्नड़ बलिजा व्यापारियों के परिवार में 17 सितम्बर 1879 को जन्मे इरोड वेंकटप्पा रामास्वामी के पिता का नाम वेंकटप्पा नायकर (या वेंकट) और माता का नाम चिन्नाथी मुथम्मल था। इरोड उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी के कोयम्बटूर क्षेत्र का हिस्सा था। सामाजिक असमानताओं और जातिगत भेदभाव से व्यथित होकर पेरियार ने अपना जीवन समाज सुधार के लिए समर्पित कर दिया। उनकी पत्रकारिता (Periyar E.V. Ramasamy newspapers) का मुख्य उद्देश्य समाज के निचले तबके को सशक्त बनाना, अंधविश्वासों का खंडन करना और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाना था।
उन्होंने अपनी पत्रकारीय यात्रा के माध्यम से जनता तक अपने विचारों और संदेशों को पहुंचाने के लिए कई पत्रिकाओं और समाचार पत्रों की स्थापना की। इनमें प्रमुख नाम हैं ‘कुदी अरसु’, और ‘विदुथलाई’ । ये पत्रिकाएं न केवल तमिल भाषा में लिखी गई थीं, बल्कि उनमें ऐसे मुद्दों को उठाया गया जो उस समय के लिए बेहद संवेदनशील और विवादास्पद थे।
‘कुदी अरसु’ और सामाजिक प्रभाव
पेरियार ने 1925 में ‘कुदी अरसु’ (Periyar E.V. Ramasamy kudi arasu) की शुरुआत की, जो एक मासिक पत्रिका थी। इसका मुख्य उद्देश्य जातिवाद और धार्मिक आडंबरों के खिलाफ आवाज उठाना था। इस पत्रिका में उन्होंने ब्राह्मणवाद के वर्चस्व, महिलाओं की स्थिति, और धार्मिक पाखंड जैसे मुद्दों पर खुलकर लिखा।
अखबार निकालने की आवश्यकता पर पेरियार ने ‘कुदी आरसु’ के पहले ही अंक में लिखा था—
‘इस देश में अनेकानेक समाचारपत्र हैं। किंतु वे अपनी आत्मा, अपने विवेक के प्रति ईमानदार नहीं हैं। उन सबके विपरीत मैं ‘कुदी आरसु’ में, सत्य की साहसपूर्ण अभिव्यक्ति, जैसा कि मैं उसे देखता हूं—देने को संकल्पबद्ध हूं।’
‘कुदी अरसु’ में पेरियार ने अपनी बेबाक शैली में सामाजिक अन्याय को चुनौती दी और सुधारवादी विचारों का प्रचार किया। यह पत्रिका जल्द ही तमिलनाडु के लोगों के बीच लोकप्रिय हो गई और इसका प्रभाव व्यापक रूप से महसूस किया गया। उन्होंने इस पत्रिका के माध्यम से समाज के दबे-कुचले वर्गों को उनकी स्थिति के प्रति जागरूक किया और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
कुदी आरसु के लेख
‘कुदी अरासु’ में ऐसे लेख प्रकाशित होते थे, जिनमें जातिगत भेदभाव, धार्मिक पाखंड और पौराणिक मिथकों पर व्यंग्य किया जाता था। लेखों की भाषा सरल लेकिन व्यंग्यात्मक होती थी – ‘दान के लिए कौन उपयुक्त है – ब्राह्मण’, ‘हम ब्राह्मणों की आलोचना क्यों करते हैं?’, ‘तीर्थस्थलों और तीर्थस्थलों का सच’, ‘क्या ‘कुदी अरासु’ द्वारा ब्राह्मणों की आलोचना तर्कसंगत है?’ जैसे शीर्षक न केवल ब्राह्मणवाद पर सीधा हमला करते थे, बल्कि धर्म की कठोरता की ओर भी इशारा करते थे, जिससे उस समय पूरा हिंदू समाज ग्रसित था।
‘विदुथलाई’ और नास्तिकता का प्रचार
पेरियार की दूसरी महत्वपूर्ण पत्रिका ‘विदुथलाई’ (Periyar E.V. viduthalai) थी, जो उनके नास्तिक और तर्कसंगत विचारों का प्रचार करती थी। यह पत्रिका लोगों को धार्मिक अंधविश्वासों से मुक्त करने और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए जानी जाती थी। पेरियार ने इसे एक ऐसे मंच के रूप में इस्तेमाल किया जहां से वे धार्मिक ग्रंथों और रीतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कर सकते थे।
पेरियार द्वारा शुरू किए गए समाचार पत्रों में ‘विदुथलाई’ का स्थान बहुत ऊंचा है। ‘विदुथलाई’ का अर्थ है स्वतंत्रता। यह समाचार पत्र पहली बार 1935 में तमिल में प्रकाशित हुआ था। यह समाचार पत्र प्रतिदिन प्रकाशित होता था। 1935 तक ‘आत्म-सम्मान आंदोलन’ ने जन चेतना में अपनी पैठ बना ली थी। इसने हर शहर और जिले में शाखाएँ खोल दी थीं।
‘विदुथलाई’ का मुख्य उद्देश्य
इस अख़बार का मुख्य उद्देश्य ब्राह्मणवादी रीति-रिवाजों, कपट और जादू-टोने के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना था। बच्चों को वैज्ञानिक रूप से सोचने के लिए प्रोत्साहित करना। नतीजतन, यह पुराणों और वेदों जैसे धार्मिक लेखन में पाए जाने वाले मिथकों की आलोचना करता था। नतीजतन, कुछ लोग इससे बहुत परेशान रहते थे। अख़बार के संपादक मुत्तुसामी को एक बार छह महीने की कैद हुई थी, क्योंकि उन पर आर्यों और द्रविड़ों के बीच दुश्मनी और विभाजन को भड़काने का आरोप लगाया गया था।
पेरियार की लेखनी की शैली
पेरियार की पत्रकारिता की सबसे खास बात उनकी लेखनी की बेबाकी और स्पष्टता थी। वे अपने विचारों को बिना किसी डर के व्यक्त करते थे। उनकी लेखनी में समाज की कुरीतियों पर कड़ा प्रहार था, और वे अपने शब्दों से लोगों को सोचने पर मजबूर करते थे। उन्होंने अपने लेखों में धार्मिक नेताओं और सामाजिक व्यवस्थाओं की आलोचना की, जो समाज में असमानता और अन्याय को बढ़ावा देती थीं।
पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक सुधार
पेरियार की पत्रकारिता ने समाज में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके लेखों ने दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। उनके प्रयासों के कारण समाज में धीरे-धीरे बदलाव आने लगे और लोग अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक हुए।
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