कहते हैं कि जहां इंसान के शब्द नहीं पहुंच पाते, वहां कभी-कभी संगीत पहुंच जाता है। संगीत में दिल की आवाज को रूह तक पहुंचाने की ताकत होती है। यही वजह है कि लोग संगीत के इतने दीवाने होते हैं। इसका उदाहरण आप पंजाब के लुधियाना गांव से ले सकते हैं, जो संगीत के प्रति इतना दीवाना है कि यहां के बच्चे भी अपना पहला शब्द बोलने से पहले ही संगीत की भाषा सीख लेते हैं और बेहद छोटी उम्र में ही संगीत के उस्ताद बन जाते हैं। इस गांव का बच्चा-बच्चा रागों और शास्त्रीय संगीत से परिचित है। यही वजह है कि इसे पंजाब का ‘सुरीला गांव’ भी कहा जाता है।
पंजाब का सुरीला गांव
पंजाब के पास भैनी साहिब नाम का एक गांव है, इस गांव में पिछले 100 सालों से माता-पिता अपने बच्चों को संगीत सिखा रहे हैं। यहां का हर बच्चा, बड़ा और बूढ़ा शास्त्रीय संगीत पसंद करता है और गाना-बजाना भी बखूबी जानता है। संगीत इस गांव के लोगों के जीवन का अहम हिस्सा है। गांव के लोग चाहे कोई भी काम करें, वे संगीत से जुड़े रहते हैं। किसान हो या सरकारी नौकरी करने वाला व्यक्ति, हर कोई संगीत प्रेमी है।
स्कूल के बाद म्यूज़िक सीखते हैं बच्चे
इस गांव का हर बच्चा स्कूल के बाद सीधे संगीत की शिक्षा लेने जाता है। ये बच्चे महान संगीतज्ञों की तस्वीरों के सामने बैठते हैं और गाना, तबला, सरोद, सितार, दिलरुबा और अन्य वाद्ययंत्र बजाना सीखते हैं। ये बच्चे गुरु नानक और श्री कृष्ण की कहानियाँ सुनते हैं। हालाँकि, ये बच्चे संगीतकार बनने के लिए संगीत का अभ्यास नहीं करते हैं। बल्कि, ग्रामीणों ने खुद को बेहतर बनाने के लिए इस संगीत विरासत को अपनाया है। गांव के निवासी बलवंत सिंह नामधारी ने कहा, “हमारा मानना है कि संगीत सीखने से बच्चों को बेहतर इंसान बनने में मदद मिलती है। पेशेवर संगीतकार बनना हमारा लक्ष्य नहीं है।”
ऐसे बना भैनी साहिब सुरीला गांव
गांव वालों के मुताबिक संगीत की यह परंपरा करीब 100 साल पहले एक नामधारी आध्यात्मिक गुरु ने शुरू की थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब एक सदी पहले नामधारी आध्यात्मिक गुरु सतगुरु प्रताप सिंह ने गांव के बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाने की परंपरा शुरू की थी। उन्होंने कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि संगीत की खुशबू हर बच्चे को छुए।’
सतगुरु प्रताप सिंह की मृत्यु 1959 में हो गई, लेकिन उनके बेटे सतगुरु जगजीत सिंह ने अपने पिता की इच्छा के अनुसार संगीत सिखाना जारी रखा। उनके कुशल नेतृत्व में, भैनी साहिब एक ऐसे गांव के रूप में विकसित हुआ जिसने शास्त्रीय संगीत और सदियों पुराने पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों को संरक्षित और बढ़ावा दिया। आज, गांव का हर व्यक्ति संगीत से जुड़ा हुआ है, और आने वाली पीढ़ियाँ भी इसमें शामिल होंगी।
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