आपने दुनिया की ऐसी कई खतरनाक जेलों के बारे में सुना होगा, जहां पर कैदियों को अलग-अलग तरीके से टॉर्चर किया जाता है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जेल के बारे में बताएंगे, जिसे धरती पर किसी नरक से कम नहीं माना जाता। ये जेल अमेरिका ने कैरेबियाई देश क्यूबा के ग्वांतनामो में खोली थीं।
ग्वांतनामो में मौजूद जेल एक बार फिर से सुर्खियों में आ गई है। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस जेल पर ताला लगाने की बात कही है। वैसे बाइडेन ऐसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं जो ग्वांतनामो जेल को बंद करने की बात कह रहे हैं। इससे पहले जॉर्ज डब्ल्यू बूथ और बराक ओबामा भी ऐसा वादा कर चुके है, लेकिन उसमें सफल नहीं हुए।
आप ये सोच रहे होंगे कि आखिर इस ग्वांतनामो बे जेल की कहानी क्या है, जिसे किसी नरक से कम नहीं माना जाता? क्यों इसको बार-बार बंद करने की मांग उठती है? और क्यों वादों के बाद भी अमेरिकी राष्ट्रपति इस बंद करने में कामयाब नहीं हो पाते? आइए आपको इसकी पूरी कहानी बताते हैं…
9/11 अटैक के बाद यहां खोली गई जेल
ग्वांतनामो बे, वो जगह है जिसे क्यूबा ने अमेरिका को लीज पर दे दिया था। ग्वांतनामो बे में जेल साल 2001 के बाद बनाई गई। ये वो साल था जब अमेरिका पर सबसे बड़ा हमला हुआ। 9/11 अटैक। आतंकी संगठन अल-कायदा ने अमेरिका में जबरदस्त तबाही मचाई। हमले में 3 हजार के करीब लोग मारे गए। पूरी दुनिया इस हमले से सहम उठी। तब जॉर्ज बुश थे अमेरिका के राष्ट्रपति। उन्होंने इस हमले के दोषियों को घर में घुसकर मारने का ऐलान कर दिया था। जिसके बाद शुरू हुआ अमेरिका का आतंक पर करारा प्रहार।
20 जनवरी 2002 को ग्वांतनामो बे में इस जेल को खोला गया था। अमेरिका ने 9/11 हमले के बाद कार्रवाई करते हुए संदिग्धों की गिरफ्तारी शुरू की। अटैक के बाद केवल अफगानिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया में हमले से जुड़े लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा था। गिरफ्तार किए जाने वाले लोगों की संख्या काफी ज्यादा थी। पहले तो उनको अफगानिस्तान के बेस पर ही रखा गया, लेकिन ये अस्थायी ठिकाना था।
संदिग्धों को रखने के लिए नई जगह की तलाश की जा रही थीं। इसके लिए ऐसी जगहें चाहिए थीं, जो सुरक्षित होने के साथ कानूनी बाधाओं से भी दूर हो। इसके बाद ग्वांतनामो बे के नाम पर मुहर लगी। क्योंकि ये जगह अमेरिका में मौजूद नहीं थीं, इसलिए वहां पर अमेरिका के कानून भी लागू नहीं होते थे। यहां पर डिटेंशन सेंटर बनाने के लिए इंफ़्रास्ट्रक्चर था और साथ में सुरक्षा भी।
यहां पर सबसे खतरनाक संदिग्ध आतंकियों को रखा गया। पूछताछ के दौरान कैदियों पर अंतहीन टॉर्चर किया गया, जो कई बार अमानवता की हदें भी पार कर देता। जब प्रेस में इसकी खबरें छपने लगी, तो हंगामा खड़ा हो गया। अमेरिका के खिलाफ मानवाधिकार संगठनों ने मोर्चा खोला, लेकिन अमेरिका इसे सही ठहराता रहा। अमेरिका ने बताया कि टॉर्चर का फायदा भी मिला। इसके चलते ही 9/11 हमले के मास्टमाइंड खालिद शेख मोहम्मद ने अल-कायदा के आगे के प्लान के बारे में खुलासा किया।
कैदियों को ऐसे किया जाता टॉर्चर
लेकिन यहां पर ऐसे भी कई कैदियों को बंद किया गया था, जिन पर कोई चार्ज तक नहीं था। केवल शक के आधार पर उनको यहां रखा गया। ऐसे लोगों को ना तो कानूनी मदद मिल रही थीं और अलग से अमानवीय यातनाएं भी झेलनी पड़ रही थीं। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो यहां बंद कैदियों ऐसे टॉर्चर किया जाता था, जिसके बारे में जानकर रूंह कांप जाएं। उदाहरण के तौर पर टॉर्चर करने के लिए यौन अंगों को सिगरेट से जला देना। एक पैर में रस्सी बांधकर छत से लटका देना। ऐसे कई तरीकों से जेल में बंद कैदियों के साथ बर्बरता की जाती थीं।
क्यों अब तक इस जेल को बंद नहीं किया जा सका?
इसके चलते ही ग्वांतनामो बे आलोचनाओं में घिर गया। जब विवाद बढ़ने लगा, तो जॉर्ज बुश ने इसको बंद कराने पर विचार करना शुरू कर दिया। तब उपराष्ट्रपति डिक चेनी और चीफ ऑफ स्टाफ डेविड एस़ एडिंगटन ने इस फैसले का विरोध किया। उनका ये मानना था कि अगर ग्वांतनामो जेल को बंद किया जाता है, तो ऐसा लगेगा कि अमेरिका आतंकवादियों के साथ है और इससे छवि खराब होगी। तब बुश का कार्यकाल अपने अंतिम दौर में आ गया था और जेल को बंद करने का विचार वहीं खत्म हो गया। हालांकि तब जेल में बंद कैदियों की संख्या 500 तक पहुंच गई थीं, जो कभी 779 थीं।
फिर बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने भी अपनी चुनावी रैलियों में जेल को बंद करने का वादा किया। ओबामा जैसे ही राष्ट्रपति बने उसके 2 दिन बाद उन्होंने जेल बंद करने के लिए हस्ताक्षर भी कर दिए और इसके लिए डेडलाइन तय की। तब ओबामा ने ये कहा ता कि अगर संसद में प्रस्ताव पास नहीं होता, तो वो इसे बंद करने के लिए वीटो पॉवर का यूज करेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।
संसद में इस प्रस्ताव का खूब विरोध हुआ। ओबामा ने अपने इस वादे को पूरा नहीं कर पाने के लिए ‘गंदी राजनीति’ को जिम्मेदार ठहराया। भले ही ओबामा भी इस जेल को बंद कराने में कामयाब नहीं हुए, लेकिन उन्होंने यहां बंद कैदियों की संख्या को काफी कम करा दिया था। यहां तब तक कैदियों की संख्या सिर्फ 41 तक आ गई थीं। बाकि कैदियों को या रिहा कर दिया गया या फिर दूसरे जेलों में शिफ्ट।
जब ट्रंप सत्ता में आए, तो उन्होंने इस जेल को बंद कराने से इनकार कर दिया। ट्रंप ने तो ये तक कह दिया कि इस जेल में और संदिग्ध अपराधियों को रखा जाएगा। हालांकि उन्होंने ऐसा किया नहीं। ट्रंप के कार्यकाल के दौरान यहां कैदियों की संख्या 40 थीं।
तीन कैदी और होंगे रिहा?
अब इस जेल में बंद तीन और कैदियों को रिहा करने का नोटिस आया। जिसमें पाकिस्तान के सैफुल्लाह प्राचा का नाम भी शामिल है। ये यहां बंद सबसे उम्रदराज कैदी हैं, जिनकी उम्र 73 साल है। जब इनको गिरफ्तार किया गया, उससे पहले पाकिस्तान में इनका काफी अच्छा बिजनेस था। वो न्यूयॉर्क में रहते थे। 2003 में सैफुल्लाह को थाईलैंड से अल-कायदा को मदद पहुंचाने के शक में गिरफ्तार किया गया। हालांकि सैफुल्लाह ने इन आरोपों को इनकार कर दिया। उन पर कोई क्रिमिनल चार्ज भी नहीं लगा। फिर भी कई सालों से वो इस जेल में बंद हैं। हालांकि अब उनका पाकिस्तान वापस लौटने का रास्ता खुल गया, लेकिन ये अब भी उतना आसान नहीं होगा। इसके लिए अमेरिका-पाकिस्तान में समझौता होगा। पाकिस्तान के तैयार होने पर ही सैफुल्लाह रिहा हो सकेंगे।
क्या जेल खाली करा पाएंगे बाइडेन?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इस जेल को एक बार फिर से चर्चाओं में ला दिया। वो इस जेल को पूरी तरह से खाली कराने का वादा कर दिया है। हालांकि उनके लिए भी ऐसा कर पाना आसान नहीं होगा। इसके पीछे की कई वजहें है। इसके लिए बाइडेन को संसद में रिपब्लिकन पार्टी के विरोध का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा एक बड़ा धड़ा ऐसा भी हो, जो संदिग्ध आतंकियों के साथ ऐसा अमानवीय टॉर्चर करने के समर्थन में हैं। अगर बाइडेन ऐसा करते हैं, तो उनको ऐसे लोगों का विरोध झेलना पड़ सकता है। ऐसे में क्या बाइडेन वो काम कर पाते हैं, जो अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति करने में सफल नहीं हो पाए? ये देखने वाली बात होगी…