वैसे तो हर फील्ड का अपना अलग ड्रेस कोड होता है। जैसे डॉक्टर अक्सर व्हाइट कोट में नजर आते हैं, तो पुलिस की वर्दी खाकी होती है। ठीक वैसे ही वकील काले कोट पहने हुए दिखते हैं।
वकालत की शुरुआत 1327 में एडवर्ड तर्तीय ने की थी और उस समय ड्रेस कोड के आधार पर न्यायधीशों की वेशभूषा तैयार की गई थी। तब के समय मे जज अपने सिर पर एक बाल वाला विग और लाल रंग के कपड़े पहनते थे।
फिर आया सन् 1600, जिसके बाद वकीलों की वेशभूषा मे बदलाव लाया गया। 1637 मे वकीलों और न्यायधीशों के लिए काले रंग की वेशभूषा तैयार की गई थी।
फिर जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो उसके बाद संविधान बना और संविधान बनने के बाद 1961 मे वकीलों के लिए नियम बनाए गए। जिसमें वकीलों को काले रंग के कोट पहनने का आदेश दिया गया। इसके बाद से वकील कोई भी केस लड़ने काले रंग की वेशभूषा में ही जाते थे। वकीलों के इस काले रंग की वेशभूषा पहनने से हमारे देश को एक अलग पहचान मिलती थी।
ये तो हुई बात भारत की। लेकिन विदेशों में वकीलों की काले रंग की वेशभूषा का चलन बहुत पहले से ही चलता आ रहा है। कहा जाता है कि जब इंग्लैड के राजा चालर्स की मौत हुई, तो उनकी शोक सभा मे सारे वकील काले रंग की वेशभूषा में पहुंचे थे, जिससे वकीलों को एक अलग पहचान मिली और तब से ही काले रंग की वेशभूषा वकीलों के लिए अनिवार्य हो गई। माना जाता है की काला कोट पहनने से वकीलों अनुशासन लाता है और न्याय के प्रति विश्वास जगाता है।
वैसे माना तो ये भी जाता है कि कानून अंधा होता है, क्योंकि दृष्टिहीन व्यक्ति किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। काले कोट पहनने का मतलब है की वकील बिना पक्षपात के केस लड़े।