स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व शायद ही किसी को इंस्पायर नहीं करता होगा। सालों साल बीतने के बाद भी यहां तक की कई सदियों तक स्वामी विवेकानंद युवाओं के आर्दश बने रहेंगे। एक भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी जी का जिक्र किया। जिसमें उन्होंने कहा कि 1896 में ही स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत 50 साल बाद आजाद हो जाएगा। यहां से अंग्रेजों को जाना होगा। तब फिर से भारत माता का मस्तक ऊंचा होगा। नरेंद्र मोदी के ऐसा कहना क्या सच है। क्या वाकई स्वामी विवेकानंद ने ये कहा था।
सच तो ये हैं कि देश की आजादी ही नहीं बल्कि समय से पहले ही कई कई बातें स्वामी विवेकानंद ने कहीं जो पूरी तरह से सच साबित हुईं। अपने एक अनुयायी मैरी को 01 नवंबर 1896 को उन्होंने एक लेटर लिखा और बताया कि 50 साल बाद आखिर क्या होगा और भारत के सामने आजादी के बाद कौन सा संकट होगा। उन्होंने कई सटीक अनुमान लगाए।
उन्होंने लिखा कि 50 साल बाद कुछ वक्त के लिए अपने भगवान को लोग भूल जाएंगे और बस भारत माता को याद करेंगे। उनकी ही जय-जयकार करेंगे। उन्हीं के सामने झुकेंगे। हालांकि 20वीं सदी के आखिर में भी ऐसा लगा ही नहीं कि अंग्रेजी शासन देश से बाहर हो पाएगा। ना कोई आंदोलन, ना कोई विरोध लेकिन एकाएक ही 50 साल बाद अंग्रेजों का शासन देश से खत्म हुआ।
उन्होंने ये भी कहा था कि देश को एकदम और बिल्कुल नए तरीके से आजादी मिलेगी। हुआ भी यही। जब सेकेंड वर्ल्ड वॉर हो रहा था, ऐसे में हालात अंग्रेजों के खिलाफ होते चले गए और आखिर में उन्हें देश छोड़ना पड़ा। आजादी के साथ साथ देश भी खंडित हुआ। जो कि एकदम अलग तरह की आजादी रही। स्वामी विवेकानंद का अनुमान था कि जब अंग्रेज भारत को छोड़ेंगे तो चीन का खतरा सबसे बड़ा हो जाएगा। आज आप खुद देख सकते हैं कि पहले 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ और अब चीन के साथ भारत के संबंधों में उतार चढ़ाव बना रहता है।
उन्होंने आगे लिखा, मानव समाज में पुजारी, सैनिक, व्यापारी और मजदूर जैसे लोगों का शासन होगा। हर राज्य की अपनी खूबियां होंगी, अपनी कमियां होंगी। शिक्षा खूब फैलेगी पर सही मायनों में असाधारण जीनियस काफी कम रहेंगे। फिलहाल जो शुद्रों यानी कि अंग्रेजों का जो शासन हम देख रहे हैं पर ये खत्म होगा। अंग्रेजों के बाद चीन और रूस मिलकर दुनिया में कमांड कर पाएंगें और आगे की खास बातें रूस और चीन से ही आएगी।
स्वामी जी का अनुमान था कि बारूद के मुहाने पर ही यूरोप बैठा है जो कभी भी फट सकता है। जो हुआ वो सबने देखा कि कैसे दोनों वर्ल्ड वार से अगर किसी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ तो वो यूरोपीय देश ही थे और तो और वर्ल्ड वार शुरू ही यूरोप से हुई।
स्वामी विवेकानंद पहले नरेंद्र नाथ दत्त हुआ करते थे, जो साल 1863 में 12 जनवरी को कोलकाता में पैदा हुए। जबकि उनका महज 39 साल की उम्र में निधन हो गया। तब वे बेलूर मठ थे। स्वामी जी वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु हुए। देश ही नहीं देश से बाहर भी उनके हजारों शिष्य हुए। अमेरिका के शिकागो में 1893 में एक विश्व धर्म महासभा का आयोजन किया गया, जिसमें विवेकानंद ने भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया और यहां पर दिया गया उनका भाषण चमत्कृत सा था। उनकी इसी दिल छू जाने वाली भाषण के बाद अमेरिका और यूरोप में भारतीय वेदांत दर्शन के प्रति दिलचस्पी जगी थी। इस सम्मेलन में उनको 02 मिनट का वक्त दिया गया। स्वामी जी ने अपने भाषण को “मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों” कहकर शुरू किया। उनके इस संबोधन ने सबका दिल जीत लिया और सबने बड़े ही ध्यान से उनके कहे एक एक शब्द को सुना।
विवेकानंद कोलकाता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ फैमिली में पैदा हुए और पढ़ाई लिखाई भी अच्छी खासी की। पिता विश्वनाथ दत्त चाहते थे कि विवेकानंद कोई अच्छी सी नौकरी कर लें पर विवेकानंद पर मां भुवनेश्वरी देवी का काफी प्रभाव रहा, जो कि काली भक्त थी हो, पूजापाठ में उनका मन रमता था। ऐसे में विवेकानंद का झुकाव आध्यात्म की तरफ हुआ और वे निकल गए घर से एक गुरु की तलाश में। रामकृष्ण परमहंस से वे काफी प्रभावित हुए और उनको अपना गुरु बना लिया। विवेकानंद ने देश भ्रमण किया। वे काफी वक्त तक भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा करते रहे। उन्होंने करीब से भारत को जानने और समझने की कोशिश की। उन्होंने देश के लोगों में खूब आत्मविश्वास भरा। वो कहते थे कि जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।