आज हम जानेंगे सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देवजी और नरभक्षी कौडा की साखी जिसे बार बात संगत में दोहरायी जाती है। इसके अलावा गुरु जी की कुरुक्षेत्र यात्रा की साखी भी दोहराई जाती है, तो आज हम इन दोनों साखी को जानेंगे…
अपनी प्रथम यात्रा के दौरान गुरु नानक देव जी ने कुछ वक्त तक अपने घर सुलतानपुर में बिताया और फिर उन्होंने यात्रा जारी रखते हुए करतारपुर, धर्मकोट, बठिण्डा, सिरसा, काबुलनगर, नर्मदा के किनारे पहुंचे और वहां से नासिक से पञ्चमड़ी के घने जंगलों में होकर गए। बाबाजी के साथ निकले मरदाना को जंगल में काफी डर लगा तो उन्होंने गुरुजी से वापस जाने की विनती की, जिसमें गुरु जी के समझाने के बाद भी मरदाना घर की ओर चलने लगा।
रास्ते में उसने कौडा नरभक्षी को देखा तो उनके तो होश उड़ गए। कौडा नरभक्षी तो गर्म तेल के कड़ाहे में इंसान को पकाने के लिए बिल्कुल रेडी था। मरदाना अपनी मृत्यु को बिल्कुल अपने सामने ही देख रहे थे और मन ही मन गुरु नानक देव जी को भी याद कर रहे थे। अब शिष्य ने याद किया था गुरु जी को तो जाहिर है गुरु जी शिष्य की सहायता करेंगे तो गुरुनानक देव जी ने अपने योगबल से सब जान लिया और अपने ही योग से गुरु जी ने गर्म तेल को ठण्डा कर दिया फिर क्या था गुरु जी की इस तरह के चमत्कार को देख राक्षस खुद गुरुजी की चरणों में जा गिरा। और उसने कहा आप मुझे जहॉं ले जाना चाहेंगे, मैं आपकी शरण में ही रहूँगा, क्योंकि आपने मुझे नया जीवन दिया।
क्या आपको पता है कि कुरुक्षेत्र गमन से जुड़ी भी एक साखी है गुरु नानक देव जी की। दरअसल, दक्षिण प्रदेश की यात्रा के बाद बाबा जी पंजाब आते वक्त कुरुक्षेत्र में ही रुके जहां पर उन्होंने जातिगत ब्राह्मण के घमंड को तोड़ा औक उपदेश देते हुए ये कहा कि सदाचार के पालन से मनुष्य कुलीन होता है न कि कुलीन वंश में जन्म लेकर। गुरु जी के वचनों से ब्राह्मण लज्जित हुआ और गुरु जी को प्रणाम किया और उनकी स्तुति की।