दुनियाभर में कई कई तरह के एक्सपेरिमेंट्स के बारे में आपने सुना होगा। कुछ एक्सपेरिमेंट्स छुप छुपाकर सीक्रेटली की जाती रही तो कुछ के बारे में पब्लिकली एक्प्लेन किया जाता रहा है। एक एक्सपेरिमेंट 1940 के डिकेड में किया गया, जिसे जानने के बाद रूह तक कांप जाती है। क्या था ये एक्सपेरिमेंट जो अपने तरह का एकलौता एक्सपेरिमेंट था ,जिसे दूर देश रूस में अंजाम दिया गया। आइए इस बारे में जानते हैं…
रूस में एक एक्सपेरिमेंट हुआ जिसे नाम दिया गया ‘रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट’ और इसके लिए जेल में बंद पांच कैदियों के साथ के एक डील हुई।
क्या थी ये डील?
दरअसल, डील के तहत उन कैदियों से कहा गया कि अगर वो इस एक्सपेरिमेंट का हिस्सा बनते हैं तो जैसे ही ये एक्सपेरिमेंट खत्म होगा उनको तुरंत आजाद कर दिया जाएगा।
क्या करना था कैदियों को?
उन पांचों को बताया गया कि उन्हें बिना सोए 30 दिन तक रहना होगा और इसके लिए पांचों कैदी मान गए। इसके बाद उनको एक एयर टाइट चैंबर में रखा गया और उसमें एक गैस डाली गयी जिससे कि कैदियों को नींद ही न आए। ऐसा कर वैज्ञानिक देखना चाहते थे कि आखिर उनपर इसका क्या असर हो रहा है।
शुरू शुरू में तो सब ओके था, सारे कैदी आराम से बातें करते हुए वक्त गुजारने लगे और वैज्ञानिक उनकी बातों को रिकॉर्ड करते रहे और एक कांच के जरिए उनको देखते रहे। करीब एक हफ्ते तक तो सबकुछ ओके ओके रहा पर वक्त बीतने के साथ उनकी हालत बिगड़ने लगी। बंद कैदियों ने बातें करना बंद कर दिया और बैठे-बैठे खुद से बातें करने लगे। 10 दिन बीत चुके थे और अब 11वां दिन था, इस दिन एक बेहद अजीबो गरीब बात हुई। एकाएक एक कैदी अचानक ही जोर से चिल्लाने लगा। इतनी जोर से कि वोकल कॉर्ड फट गई थी। यहां चौंकाने वाली वात ये हुई कि उसके चिल्लाने का कोई भी असर बाकि के कैदियों पर हुआ ही नहीं।
कैदियों की ऐसी हालत देख एक्सपेरिमेंट रोकने का डिसिजन लिया गया और 15वें उस चैंबर में सोने से रोकने वाली गैस नहीं डाली गयी पर ऐसा करने का उल्टा असर हुआ और सारे कैदी एकाएक चिल्लाने लगे और जोर जोर से यही कहने लगे कि हमको मत बाहर निकालो, हम नहीं आना चाहते बाहर। यहां तक कि चैंबर में ही एक कैदी की मौत हुई।
कैदियों की हालत देख एक्सपेरिमेंट कर रहे वैज्ञानिकों के होश ही उड़ गए। उन्होंने देखा कि कैदियों के कई अंगों पर मांस ही नहीं थे, बस हड्डियां थी। शायद वे एक दूसरे के या खुदका ही मांस खाने लगे थे।
कैदियों की ऐसी रोंगटे खड़े कर देने वाली हालत देखकर वैज्ञानिकों ने उन्हें मार देने की सोची और इसके लिए टीम के कमांडर से बात की गयी पर उसने मना किया और एक्सपेरिमेंट जारी रखने को कहा। हालांकि एक वैज्ञानिक ने ही बाद में उन कैदियों को मार दिया और एक्सपेरिमेंट से रिलेटेड तमाम तरह के प्रूफ को मिटा दिया।
हालांकि कहानी में कितनी सच्चाई है, क्या ये बनावटी है या फिर असल ये तो पता नहीं पर साल 2010 में क्रीपिपास्ता डॉट विकिया डॉट कॉम पर नामक वेबसाइट पर इस स्टोरी को पोस्ट किया गया था जोकि खासा वायरल हुई थी। हालांकि कइयों ने इसे सच माना क्योंकि First और second world war के वक्त जापान और चीन जैसे देशों में ऐसे घातक एक्पेरिमेंट्स हो चुके थे जिसमें इंसानों ही ब्जेक्ट बनाया जाता था।