“सजाए-मौत” ये शब्द जितना छोटा है उससे कई ज्यादा भार इसके मतलब का है, जब कोर्ट की चार दीवारी में किसी आरोपी को ये सजा सुनाई जाती है तो मानों उसके पैरों तले जमीन खीसकने जैसा आभास होता है क्योंकि इसके बाद बचना काफी मुश्किल हो सकता है. वहीं, आप ये तो जानते ही होंगे की जब किसी कैदी को फांसी के फंदे पर लटकाया जाता है तो चंद सेकेंड में उसकी मौत हो जाती है. आज हम आपको एक ऐसे आरोपी के बारे में बताने जा रहे हैं जो फांसी पर लटकने के 2 घंटे बाद भी जिंदा रहा था, आइए जानते हैं…
फांसी पर लटकने के बाद 2 घंटे तक जिंदा रहा था रंगा
साल 1982 की बात है जब तिहाड़ जेल में फांसी की सजा देने के बाद भी एक आरोपी दो घंटे तक जीवित रहा था. दरअसल, गीता चोपड़ा दुष्कर्म और हत्याकांड में दो आरोपियों रंगा और बिल्ला को सजाए-मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसके चलते 31 जनवरी, 1982 को तिहाड़ जेल में दोनों को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया था. इसके बाद जेल अधिकारियों और वहां मौजूद जल्लाद को लगा कि ये दोनों मर चुके हैं, हालांकि ऐसा नहीं हुआ था.
आपको बता दें कि रंगा और बिल्ला को फांसी देने के दो घंटे बाद जब आगे की प्रक्रिया की गई तो उसके तहत पोस्टमार्टम से पहले शव की जांच के लिए डॉक्टर फांसी घर पहुंचे और वो नजारा देख हैरान रह गए. दरअसल, रंगा और बिल्ला के शव की जांच करने पर डॉक्टर ने पाया कि बिल्ला मर चुका था, लेकिन जब रंगा की नाड़ी की जांची तो वो चल रही था और वो जीवित था.
फांसी के बाद भी जिंदा मिलने पर मचा था हड़कंप
जैसे ही फांसी घर ये बात फैली कि खूंखार कैदी रंगा जिंदा है तो जेल कर्मचारियों, अधिकारियों और जल्लाद के बीच हड़कंप मच गया था. ये जानने के बाद जल्लाद फिर से फांसी घर में गया था और फिर उसने रंगा के गले में लगे फंदे को नीचे खींचा था, जिससे उसकी मौत हो गई थी. ये ही कारण है कि अब फांसी देने से पहले आरोपियों के वजन के बराबर की डमी बनाकर फांसी का ट्रायल किया जाता है, वो भी एक या दो बार नहीं कई बार इस तरह का ट्रायल किया जाता है.
‘Black Warrant’ में है रंगा-बिल्ला की फांसी से जुड़ा अहम तथ्य
देश की राजधानी दिल्ली की तिहाड़ जेल में सालों से काम कर रहे सुनील गुप्ता ने अपनी किताब “Black Warrant” में रंगा और बिल्ला की फांसी से संबंधित इस मामले के बारे में बताया है. उनकी इस किताब के मुताबिक 31 जनवरी, 1982 की सुबह तिहाड़ में रंगा और बिल्ला को फांसी दी गई थी. इस दौरान जल्लाद और आला अधिकारियों, कर्मचारियों ने ये मान लिया था कि दोनों आरोपियों की मौत फांसी लगने से हो चुकी है. सुनील गुप्ता के अनुसार रंगा और बिल्ला को फंदे पर लटकाने के 2 घंटे बाद जब डॉक्टर जांचने के आया था तब रंगा की नाड़ी (पल्स) चल रही थी, जिसके चलते उसके फंदे को एक बार फिर नीचे से खींचा गया और फिर उसकी मौत हुई थी. जबकि बिल्ला की मौत फांसी के फंद पर लटकाने के से जब ही हो चुकी थी.
आपको बता दें कि गीता चोपड़ा (बहन) और संजय चोपड़ा (भाई) के अपहरण के अलावा गीता के साथ गैंगरेप और हत्या के मामले में साल 1978 में रंगा और बिल्ला को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई थी.