भारतीय सेना में कई रेजिमेंट हैं, लेकिन एक रेजिमेंट ऐसी है…जो ऐसे वक्त में बुलाई जाती है जब सेना कोई विकट परिस्थिति में हो। जो अगर अपने कंधों पर कोई जिम्मेदारी लें, तो उसे पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। चट्टानों को तोड़ सकते हैं, तूफानों से टकरा सकते हैं। ये रेजिमेंट हैं सिख रेजिमेंट।
भारत की इकलौती रेजिमेंट, जिसे 26 जनवरी और 15 अगस्त दोनों की परेड में सलामी देने का मौका मिलता है… जिसे सिख सैनिकों की बहादुरी को देखकर अंग्रेजी हुकूमत ने बनाया था। जो आज भी ब्रिटिश सेना के बीच बड़े सम्मानित हैं। आज हम सिख रेजिमेंट से जुड़े कुछ ऐसे पहलुओं को जानेंगे, जिससे आप अंजान होंगे।
1 – सिख रेजिमेंट 1 अगस्त 1846 में स्थापित किया गया था। इसमें 20 रेजिमेंट है,इसका रेजिमेंटल सेंटर झारखंड के रामगढ़ में है। इसमें 19 रेगुलर और 2 रिजर्व बटालियन है।
2 – सिख रेजिमेंट की विरासत की जड़ें सिखों के दसों गुरुओं की दी गई शिक्षा और बलिदान के आधार पर हैं। साथ ही ये खालसा आर्मी के पद्चिन्हों को फॉलो करती है।
3 – सिख रेजिमेंट के सभी सैनिकों को सिख रेजिमेंट में ही ट्रेन किया जाता है, जबकि बाकि रेजिमेंट को ट्रेंनिंग देने की लिए नेशनल डिफेंस अकेडमी और इंडियन मिलिट्री अकेडमी ट्रेनिंग देती है।
4 – सिख रेजिमेंट ने इतिहास की कई बड़ी लड़ाइयों में हिस्सा लेकर अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया है। पहले और दूसरे विश्व युद्ध सिख रेजिमेंट ने ब्रिटिश आर्मी के साथ वॉर में हिस्सा लिया था।
5 – 1999 में कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की सेना को हराकर टाइगर हिल पर कब्जा किया था। इतना ही नहीं टाइगल हिल पर दुश्मनों की लगाई गई आग को आठवीं सिख बटालियन के ही 3 बहादुर सिपाहियों सुखविंदर सिंह, रसविंदर सिंह और जसविंदर ने दुश्मनों के बीच जाकर बुझाई थी।
6 – सिख रेजिमेंट को उसकी बहादुरी के लिए 14 विक्टोरिया क्रोसेस, 2 अशोक चक्र, 14 महावीर चक्र, 2 परमवीर चक्र 14कीर्ती चक्र, 15 शोर्य चक्र, 35 सेना मैडल, 64 वीर चक्र और 25 विशिष्ट सेवा मेडल से नवाजा जा चुका हैं।
7 – 1897 में सारागढ़ी युद्ध में 21 सिख सैनिकों ने करीब 10 हजार अफगानों के साथ मरते दम तक युद्ध किया था और अफगानी सेना के 600 सैनिकों को मार गिराया था, जिसके बाद ब्रिटिश पार्लियामेंट ने पहली बार किसी भारतीय रेजीमेंट की तारीफ करते हुए सभी शहीदों को विक्टोरिया क्रोसेस से सम्मानित किया था।
8 – सिख रेजिमेंट 15 अगस्त और 26 जनवरी के परेड के दौरान 2 बार सैल्यूट करती है जबकि सभी रेजिमेंट एक बार। दरअसल सिख रेजिमेंट की जुलूस गुरुद्वारे शीशगंज साहिब से होकर गुजरता है, और वहां सिख रेजिमेंट सिखों के नौवें गुरु..गुरु तेग बहादुर की वीरता को याद करती है और उनके सम्मान में अपनी तलवार को नीचे करके उन्हें सैल्यूट करती है। गुरुद्वारा कमेटी भी सिख रेजीमेंट के सैनिकों पर फूलो की बरसात करती है।
शीशगंज साहिब गुरुद्वारा जहां बना है वहां पर गुरु तेग बहादुर जी का सिर आकर गिरा था, जिसे औरंगजेब ने इस्लाम कबूल न करने पर गुरु जी का सिर कटवा दिया था। यहां सैल्यूट करने के बाद सिख रेजिमेंट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सैल्यूट करते हैं। सिख रेजिमेंट की ट्रेनिंग हो या फिर उनके लड़ने का कौशल..सभी उन्हें अलग बनाते हैं। जब जब सिख रेजिमेंट ने युद्ध में कदम रखा है, तब तब भारत की जीत पक्की ही है। ऐसे वीर और साहसी रेजीमेंट को हर एक भारतीय सलाम करता हैं।