भारत और पाकिस्तान के बीच जो लंबी सीमा रेखा खिंची गई है, उससे जुड़ी कई खबरें आती रहती है। कभी अच्छी तो कभी बहुत बुरी। लेकिन ये लंबी सरहद पर जितनी भी जगहें हैं उसमें सबसे ज्यादा सुर्खियों में पंजाब का वाघा बॉर्डर रहता है। हर शाम को यहां तिरंगे की शान को देखने और महसूस करने देश के अलग अलग जगह से भारतीय पहुंचते हैं। यहां पर होने वाले कार्यक्रम को देखकर देश प्रेम से लोग भर जाते हैं। आज हम आपको इस वाघा बॉर्डर से जुड़ी हिस्ट्री और कुछ Interesting Facts बताने जा रहे हैं। तो आइए जानते हैं इसके बारे में…
वाघा बॉर्डर से जुड़ी खास बातें
– भारत का विभाजन 15 अगस्त 1947 को हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया। खींची गई रेडक्लिफ लाइन ने 1947 में भारत को दो देशों में बांटा और ये रेडक्लिफ लाइन वाघा गांव के भारत वाले भाग से होते हुए जाती है। वहीं तब के वक्त में वाघा एशिया की बर्लिन दीवार के तौर पर जाना जाता था।
– क्या आप ये जानते हैं कि वाघा बॉर्डर का नाम एक गांव वाघा के नाम पर रखा गया और ये गांव पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा से करीब एक किलोमीटर अंदर की तरफ है। कहते हैं कि अटारी के जागीरदार शाम सिंह की वाघा गांव जागीर थी। यही शाम सिंह जनरल थे महाराजा रणजीत सिंह के।
– जब देश का बंटवारा नहीं हुआ था तब लाहौर और अमृतसर पंजाब में व्यापारिक केंद्र के तौर पर जाना जाता था। लाहौर और अमृतसर से जेसीपी अटारी और वाघा की दूरी बराबर है। लाहौर से कुल दूरी 29 किलोमीटर और अमृतसर से ये 27 किलोमीटर है। यहां भारत और पाकिस्तान को राष्ट्रीय राजमार्ग 1 जोड़ती है जिसका एक नाम शेर शाह सूरी मार्ग भी है और जब बंटवारा हो गया तो बीपी नंबर 102 के पास चेक पोस्ट तैयार कर दी गई। भारतीय सेना ने 1947 में चेक पोस्ट पर सेफ्टी का जिम्मा लिया।
– यहां ब्रिगेडियर मोहिंदर सिंह चोपड़ा की अगुआई में पहला झंडा फहराने का कार्यक्रम 11 अक्टूबर 1947 को किया गया। नरिंदर सिंह और चौधरी राम सिंह, अमृतसर में तत्कालीन डीसी और एसपी अटारी/वाघा पर जेसीपी की एस्टेब्लिशमेंट से जुड़े रहे थे।
– यहां पहली रीट्रीट सेरेमनी 1959 में किया गया। बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स यानी कि बीएसएफ ने 1 दिसंबर 1965 को जेसीपी अटारी की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली और उसी समय से रीट्रीट सेरेमनी हर रोज आयोजित किया जाता रहा है।
– इस सेरेमनी को साल 1965 और 1971 में कुछ समय के लिए रोका गया जिसकी वजह थी भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध।
– भारत की अलग अलग जगहों से करीब करीब 15 से 20 हजार लोग इस रीट्रीट सेरेमनी को देखने आते हैं। रीट्रीट सेरेमनी को देखने काफी सारे विदेशी टूरिस्ट भी आते हैं। वाघा बॉर्डर होने वाले सेरेमनी के दौरान राष्ट्रगान बजाया जाता है, देशप्रेम के नारे लगते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते हैं। ये बॉर्डर रीट्रिट सेरेमनी के वक्त युद्धक्षेत्र जैसा दिखाई देने लगता है। सैनिक तेज आवाज में चिल्लाते हुए पैर ऊंचे ऊंचे करते रखे जाते हैं और शक्ति की नुमाइश की जाती है।
– मार्चिंग से जुड़ी एक बात बता देते हैं आपको कि जिस मार्चिंग में सैनिक अपने पैर बेहद ऊपर को उठाते हैं उस फॉर्म को गूज मार्चिंग के तौर पर जाना जाता है। ये पूरा जो कार्यक्रम है इसका टाइमिंग 45 मिनट तक का होता है।
यहां जाने से पहले जान लें कुछ खास बातें
– वाघा बॉर्डर सेरेमनी को अटेंड करना चाहते हैं तो आपको इसके लिए अमृतसर पहुंचना होगा और वहां से वाघा बॉर्डर। इसके लिए अमृतसर से अटारी स्टेशन तक के लिए बस मिल जाएगी जो सरकारी बस होगी। फिर वहां से साइकल रिक्शा लेकर 3 किलोमीटर स्थित वाघा बॉर्डर जा सकते हैं।
– बीटिंग रीट्रीट सेरेमनी जहां होती हैं उस स्टेडियम का साइज बड़ा नहीं है तो यहां पर सीट फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व पर मिलती है और सर्दियों में आपको दोपहर ढाई बजे जाना होगा और गर्मी में 3 बजे। बॉर्डर सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक ओपन रहता है और सर्दियों में सवा चार बजे तो वहीं गर्मियों में सवा पांच बजे बीटिंग रीट्रीट सेरेमनी शुरू कर दी जाती है। अगर हो पाए तो आप अडवांस में अपनी सीट बीएसएफ कैंट, खासा गांव जाकर बुक करा पाएंगे। ये गांव अटारी बॉर्डर थोड़ी दूरी पर ही है जहां जाने के लिए आईडी कार्ड साथ रखना जरूरी होता है।
– सेरेमनी में मोबाइल फोन तो ले जा सकते हैं लेकिन मोबाइल नेटवर्क यहां जाम रहता है तो फोटो वीडियो तो आप ले ही सकते हैं। हां यहां जाने के लिए कोई टिकट नहीं लगता है। और आपको यहां पर जेबकतरों से भी सतर्क रहना होगा। इसे सेरेमनी से दो देशों के बीच सौहार्द्र बढ़ाना एक बड़ा मकसद है।