ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तब मध्य प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया, जब वो कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी में शामिल हुए. 2020 में मार्च महीने में सिंधिया ने ऐसा किया। सिंधिया के साथ उनके समर्थन 21 कांग्रेस विधायकों ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया. जिसका नतीजा ये हुआ कि सत्ता पर काबिज कमलनाथ की सरकार गिर गई और एक बार फिर से शिवराज सिंह चौहान एमपी के सीएम बने.
ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी की ये इच्छा थीं कि उनका पूरा परिवार बीजेपी में ही रहे. हालांकि जिवाजी राव सिंधिया और विजया राजे सिंधिया के 5 बच्चों में से माधवराव और उनके पुत्र ज्योतिरादित्य ही कांग्रेस में थे इनके अलावा सभी बीजेपी में ही रहे. आज हम आपको ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में बताने के साथ ही उनका राजनीतिक इतिहास बताने जा रहे हैं, आइए जानते हैं…
ज्योतिरादित्य की दादी ने कांग्रेस से की थी शुरुआत
कांग्रेस पार्टी से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी और ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया ने अपना राजनीति सफर शुरु किया था. साल 1957 में उन्होंने गुना से लोकसभा सीट जीत हासिल कर संसद पहुंची थीं. वो कांग्रेस में 10 साल तक रहीं थीं, इसके बाद वो साल 1967 में जनसंघ में चली गईं थीं. इन्हीं के चलते उनके क्षेत्र में जनसंघ की मजबूती बढ़ी. साल 1971 में जिस समय इंदिरा गांधी की लहर पूरे भारत में थी उस दौरान भी यहां से जनसंघ तीन सीट जीतने में सफल रही.
पिता जनसंघ छोड़ कांग्रेस में हुए थे शामिल
केवल 26 साल की उम्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया जनसंघ में रहने के दौरान सांसद बन गए थे. हालांकि साल 1977 में आपातकाल के बाद जनसंघ से वो अलग हो गए और साल 1980 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. जिसके चलते वो केंद्रीय मंत्री भी बने. वहीं, साल 2001 में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी.
दोनों बुआओं की राजनीति में एंट्री
ज्योतिरादित्य की दोनों बुआ यशोधरा राजे सिंधिया और वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी राजनीति में एंट्री की. जिसके चलते वसुंधरा राजे सिंधिया साल 1984 में बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हो गईं. बता दें कि ये राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं. इनके बेटे दुष्यंत भी बीजेपी में हैं और राजस्थान की झालवाड़ सीट से सांसद हैं.
साल 1977 से अमेरिका रह रही वसुंधरा राजे की बहन यशोधरा जब साल 1994 में भारत लौटीं तो उन्होंने मां की इच्छा के अनुसार बीजेपी में शामिल हुईं. इसके बाद साल 1998 में उन्हें बीजेपी के ही टिकट पर चुनाव लड़ा. यशोधरा राजे 5 बार विधायक रह चुकीं हैं. इसके अलावा शिवराज सिंह चौहान की सरकार में ये मंत्री भी रह चुकी हैं.
2002 में पहली बार बने सांसद
साल 2001 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता की मौत के बाद कांग्रेस पार्टी में उनकी जगह ली. जिसके चलते साल 2002 में गुना सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान ज्योतिरादित्य सांसद चुने गए. वो साल 2019 तक कभी भी चुनाव नहीं हारे, लेकिन जब साल 2019 में लोकसभा चुनाव हुआ तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
इस तरह शुरू हुई संधिया-कमलनाथ की तकरार
बहुत कोशिशों के बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश में सरकार तो बना ली. हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम नहीं बन सके. कांग्रेस द्वारा कमलनाथ को मुख्य मंत्री बना दिया गया. जिसके बाद से ही दोनों में तकरार शुरू हो गई. वहीं, विधानसभा के 6 महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में भी जब सिंधिया को हार मिली तो उनके लिए ये दूसरा बड़ा झटका साबित हुआ.
मांग करने के बाद भी सिंधिया को मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद नहीं मिला. इसके बाद राज्यसभा भेजे जाने के कारण सिंधिया और कमलनाथ में हो रही तकरार सामने आई थी. बता दें कि ज्योतिरादित्य द्वारा कमलनाथ सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने को लेकर धमकियां भी दी गई थी. नवंबर 2019 में ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस के सभी पदों को छोड़कर दबाव बनाना का प्रयास किया. हालांकि उनकी ये प्रयास भी नाकाम रहा. मार्च 2019 में सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में चले गए. अब शिवराज के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज है.