हमारे देश ने आजादी के बाद कई युद्ध लड़े। इन युद्ध में हमारे ना जाने कितने वीर सैनिकों ने देश के लिए अपनी जान दे दी। वहीं इनमें से कुछ सैनिक ऐसे भी रहे, जिनकी कहानी बेहद ही इंस्पारिंग रहीं। ऐसे ही एक महान सैनिक थे की कहानी से हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं।
1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के बारे में तो हर कोई जानता ही है। ये युद्ध में पाकिस्तान पर दर्ज की गई भारत की सबसे बड़ी जीत हैं। भारतीय सेना के जाबांजों ने इस युद्ध के दौरान पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को घुटने पर ला दिया था और आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया। वैसे तो इस युद्ध में भाग लेने वाले हर सैनिक ने ही अपना योगदान दिया, लेकिन 1971 युद्ध का श्रेय अगर किसी एक सैनिक को दिया जाए, तो वो होंगे सैम मानेकशॉ का नाम सबसे ऊपर आएगा। 1971 युद्ध के दौरान सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के प्रमुख थे। उनके नेतृत्व में ही भारतीय सेना ने इस युद्ध ने इतनी बड़ी जीत हासिल की थीं।
सैम मानेकशॉ की कहानी वैसे तो आपको जल्द ही बड़े पर्दे पर देखने को मिलने वाली हैं। जी हां, बॉलीवुड में सैम मानेकशॉ की वीरता पर फिल्म बनाई जा रही है। फिल्ममेकर मेघना गुलजार उन पर बायोपिक बनाने जा रही हैं, जिसमें एक्टर विक्की कौशल सैम मानेकशॉ का रोल निभाते हुए नजर आएंगे, लेकिन उससे पहले आज हम आपको पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की पूरी कहानी के बारे में बताएंगे…
अमृतसर में हुआ जन्म
3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में सैम का जन्म एक पारसी फैमिली में हुआ था। उनके पिता होर्मसजी मानेकशॉ एक डॉक्टर थे। सैम ने अपने शुरूआती पढ़ाई नैनीताल से की और इसके बाद उन्होंने हिंदू सभा कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई की। सैम ने अपने पिता के खिलाफ जाकर जुलाई 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी में दाखिला ले लिया और 2 साल बाद वो 4/12 फ्रंटियर फोर्स रेजीमेंट में भर्ती हुए।
सेकेंड वर्ल्ड वॉर का रहे हिस्सा
काफी कम उम्र में ही उनको युद्ध में शामिल होना पड़ा। बताया जाता है कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान सैम के शरीर में 7 गोलियां लगी। तब हर किसी ने उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन डॉक्टरों ने वक्त रहते गोलियां निकाल दीं और उनकी जान बच गई।
1971 युद्ध में किया नेतृत्व
1946 में लेफ्टिनेंट कर्नल सैम मानेकशॉ को सेना मुख्यालय दिल्ली में तैनात किया गया। फिर जब 1948 में कश्मीर का भारत विलय कराने की बातचीत हो रही थी, तो इस दौरान महाराजा हरि सिंह से बात करने वीपी मेनन के साथ सैम मानेकशॉ के साथ श्रीनगर गए। 1962 का युद्ध चीन के हाथों हारने के बाद सैम मानेकशॉ को चौथी कोर की कमान सौंपी गई। 1971 के भारत-पाकिस्तान जंग में सैम की मुख्य भूमिका निभाई थीं। उनके नेतृत्व में ही भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जीत हासिल की थी।
अपने सैन्य करियर के दौरान सैम पांच युद्धों का हिस्सा रहे। इस दौरान उनको कई सम्मान प्राप्त हुए। 59 साल की उम्र में सैम मानेकशॉ को फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया। वो ये सम्मान पाने वाले पहले भारतीय जनरल थे। 1972 में सैम मानेकशॉ को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। फिर एक साल बाद वो सेना प्रमुख के पद से रिटायर हो गए। रिटायर होने के बाद वो वेलिंगटन चले गए। 2008 में उनका निधन हो गया था।
जब इंदिरा गांधी को दिया दो टूक जवाब
सैम मानेकशॉ के बारे में कहा जाता है कि वो देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी नहीं डरते थे। उनके और इंदिरा के कई किस्से काफी मशहूर हैं। बताया जाता है कि 1971 के युद्ध से कुछ महीनों पहले इंदिरा गांधी ने मानकेशॉ से सवाल किया था कि क्या वो पाकिस्तान के साथ जंग के लिए तैयार हैं? तो इसके जवाब में सैम ने कहा था कि अगर अभी इंडियन आर्मी युद्ध के लिए जाती है तो हार तय है। मानकेशॉ के इस जवाब में इंदिरा को काफी नाराज कर दिया, जिसके बाद सैम ने इस्तीफे तक की पेशकश करते हुए कहा कि मैडम प्राइम मिनिस्टर आप मुंह खोले उससे पहले मैं आपसे ये पूछना चाहता हूं कि आप मेरा इस्तीफा मानसिक, या शारीरिक या फिर स्वास्थ्य, किन आधार पर स्वीकार करेंगी?’ हालांकि इंदिरा ने उनके इस्तीफे की पेशकश को मंजूर नहीं किया और इसके बाद युद्ध के लिए सलाह लेकर जंग की नई तारीख तय की।
फिर सात महीनों के बाद तैयारी पूरी कर युद्ध लड़ा। युद्ध से पहले जब इंदिरा गांधी ने उनसे भारतीय सेना की तैयारी के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, ‘मैं हमेशा तैयार हूं, स्वीटी।’
इंदिरा गांधी को सताया तख्तापलट का डर
वहीं 1971 युद्ध के बीच में ही तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के दिमाग में ये बात बैठ गई कि मानेकशॉ आर्मी की मदद से तख्तापलट की कोशिश करने वाले हैं। जिस पर मानेकशॉ की तरफ से सीधा इंदिरा गांधी को जवाब देते हुए ये कहा गया था कि ‘मैडम? आपकी नाक लंबी है। मेरी नाक भी लंबी है, लेकिन मैं दूसरों के मामलों में नाक नहीं घुसाता हूं।’
पाकिस्तानी अखबार में की तारीफ
सैन मैनकशॉ एक ऐसी शख्सियत थे, जिनके दुश्मन भी कायल थे। पाकिस्तान अखबार द डॉन ने जनरल सैम मानेकशॉ के निधन पर एक विशेष लेख निकाला था। जिसमें कहा गया कि सैम मानेकशॉ कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। वो 1969 में भारत के सेना प्रमुख बने। पाकिस्तान में हमें भारी मन से ये स्वीकार करना होगा कि उनके पूरे करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि 1971 में पाकिस्तान की सेना के खिलाफ बड़ी जीत थी। तब हमने पूर्वी पाकिस्तान को गंवा दिया, जो बाद में बांग्लादेश बना।
दुश्मन भी हो गए थे कायल
जनरल वीके सिंह ने 1971 से जुड़ा एक किस्सा याद करते हुए बताया था कि जब 90,000 पाकिस्तानियों को बंदी बनाया गया, तो बंदी शिविर में पाकिस्तानी सेना के सूबेदार मेजर के खेमे में बाहर से किसी ने अंदर आने को कहा। इस तरह का सम्मान अनअपेक्षित होता है। जब सूबेदार मेजर ने देखा तो वो कोई और नहीं बल्कि खुद जनरल सैम मानेकशॉ ही थे।
वीके सिंह ने आगे बताया कि जब वहां पाकिस्तान के बंदियों के लिए कई गई व्यवस्था के बारे में पूछा गया तो सैम बहादुर ने पाकिस्तानी विधवाओं को सब्र बंधाया। उनके द्वारा बनाया हुआ भोजन चखा और सबसे मिले। वो जब जाने लगे तो सूबेदार मेजर ने उनसे कुछ कहने को कहा। सूबेदार मेजर ने कहा कि अब मुझे पता चला कि भारत युद्ध क्यों जीता, इसलिए क्योंकि आप अपने सैनिकों का ख्याल रखते हैं। आप जिस तरह से हमें मिलने के लिए आए, वैसे तो हमारे खुद के लोग नहीं मिलते। वो खुद को नवाबजादे समझते हैं।