रावण की पहचान किसी से छिपी नहीं है। लंकापति रावण को अनीति माना गया,अनाचार, दंभ, काम, क्रोध और लोभ से भरा एक अधर्मी के तौर पर जाना गया। बुराई का दूसरा नाम रावण माना जाने लगा, लेकिन इस बात को भी कभी नकारा नहीं गया कि दशानन रावण एक राक्षस तो था साथ ही एक महाज्ञानी भी था। आज हम जानेंगे कि आखिर रावण कैसे हुआ और ऐसा क्या हुआ उसके जन्म के वक्त कि उसके एक ब्राह्मण पुत्र होने के बाद भी उसमें राक्षसत्व आ गए।
रामायण जो हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र ग्रन्थ माना गया है। रामायण में राम का सम्पूर्ण बताया गया जिसमें रावण का भी खास तौर पर जिक्र है। रावण सोने की लंका का राजा था जिसके जन्म को लेकर कई कथाओं का वर्णन मिलता है। वाल्मीकि रामायण की माने तो पुलत्स्य मुनि के पुत्र महर्षि विश्रवा का रावण पुत्र था, जिसकी मां राक्षसी कैकसी थी।
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में बताया गया है कि पुराने समय में माली, सुमाली और मलेवन बेहद क्रूर दैत्य भाई थे जिन्होंने ब्रह्मा कि कठिन तपस्या की जिससे ब्रह्मा ने उन्हें महाबलशाली होने का वरदान दे दिया। वरदान पाकर स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पाताललोक में तीनों भाई देवताओं, ऋषि-मुनियों और मनुष्यों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और जब ऐसा काफी ज्यादा होने लगा तो देव और ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से अपनी व्यथा सुनाई। जिसके बाद भगवान विष्णु ने कहा कि आप सभी अपने लोक चले जाएं और डरे नहीं, मैं इन दुष्ट राक्षसों का विनाश करूंगा। दूसरी तरफ तीनों अत्याचारी भाइयों को इस बारे में पता चला तो सेना सहित इंद्रलोक के पर तीनों ने आक्रमण कर दिया। ऐसे में इंद्रलोक आकर विष्णु राक्षसों का अंत करने लगे। फिर क्या था, अपनी जान बचा के लिए सेनापति माली समेत सभी राक्षस लंका की ओर भाग निकले। फिर सभी राक्षस सुमाली के साथ लंका छोड़ पाताल चले गए वहीं छुप गए और अपने परिवार के साथ रहने लगा।
एक दिन सुमाली पृथ्वी लोक में घूमने को आया जहां उसकी नजर कुबेर पर पड़ी, लेकिन देवताओं के डर से वो फिर पाताल लोक चला गया और सोचने लगा कि कब तक वो डर से यूं ही छुपा रहेगा। कुछ तो उपाय निकालना ही पड़ेगा। ताकि देवताओं को हराया जा सके। फिर उसने विचार किया कि क्यों न वो अपनी पुत्री कैकसी का विवाह ऋषि विश्रवा से कराए, जिससे उसे कुबेर जैसा एक तेजस्वी पुत्र हुआ है। ऐसे में एक दिन उसने अपनी बेटी कहा कि राक्षस वंश के कल्याण के लिए तुम परमपराक्रमी महर्षि विश्रवा से विवाह करो और एक पुत्र को जन्म दो जो हम राक्षसों की रक्षा देवताओं से करेगा।
राक्षसी तो थी कैकसी पर उसने धर्म को कभी नहीं थोड़ा। ऐसे में पिता की इच्छा को पूरा करना उसे अपना धर्म लगा तो वो महर्षि विश्रवा से मिलने के लिए पाताल लोक से पृथ्वीलोक आ गई।
पातालालोक से पृथ्वीलोक आने में काफी वक्त लगा कैकसी को और शाम हो गई थी महर्षि विश्रवा के आश्रम पहुंचने में। तब भयंकर आंधी भी चल रही थी और बारिश हो रही थी। कैकसी आश्रम पहुंचकर महर्षि का चरण वंदन कर विवाह करने की इच्छा के बारे में बताया। जिसके बाद महर्षि विश्रवा ने कहा कि हे भद्रे मैं आपकी इच्छी तो पूरी कर सकता हूं, लेकिन तुम कुबेला में यहां आई हो ऐसे में हमारा पुत्र क्रूर कर्म करने वाले और भयानक सूरत वाले राक्षस होंगे। ऐसे में कैकसी ने कहा कि ऐसे ब्राह्मणवादी दौर में दुराचारी पुत्रों की उत्पत्ति मैं नहीं चाहती ऐसे में आप मुझ पर कृपा करिए जिस पर महर्षि विश्रवा ने कहा कि तुम्हारा तीसरा पुत्र मुझ जैसा धर्मात्मा होगा।
दिन बीते और कैकसी ने दस सिर वाले राक्षस को जन्म दिया जिसका रंग काल आकार पहाड़ के जैसा था। जिसका नाम महर्षि विश्रवा ने दशग्रिव रखा और विश्रवा का जेश्ठ पुत्र रावण के नाम से आगे जाना गया। कैकसी के गर्भ से कुम्भकरण भी हुआ जो लंबा-चौड़ा था। उस समान बड़ा शरीर दूसरा किसी का न था। इसके बाद कैकसी को एक पुत्री हुई, जो कुरूप था और जिसका नाम सुर्पणखा रखा गया और सबसे छोटा पुत्रा हुआ धर्मात्मा विभीषण।