पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए प्रेस की आजादी बहुत जरूरी होती है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया प्रिंट मीडिया के अधिकारों की सुरक्षा करता है। प्रेस काउंसिल का गठन कब और कैसे हुआ? ये कैसे काम करता है? इसके पास क्या शक्तियां होती है? आइए आज इसके बारे में जानते हैं…
कब-कैसे हुई स्थापना?
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना पहली बार 1966 में भारत की संसद द्वारा की गई थी, जिसकी सिफारिश पहले प्रेस आयोग ने की थी। इसका उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना। भारत में प्रेस के मानकों को बनाए रखना और उनमें सुधार करना था।
प्रेस काउंसिल बनाने के लिए साल 1956 में संसद में एक विधेयक लाया गया था, लेकिन बहुमत नहीं मिलने की वजह से वो पास नहीं हो पाया। फिर 10 सालों तक ऐसा कोई विधेयक पेश नहीं किया गया। साल 1965 में फिर से विधेयक पेश किया गया और तब ये पास हुआ। 4 जुलाई 1966 को एक्ट लागू हुआ और तब प्रेस काउंसिल की स्थापना हुई।
हालांकि देश में लगी इमरजेंसी के बाद प्रेस काउंसिल को खत्म कर दिया गया। 1976 में इसे खत्म किया गया था। लेकिन जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई, तो 1978 में फिर से प्रेस काउंसिल एक्ट पास कराया गया। इस बार भी इसका उद्देश्य पहले की तरह प्रेस की आजादी की रक्षा करना था। वर्तमान में परिषद का कार्य प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के तहत काम करती हैं।
कौन-कौन होता हैं इसका सदस्य?
प्रेस काउंसिल यानि PCI के मेंबर्स की अगर बात करें तो इसमें चेयरमैन समेत 28 सदस्य होते हैं। PCI के चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज होते हैं। परिषद के 28 सदस्यों में से 20 को प्रेस संगठनों, एजेंसियों और अन्य निकायों द्वारा नामित करके प्रेस का प्रतिनिधित्व करना होता है। वहीं पांच सदस्य संसद के दोनों सदनों द्वारा मनोनीत होते हैं और 3 सांस्कृतिक और कानूनी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बार काउंसिल ऑफ इंडिया का एक नामित व्यक्ति भी इसका हिस्सा होते हैं। वो 3 साल की अवधि के लिए काम करते हैं।
क्या होते हैं प्रेस काउंसिल के काम?
– कोई भी न्यूज पेपर या न्यूज एजेंसी आजादी से काम कर सके, इसकी देख-रेख प्रेस काउंसिल करती हैं।
– साथ में प्रेस काउंसिल पत्रकारों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट बनाते हैं, जिसके अंतर्गत वो काम करें।
– प्रेस काउंसिल समाचार से संबंधित तकनीकी और अन्य शोध क्षेत्रों को बढ़ावा देने का काम करता है। इसके अलावा ये नए पत्रकारों को उचित ट्रेनिंग देने में भी मदद करता है।
– प्रेस काउंसिल ये भी सुनिश्चित करता है कि न्यूजपेपर्स लोगों के स्वाद के रखरखाव को ध्यान में रखकर काम कर रहे हैं या नहीं। साथ ही लोगों के मौलिक अधिकारों और जिम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं या नहीं।
– इसके अलावा प्रेस काउंसिल इस बात पर भी अपनी नजर रखती हैं कि किसी न्यूज पेपर या न्यूज एजेंसी पर कोई दवाब तो नहीं बनाया जा रहा है।
प्रेस काउंसिल की शक्तियां और सीमाएं…
प्रेस काउंसिल के पास ये शक्ति होती है कि वो प्रेस से प्राप्त या प्रेस के विरूद्ध मिली शिकायतों पर विचार करती है। परिषद सरकार समेत किसी समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकती है या निंदा कर सकती है। परिषद के निर्णय को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
PCI की कुछ Limitations यानि सीमाएं भी होती हैं। प्रेस काउंसिल के पास ये पॉवर जरूर होती है कि न्यूज पेपर या न्यूज एजेंसियों से गाइडलाइंस के तहत काम कराए, लेकिन ऐसा ना करने पर कोई सजा नहीं दे सकती। काउंसिल के पास सिर्फ चेतावनी देने का अधिकार होता है।
इसके अलावा प्रेस काउंसिल सिर्फ प्रिंट मीडिया के ही कामों की देख रेख कर सकती है। जिसमें न्यूज पेपर्स, मैग्जीन आते है। प्रेस काउंसिल सिर्फ प्रिंट मीडिया के लिए ही ही। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेडियो, टेलवीजिन और इंटेरनेंट मीडिया के लिए ये काउंसिल नहीं है।