saturday… रामसेतु, इस पर बहस काफी दूर तक जा चुकी है। रामसेतु हैं की नहीं और हैं तो कहा है? और नहीं तो कहां गया? जी हां, हम उसी राम सेतु की बात कर रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि माता सीता को लंका से लाने के लिए श्रीराम की अगुवाई में वानर सेना ने एक पुल बनाया था लंका तक, जिसे ‘राम सेतु’ कहा गया। लेकिन सवाल ये है कि क्या सच में कभी बनाया भी गया था ये रामसेतु? और अगर हां तो कहां गायब हो गया ये सेतु? चलिए राम सेतु से जुड़े अलग अलग सवालों के बारे में जानते हैं…
आखिर ये रामसेतु क्या है?
माना जाता है कि लंकापति रावण ने माता सीता का हरण किया और उन्हें लंका ले आया और फिर श्रीराम ने वानरों की सहायता लेकर समुद्र के बीचों-बीच एक सेतु यानी कि पुल बनवाया जिसे ‘राम सेतु’ नाम दिया गया। इसे आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘एडम्स ब्रिज’ के तौर पर भी जाना जाता है। इसी रामसेतु से गुजरकर श्रीराम की सेना लंका पहुंची और फिर युद्ध हुआ जिसमें रावण का वध हुआ और सीता को राम ने मुक्त करा लिया।
कहां बना रामसेतु?
भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप और श्रीलंका देश के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के बीच ये राम रामसेतु चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। अगर वैज्ञानिकों के कहे पर जाएं तो एक वक्त था जब ये पुल भारत और श्रीलंका को आपस में भू-मार्ग से जोड़ता था। कहते हैं कि इस पुल के निर्माण के बाद इसकी लम्बाई 30 किलोमीटर थी तो वहीं चौड़ाई 3 किलोमीटर थी। आज के वक्त की बात की जाए तो भारत और श्रीलंका के इस एरिया की पानी की गहराई इतनी है कि यातायात साधन बिलकुल नहीं हैं, लेकिन तब के वक्त में राम ने इस जगह पर एक पुल बनाया था।
ऐतिहासिक मान्यताएं तो ये तक हैं कि रामसेतु पुल को केवल 5 दिन में 1 करोड़ वानरों द्वारा तैयार किया गया लेकिन इस पुल पर रखे पत्थर और उस पत्थर का बिना किसी वैज्ञानिक रूप से जुड़ाव आज तक एक सवाल बना हुआ है।
कहते हैं कि दो अहम किरदारों नल और नील की सहायता से ये पुल बनाया गया जिनके हाथ से पत्थर छूकर समुद्र में फेंकने से पत्थर डूबता नहीं था। रामेश्वर में आई सुनामी के वक्त इन पत्थरों को समुद्र किनारे देखा गया जो कि आज भी पानी में डालने के बाद डूबते ही नहीं हैं।
विज्ञान की नजर से इसे कैसे देखा जाए-
दरअसल, ‘प्यूमाइस’ नाम का एक पत्थर है देखने में काफी मजबूत लगता है, लेकिन पानी में पूरी तरह नहीं डूबता। तैरता ही रहता है। कहा जाता है कि ये पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेकर खुद ही बनाता जाता है। ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ जब लावा वातावरण से मिल जाता है तो उसके साथ ठंडी या फिर उससे कम के टेंप्रेचर की हवा भी मिलती जाती है। ये गर्म और ठंडे का मिलाप होते ही कई छेद हो जाते पत्थर में और ये छेद पत्थर को स्पॉजी या फिर खंखरा बना देते हैं।
तो कहां खो गया रामसेतु?
प्यूमाइस पत्थर के छेदों में दरअसल हवा भरी होती है जिससे ये पत्थर पानी से हल्का हो जाता है और फिर डूबता ही नहीं, लेकिन धीरे-धीरे इन छिद्रों में जब पानी भर जाता है तो ये पत्थर भी पानी में डूब जाता है और अनुमान है कि ऐसे ही रामसेतु पुल भी आखिर में डूब गया होगा।
नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस, नासा ने सैटलाइट से रामसेतु की कई तस्वीरें निकाली। नासा मानता है कि एक पुल भारत के रामेश्वर से होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक जरूर बनाया गया, लेकिन कुछ मील की दूरी के बाद ही इस पुल के पत्थर डूब गए। हो सकता है कि वे आज भी समुद्र के निचले हिस्से में हों।