हैदराबाद में 27 नवंबर को हुए गैंगरेप के बाद महिला डॉक्टर की निर्मम हत्या की रातों रात हुई सनसनीखेज वारदात ने पूरे देशवासियों के रोंगटे खड़े कर दिए। इस घटना ने लोगों के दिलों में इतनी गहरी छाप छोड़ी कि सोशल मीडिया पर उन चार दरिंदों को सूली पर लटकाने की मांग तेज होती गई। और नतीजन आज यानि शुक्रवार को हत्या के चारों आरोपी पुलिस एनकाउंटर में ढेर कर दिए गए। पुलिस की मानें, तो उन्हें क्राइम सीन रीक्रिएट करने के देर रात घटनास्थल पर ले जाया गया था। जहां से आरोपियों ने पुलिस को चकमा देकर वहां से भागने की कोशिश की। और इसी कोशिश में मुठभेड़ के दौरान पुलिस को मौका ए वारदात पर सेल्फ डिफेन्स में आरोपियों को शूट करना पड़ा। ऐसे में आपके मन में ये सवाल जरूर कौंधा होगा कि आखिर ये क्राइम सीन रिक्रिएशन या रीकंस्ट्रक्शन क्या होता है और कैसे होता है। आखिर पुलिस को इस काम के लिए आरोपियों को रात में ही क्यूं क्राइम स्थल पर ले जाना पड़ा?
दरअसल कई बार जैसी घटना दिखाई दे रही होती है, वो वैसी होती नहीं है। उदाहरण के तौर पर अगर शुरू में कोई सुसाइड का केस लग रहा है लेकिन परिवारवालों या मृतक के करीबियों ने मर्डर का शक जताया है। या फिर मृतक के करीबी आरोप लगा रहे हों कि हत्या करके शव को आत्महत्या जैसा दिखाने की साजिश रची जा रही है। तो ऐसे मामलों में पूरी घटना की एक अलग एंगल से जांच की जाती है।
कैसे होता है क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन?
ऐसे वक़्त में क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन किया जाता है। जिसमें क्या हुआ, कब हुआ, कहां हुआ, कैसे हुआ, किसने किया और क्यों किया जैसे सिद्धांतों पर काम किया जाता है। इस प्रक्रिया में जिस वक्त घटना होती है, ठीक उसी वक्त और उसी जगह पर पुलिस आरोपी को ले जाकर फिर से घटना का सीन क्रिएट करवाती है। पुलिस का सीन रिक्रिएट करना एक नार्मल प्रक्रिया है ताकि वह हर चीज व सबूतों को अदालत के सामने पेश कर सके। जितना आसान ये सुनने में लग रहा है, पुलिस के लिए ये उतना ही पेंचीदा काम है। घटनास्थल पर मिले सबूतों के आधार पर ये तय किया जाता है कि घटना कैसे हुई। रिक्रिएशन के दौरान मिले सबूतों की वैज्ञानिक जांच की जाती है। इसके अलावा केस से जुड़ी सभी इन्फॉर्मेशन की डिटेल में स्टडी की जाती है और फैक्ट्स के आधार पर एक थ्योरी तैयार की जाती है।
बता दें कि हैदराबाद में दिशा के साथ हुई रेप मर्डर की वारदात रात के सुनसान अंधेरों में हुई थी। जिस वजह से आरोपियों को पुलिस द्वारा रात में घटनास्थल पर ले जाया गया। सरल शब्दों में बात करें तो वारदात के वक़्त लाइट कितनी थी, सड़क किस स्थिति में थी, आसपास के लोगों का कैसा मूवमेंट था इन सब फैक्टर्स की भी बारीकी से जांच की जाती है।
पीड़ित से होती है शुरुआत
क्राइम सीन रिकंस्ट्रक्शन की शुरुआत पीड़ित से होती है। पूरी घटना की पूछताछ और जानकारी सबसे पहले पीड़िता से जुटाई जाती है। अगर किसी केस में पीड़िता की मौत हो जाती है तो उसके करीबियों का इंटरव्यू लिया जाता है। या फिर घटना के आरोपियों और अपराध स्थल पर मौजूद लोगों से पूछताछ की जाती है। साथ ही घटनास्थल की काफी सावधानीपूर्वक फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी की जाती है। और इसका बारीकी से विश्लेषण किया जाता है।
इसको आप इस तरीके से समझ सकते हैं कि मान लीजिये कि किसी घटना में एक अपराधी ने किसी को गोली मार दी है। ऐसी कंडीशन में जांचकर्ता इस बात पर गौर करेगा कि अगर निर्धारित स्थान से और एक निर्धारित एंगल से शूट किया जाता है, तो गोली कहां जाकर लगेगी। और असल में पीड़ित को कहां लगी है।
बता दें कि हैदराबाद रेप मर्डर केस में सीन रिक्रिएशन के वक़्त आरोपियों की हथकड़ियां निकाल दी गई थी। जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार खतरनाक अपराधियों के मामले में पुलिस अपील करती है कि उन्हें हथकड़ियां लगाकर रखने की अनुमति मिले। इस मामले में पुलिस के मुताबिक अपराधियों को हथकड़ियां इसलिए नहीं पहनाई गई थी क्योंकि उनका इससे पहले फरार होने का कोई रिकॉर्ड नहीं था।
इन फैक्टर्स पर होती हैं जांच
अगर अपराध हिंसक है तो इस केस में क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन में खून के धब्बे एक अहम सबूत माने जाते हैं। दरअसल जब खून किसी जख्म, किसी हथियार या अन्य चीज़ पर गिरता है तो एक ख़ास तरीके का पैटर्न बनता है। खून के छीटों से जांचकर्ताओं को खून की दिशा का पता चलता है। अगर पीड़ित या आरोपी ने उस वक़्त भागने की कोशिश की है, तो इस गुत्थी को सुलझाने में भी खून के छींटों का काफी बड़ा रोल होता है।
सीन रिकंस्ट्रक्शन में सिर्फ खून के धब्बों का ही नहीं बल्कि पैरों के निशान का भी काफी अहम रोल होता है। अगर कोई संदिग्ध व्यक्ति ये कहता है कि वो घटना के वक़्त मौजूद नहीं था और उसके पैरों के निशान घटनास्थल में मिले निशानों से मेल खा जाते हैं, तो वो व्यक्ति भी दोषी करार दिया जाएगा। कई बार हत्या, लूटपाट, मारपीट और रेप के मामलों में पैरों के निशान ने कई छुपे मुजरिमों को जेल की सलाखों तक पहुंचाया है। दरअसल चप्पलों या जूते के सोल के निशान घटनास्थल पर छप जाते हैं जो कभी नज़र आ जाते हैं और कभी नहीं भी आते।
ऐसा पहली बार नहीं है जब भारत में क्राइम सीन रिकंस्ट्रक्शन किया गया हो, ये ज्यादातर हर क्राइम वारदातों में किया जाता है। जिसके आधार पर एक नतीजे पर न्यायपालिका पहुंचती है। ये पुलिस का कानूनी अधिकार भी है कि वह आरोपियों को सीन रिक्रिएट करने के लिए ले जा सकती है। हालांकि हैदराबाद केस में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि किन हालात में पुलिस को गोली चलानी पड़ी और क्या पुलिस ने सीन रिक्रिएट के दौरान सावधानी नहीं बरती। ऐसे में पुलिस को अभी कई अनसुलझे सवालों के दौर से गुजरना होगा जिनके जवाब अभी सामने आना बाकी है।