जापान का एक शहर जो मिट गया लेकिन वहां के लोग उस शहर को अपनी यादों से आज भी मिटा नहीं पाए हैं। इस शहर का कैसे परमाणु बम विस्फोटों से संबंध है और क्या हुआ इस शहर का कि इसका पूरा का पूरा अस्तित्व ही खत्म हो गया। क्या है जापान के इस शहर की तबाही के पीछे की पूरी स्टोरी आज हम इसके बारे में विस्तार से जानेंगे…
हम बात कर रहे हैं जापान के कोकुरा शहर की जो कि अब अस्तित्व में ही नहीं है। कोकुरा उन नगरपालिकाओं में से एक था जिनको साल 1963 में मिलाकर बना दिया गया एक पूरा का पूरा नया शहर जिसे नाम दिया गया कीटाक्यूशू, जहां कि आबादी 10 लाख से कुछ कम की है लेकिन यहां पर गौर करने वाली बात ये है कि आज भी जापानियों के जेहन में कोकुरा बसता है क्योंकि दो डेकेड पीछे की अगर बात करें तो इस कोकुरा शहर का अस्तित्व में ना होना और भी ज्यादा दर्दनाक हो सकता था। अब सवाल है कि आखिर क्यों, क्या हुई था दो डेकेड पहले।
कोकुरा जो कि जापान में परमाणु बम विस्फोटों के लिए चुने गए लक्ष्यों में से एक था। जाहिर है बात परमाणु बम विस्फोटों की हो रही है तो साल 1945 का ही यहां जिक्र हो रहा है। अब यहां कोकुरा से जुड़ा हैरान करने वाली बात ये है कि second World War के दिनों में जो भीषण तबाही हुई उससे ये शहर बेहद अलग वजहों से बच गया या यू कहें कि इस शहर का तबाही से बचाना एक बड़ा Miracle ही था।
आखिर हुआ क्या था?
दरअसल, 9 अगस्त को काकुरा बम का निशाना बनने से बस कुछ ही मिनट दूर था पर वहां कभी वो विनाशकारी हथियार तैनात ही नहीं किया गया। ऐसा इस वजह से क्योंकि एक साथ वहां कई तरह की घटनाए हुईं जिससे अमेरिकी वायु सेना को ऑप्शनल तौर पर बनाए टारगेट नागासाकी की तरफ बढ़ना पड़ा।
इस तरह का अंदाजा लगाया जाता है कि हिरोशिमा के 1 लाख 40 हजार तो वहीं नागासाकी के 74 हजार लोग इस बमबारी में मार डाले गए और कई सालों तक इन शहरों के हजारों लोग रेडिएशन का असर झेलने को मजबूर रहे।
जापान में एक कहावत बेहद मशहूर हो चला है ‘लक ऑफ काकुरा’। इस कहावत को वहां के लोग तब इस्तेमाल में लाते हैं जब कुछ बहुत बुरा होते होते रह जाता है। काकुरा में आखिर क्या हुआ था? जो कि किसी मिरैकल से कम नहीं था।
जुलाई 1945 के बीच के वक्त में अमेरिकन आर्मी के ऑफिसर्स ने जापान के कई शहरों को टारगेट किया परमाणु बमबारी के लिए। उन शहरों को बम गिराने के लिए चुना गया गया जहां फैक्ट्रियां और सैन्य अड्डे थे। कोकुरा टारगेट लिस्ट में हिरोशिमा से पीछे था मतलब हिरोशिमा के बाद लिस्ट में उसका ही नंबर था। दरअसल कोकुरा वेपेन प्रोडक्शन के एक बड़ा पोइंट था। यहां जापान की सबसे बड़ी साथ ही साथ सबसे ज़्यादा गोला-बारूद बनाने के कारखाने थे। कोकुरा में जापानी आर्मी की एक काफी बड़ी Armory भी थी।
6 अगस्त को इस परमाणु बम को स्टैंड-बाय पर रखा गया था जिससे कि हिरोशिमा पर अगर बम नहीं गिर पाया तो इसको यूज में लाया जा सके। बी-29 बमवर्षक तीन दिन बाद कोकुरा के लिए उड़े पर कोकुरा के ऊपर बादल थे और धुआं ही धुआं था शायद ये धुआं यवाटा में हुई एक दिन पहले की बमबारी का नतीजा था।
कुछ दिस्टोरियन दावा करते हैं कि लगातार बमबारी हो रही थी पूरे जापान में तब कोकुरा के कारखानों में कोयला जलाया गया था जानबूझकर ताकि एक एक ‘स्मोक स्क्रीन’ बनाई जाए। एक रिपोर्ट के मुताबिक बी-29 बमवर्षकों ने तीन चक्र लगाए थे कोकुरा के क्योंकि ऑर्डर के हिसाब से टारगेट के नजर आने पर ही बम गिराना था जिससे कि ज्यादा नुकसान हो पाए और यहां दिक्कत ये थी कि विमान को देखकर उस पर जमीन पर मौजूद सेना ने गोलीबारी शुरू की। इस तरह से बी-29 बॉक्स्कार को उड़ा रहे मेजर चार्ल्स स्वीनी ने फैसला किया कि नागासाकी की ओर बढ़ा जाए और इस तरह कोकुरा तबाही से बच गया।
राहत भी हुई तो वहीं दुख का भी आलम था
सम्राट हिरोहितो ने बिना किसी शर्त के जापान के आत्मसमर्पण का ऐलान किया, तब तारीख 15 अगस्त थी। कोकुरा और नागासाकी की किस्मत किस कदर जुड़ी थी कि कोकुरा विनाश से बच गया था और नागासाकी तबाही का मंजर देख रहा था। जिस बमबारी पर कोकुरा का नाम दर्ज किया गया था उस बम ने नागासाकी को बर्बाद कर दिया। कोकुरा के लोग राहत तो महसूस कर रहे थे पर वो नागासाकी को लेकर दुखी भी थे और उसके सहानुभूति भी दिखा रहे थे। दोनों शहरों के बीच मैत्रिपूर्ण संबंध डेकेड्स से गहरे हैं और दोनों का भाग्य किस कदर जुड़ा है ये वहां के लोग मानते भी हैं।