26 जनवरी का दिन भारतवासियों के लिए काफी खास होता है। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था और इसी के बाद से हर साल देश में इस दिन रिपब्लिक डे मनाया जाता है। हर देशवासी के लिए ये दिन बेहद खास होता है। 26 जनवरी को राष्ट्रीय अवकाश होता हैं। इस दिन लोग अपने घरों पर परेड अपने घरों पर टीवी के आगे देखते हैं। वैसे तो ये बात 26 जनवरी से जुड़ी कई बातें आप जानते होंगे। लेकिन हम आपको आज ऐसी कुछ रोचक बातों के बारे में बताने जा रहे है, जिसके बारे में आपको शायद ही मालूम होगा…
26 जनवरी का खास महत्व
सीधे सरल शब्दों में समझा जाए तो भारत में 26 जनवरी 1950 से कानून राज की शुरुआत हुई थी। इसे भारत का राष्ट्रीय त्योहार कहा जाता है। हर साल इस दिन कोई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष भारत के मुख्य अतिथि के तौर पर इस सेलेब्रेशन में शरीक होते हैं। इंडिया गेट पर अलग अलग राज्यों से निकली झांकियों का नज़ारा देखते ही हर भारतवासी का दिल गर्व से फूला नहीं समाता है। इस दिन राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी जाती है। साथ ही गगन में वायुसेना के करतब देख एक पल के के लिए भी पलक झपकाने का दिल नहीं करता है। हालांकि इस साल कोरोना महामारी के बीच रिपब्लिक डे मनाया जा रहा है। जिसके चलते कई बदलाव देखने को मिलेंगे।
पहले इस दिन मनाया जाता था स्वतंत्रता दिवस
इस बात से बहुत कम ही लोग वाकिफ होंगे कि 1947 से पहले काफी सालों तक इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। दरअसल साल 1929 के दिसंबर महीने में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मीटिंग में एक प्रस्ताव पास हुआ। पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में इस प्रस्ताव के मुताबिक अगर ब्रिटिशर्स 26 जनवरी 1930 तक भारत को अधिराज्य का दर्जा नहीं दिया गया तो भारत खुद को पूरी तरीके से आजाद घोषित कर देगा। इस प्रस्ताव के बावजूद भी ब्रिटिश सरकार ने 1930 तक ऐसा नहीं किया। जिसके बाद पूर्ण आजादी की लड़ाई के बीज वहीं से पड़ने शुरू हुए और सक्रिय आंदोलन शुरू किया गया। नतीजन 26 जनवरी 1930 के दिन नेहरू ने रवि नदी के किनारे तिरंगा फहराया और भारत ने इसी दिन अपना पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया। 1947 तक आजादी मिलने से पहले भारत का स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी को ही मनाया जाता रहा था।
इतने दिन में तैयार हुआ था भारत का संविधान
15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश राज से मुक्त हुआ जिसके बाद देश में आजादी का त्यौहार मनाने की तारीख बदल दी गई। बता दें कि 26 नवंबर 1949 में ही हमारा संविधान बनकर तैयार हो गया था लेकिन इसे लागू 26 जनवरी 1950 को किया गया, जिसके बाद से इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। भारत की आजादी के बाद संविधान सभा गठित की गई। हालांकि इसका काम 9 दिसंबर 1946 से शुरू हो चुका था। इस लंबे चौड़े संविधान को बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा था। और संविधान सभा ने दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान अपने अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को 1949 में सौंप दिया था। संविधान के निर्माण के समय कुल 114 दिनों की बैठक हुई थी। जिसके बाद सभा के 308 सदस्यों ने अनेक सुधारों और बदलावों के बाद 24 नवंबर 1949 में इसकी दो हस्तलिखित कॉपियों पर हस्ताक्षर किए।
क्या है डॉ. भीमराव अंबेडकर का संविधान से कनेक्शन ?
जब भी संविधान का नाम लिया जाता है, तो उसका जिक्र करते समय एक शख्स का नाम बार बार लिया जाता है। उस शख्स का नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर है। उन्हें संविधान का पिता कहा जाता है। दरअसल संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों में जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद समेत अंबेडकर का नाम भी शामिल था। ये सभी सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों ने चुने थे। इस संविधान सभा में कुल 22 कमिटी थी जिसमें सबसे अहम प्रारूप कमिटी यानि ड्राफ्टिंग कमिटी थी। इस कमिटी का काम पूरे संविधान का निर्माण और उसे लिखना था। इसके अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। जिसके बाद से ही इन्हें संविधान के पिता का दर्जा दिया गया।