पंजाब की सस्सी-पुन्नू की प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों पर अटूट प्यार और त्याग को दिखाता है। सस्सी-पुन्नू का प्रेम अमर हो गया। चलिए आज हम इसी अमर प्रेम कहानी के बारे में जान लेते हैं…
भंबोर राज्य के राजा के घर सस्सी पैदा हुई और ये बच्ची काफी मन्नतों से पैदा हुई। इस बच्ची के बारे में जन्म होते ही ज्योतिषियों ने कहा था कि बच्ची बड़ी होकर अनोखी मोहब्बत करेगी। ऐसा सुनते ही राजा और उसका परिवार परेशानी से भर गया और सस्सी को मारने का हुकुम दे दिया, लेकिन राज मंत्रियों ने सोने से भरी संदूक में बच्ची को डालकर नदी में बहा देने का सुझाव दे दिया।
तूफानी नदी से बची बच्ची एक धोबी के हाथ जा लगी। इतना सारा सोना और साथ में बच्ची पाकर तो धोबी बहुत खुश हुआ। बच्ची चंद्र कला के जैसी बहुत सुंदर थी तो नाम रख दिया गया सस्सी। सस्सी बड़ी हुई तो भंबोर के राजा को किसी ने बताया कि धोबी के घर एक सुंदर लड़की है जो महल की शोभा बन सकती है। फिर क्या था धोबी के घर अधेड़ राजा ने सस्सी के लिए विवाह का प्रस्ताव भेज दिया। सस्सी को पालने वाला उसका पिता राजा के सामने गया और सस्सी के जन्म समय की ताबीज दिखाई जिससे राजा को बर्सों पहले की सारी बात याद आ गई और अपने किये पर शर्म भी।
सस्सी को जन्म देने वाली मां सस्सी को महलों में लाना चाहती थी, लेकिन सच का पता लगने पर सस्सी ने महल में आने से मना कर दिया। ऐसे में राजा ने धोबी के छोटे से घर को पूरा का पूरा महल में तब्दील करा दिया, लेकिन वक्त फिर बदला और एक दिन सस्सी ने गुजरते सौदागरों के पास पुन्नू की तस्वीर देख ली और उसी समय अपना दिल हार गई। वो पुन्नू से मिलना चाहती थी। वहीं इन सबसे पुन्नू अनजान था, लेकिन आखिर में सस्सी ने पुन्नू का पता लगा ही लिया।
दरअसल, हुआ ये कि सौदागरों ने इनाम के लालच में सस्सी से कहा की वो पुन्नू के भाई है। ऐसे में सस्सी ने सबको गिरफ्तार कर लिया और कहा कि उसको पुन्नू चाहिए तो वो सबको छोड़ देगी। उधर, जैसे तैसे सौदागर पुन्नू को भंबोर अपने साथ ले आए। इसी दौरान सौदागरों ने अपने ऊंट आजाद खुल दिए जो सस्सी के बाग में जाकर पूरा बाग उजाड़ दिया। ऐसे में गुस्साई सस्सी ने काफिले को खुब सुनाया। पुन्नू इन सबसे बेखबर था। बाग में लगे एक सेज पर जाकर लेट गया और जब आंख खुली तो सामने सस्सी दिखी और दोनों की नजर मिली और प्यार हो गया।
सस्सी पुन्नू के प्रेम में इस कदर पड़ गए की दस दिन बीत गया और पता भी नहीं चला। उधर, पुन्नू की मां पुन्नू याद करके बेहाल थी, लेकिन पुन्नू मां के पास लौटने को राजी नहीं थी। ऐसे में उसके आईयों ने पहले तो पुन्नू को खूब शराब पिलाई और फिर बेहोश होने के बाद उसे साथ घर ले गए। पुन्नू से अलग होकर सस्सी का रो रोकर बुरा हाल था। सस्सी ठान चुकी थी कि उसे पुन्नू के पास जाना है जिस पर उसकी मां ने उसे रेगिस्तान का डर दिखाया, लेकिन सस्सी पर इसका कोई असर नहीं हुआ और वो पुन्नू की तलाश में निकल गई नंगे पांव रेगिस्तान में।
चिलचिलाती धूप, धधकती रेत से भी वो नहीं डरी और भयानक लू के थपेड़ों ढेलते झेलते जख्मी हो गई। एक भेड़ें चराने वाले ने उसे इस हाल में देखकर डर गया और छिप गया इतने में मदद के लिए पुकारती हुई सस्सी की जान वहीं चली गई। दूसरी तरफ पुन्नू होश में जब आ गया तो वो सस्सी से मिलने के लिए तड़प गया। वह भी सस्सी को खोजता हुआ रेगिस्तान की तरफ दौड़ा जहां सस्सी बेजान पड़ी ती और चरवाहा बैठा था। उसी चरवाहे ने पुन्नू को सस्सी की रेतीली समाधि को लेकर सबकुछ बताया जिसके बाद पुन्नू ने भी वहीं समाधि ले ली।