बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर धर्म को लेकर क्या सोचते थे, इसे समझना होगा। ये तो सब जानते हैं कि अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था, लेकिन धर्म को लेकर उनके विचार क्या थे इस पर बात कम की जाती है। इसकी दो वजह हो सकती है… पहला ये कि लंबे अरसे से भारत में धर्म पर विचार तो हो रहा है लेकिन वो विचार ‘हिन्दू-मुस्लिम प्रश्न’ पर आ चुका है। दूसरा ये कि कई कई बार धर्म को नजरअंदाज भी कुछ लोग करते आए है। वो मानते हैं कि धर्म, व्यक्ति का निजी मामला है और होना भी चाहिए और सोशली इस पर विचार करने का कोई मतलब नहीं है।
कुछ लोग तर्क देते हैं कि धर्म एक फरेब है, जो असली आर्थिक हितों को समझने से रोक लगाता है, लेकिन असल में धर्म को लेकर एक बात नजरअंदाज ही नहीं सकते कि आज भी हमारी पॉलिटिक्स में और आम लोगों की रोज की जिंदगी में धर्म अहम है।
जहां तक अंबेडकर की बात की जाए, तो वो धर्म के कटु और ना डरने वाले आलोचक रहे थे और उन्हें धर्म की गहरी से समझ थी। ये वो दौर था जब सोशली एक्टिव लोग गांधी की तरह ऐसा मानते थे कि सभी धर्म सच्चे हैं साथ ही हमारे सम्मान करने के लायक। अब ऐसे दौर में धर्मी की आलोचना तो एक बड़ा कदम था अंबेडकर के लिए। अंबेडकर इस बात से सहमत नहीं थे कि हर एक धर्म अच्छा है।
जब हिन्दू धर्म को उन्होंने असमानता का धर्म करार दिया क्योंकि जाति को पवित्र दर्जा देता है वो। दरअसल, अंबेडकर ने धर्म को खारिज नहीं किया था बल्कि बौद्ध धर्म अपनाते हुए वो एक ज़्यादा न्यायपूर्ण और सच्चे धर्म की तरफ बढ़ने लगे थे। एक देखने वाली बात ये भी है कि अंबेडकर ने धर्म को सिर्फ और सिर्फ पहचान के तौर पर देखने का तो कड़ा विरोध किया ही था।
अंबेडकर जिस दौर के थे उस वक्त धर्म के बारे में आलोचना करना काफी मुश्किल था। क्योंकि तब धर्म की criticize का मतलब था राष्ट्रीय संस्कृति की criticize करना। इस पर भी अंबेडकर अपनी बात से डिगे नहीं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि ऐसा राष्ट्रवाद, जो देश के लोगों के एक बड़े तबके यानी कि अछूतों को अलग-थलग करे और उनको प्रताड़ित करें वो राष्ट्रवाद कहलाने के लायक ही नहीं। इतनी ही नहीं अंबेडकर का तो ये तक तर्क था कि धर्म सिर्फ सांस्कृतिक पहचान तक ही सीमित करना उसे उसके असल महत्व से दूर कर देना है।
अंबेडकर कहते थे कि धर्म का इतिहास, क्रांतियों का इतिहास है। वो कहते थे कि धर्म को समझना है तो पूरी दुनिया में हमें उसमें आए भारी बदलाव पर गौर करना होगा। अंबेडकर के मुताबिक धर्म के इतिहास में अगर सबसे अहम क्रांति को देखें तो वो थी ईश्वर का अविष्कार। अंबेडकर की सोच का सबसे दिलचस्प पहलू वो भी धर्म को लेकर यही था।