डॉ. भीमराव आंबेडकर…जिनके हर पहलू को लेकर अपने विचार थे। चाहे वो संविधान हो या धर्म या फिर दलितों के उत्थान को लेकर उनके उठाए गए कदम। हर एक मुद्दे को लेकर उनकी अपनी सोच और अपना नजरिया था। तो एक सवाल उठता है कि हिन्दू धर्म और मनुवाद को लेकर क्या सोचते थे बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर?
बाबा साहेब अंबेडकर को लेकर जितनी भी जानकारियां मिलती है उससे यही पता चलता है कि शायद बाबा साहेब को हिन्दू धर्म में अच्छाई जैसे कोई भी चीज नहीं दिखती हो। ऐसा इस वजह से लगता है क्योंकि मनुष्यता या मानवता के लिए इसमें कोई जगह नहीं दिखती। अपनी एक बुक ‘जाति का उच्छेद’ में बाबा साहेब ने दो टूक लिखा कि ‘हिन्दू जिसे धर्म कहते हैं, वो कुछ और नहीं, आदर्शों और प्रतिबन्धों की भीड़ है।’
वो कहते हैं कि ‘हिन्दू-धर्म वेदों और स्मृतियों, यज्ञ-कर्म, सामाजिक शिष्टाचार, राजनीतिक व्यवहार और शुद्धता के नियमों जैसे अनेक विषयों की खिचड़ी संग्रह मात्र है। यदि कुछ थोड़े से सिद्धान्त हिंदुओं मे पाए भी जाते हैं तो उनकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका हिन्दुओं के जीवन में नहीं पाई जाती।’ बाबा साहेब ने अपनी इसी बुक में ये तक लिख डाला कि ‘यदि मुसलमान क्रूर थे तो हिन्दू नीच रहे हैं और नीचता, क्रूरता से भी बदतर गुण होता है।’
अंबेडकर ने सीधे सीधे लिखा कि ब्राह्मणों ने क्षत्रियों को बेवकूफ बनाया और इन दोनों ने वैश्यों को अपने आश्रित बना लिया। लेकिन तीनों ने मिलकर शूद्रों के दबाए रखना तय किया। शूद्रों को सम्पत्ति जोड़ने से रोका गया, क्योंकि सम्पत्ति पाकर कहीं ऐसा न हो कि वो तीनों वर्गों से स्वतंत्र हो जाएं। उसे ज्ञान पाने से रोका गया, क्योंकि कहीं अपने हितों के प्रति सजग न हो जायें। उसे हथियार रखने पर रोक लगाई गई कि कहीं वो व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह न कर बैठे।
ये सारा स्टेटमेंट बाबा साहेब का है। जो उन्होंने अपनी बुक में लिखी है। ये तो हुई हिंदूवाद को लेकर अंबेडकर की सोच, लेकिन मनुवाद का भी वो जिक्र करते हैं। अपनी बुक ‘प्राचीन भारत में क्रान्ति और प्रतिक्रान्ति’ और ‘हिन्दू नारी का उत्थान और पतन’ में लिखते हैं कि ‘मनु स्त्री का स्थान शूद्र के स्थान के समान मानता है। वेदों का अध्ययन स्त्री के लिए मनु द्वारा उसी प्रकार वर्जित किया गया है, जैसे शूद्रों के लिए।’
इस बात की पुष्टि के लिए मनु के श्लोकों का जिक्र करते हैं। मनु लिखता है कि- ‘नास्ति स्त्रीणां क्रिया मन्त्रैरिति धर्मे व्यवस्थितिः। निरिन्द्रिया ह्यमन्त्राश्च स्त्रियोऽनृतयिति स्थितिः। जिसका मतलब है कि स्त्रियों को वेद पढ़ने का कोई हक नहीं ऐसे में लिए वेद-मन्त्रों के बिना ही उनके संस्कार किए जाते हैं। क्योंकि वेद को जानने का हक स्त्रियों को नहीं है ऐसे में उनको धर्म का कोई ज्ञान नहीं होता। स्त्रियां वेद का अध्ययन नहीं कर सकतीं ऐसे में वो वैसे ही अपवित्र होती हैं जैसे असत्य अपवित्र होता है।
बाबा साहेब ने इस बारे में आगे लिखा है कि ‘मनु जितना शूद्रों के प्रति कठोर है, उससे तनिक भी कम स्त्रियों के प्रति कठोर नहीं है।’ अब तक की जैसी जानकारी मिली है जिनता हमने जाना उससे तो यही पता चलता है कि डॉ. आंबेडकर किस हद तक ब्राह्मणवाद-मनुवाद के पोषक हिन्दू धर्म से नफरत किया करते थे।