अमित शाह 22 अक्टूबर 1964 को मुंबई के एक संपन्न गुजराती परिवार में जन्मे थे। बीजेपी के अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद उन्होने पार्टी की पूरी तस्वीर ही बदल कर रख दी है। तीन तलाक, कश्मीर से आर्टिकल 370 का रद्द होना ये कुछ ऐसे ऐतिहासिक फैसले हैं जिनको अमल करने के पीछे का मास्टरमाइंड शाह को ही माना जाता है। आश्चर्यजनक बात तो ये है कि राजनीति की ये अद्भुत कला उन्हें विरासत में नहीं मिली। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने सही समय पर अचूक दांव खेल कर बड़े बड़े राजनीतिज्ञ के हौसले पस्त कर दिए है। तो आइये जानें सियासी अखाड़े के इस धुरंधर का बेहतरीन सफर।
ऐसा रहा बचपन
16 साल की उम्र तक शाह अपने पैतृक गांव गुजरात के मानसा में रहे और स्कूल की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वो अपने परिवार समेत अहमदाबाद शिफ्ट हो गए। उन्होंने अहमदाबाद से बायोकेमिस्ट्री में बीएससी करी है। इसके बाद युवावस्था में ही पारिवारिक जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने खुद को अपने पिता के प्लास्टिक के पाइप के कारोबार में व्यस्त कर लिया। वक़्त तेज़ी से आगे बढ़ा और शाह को स्टॉक मार्केट की ओर खींच लाया। जहां उन्होंने शेयर ब्रोकर के रूप में काम किया। लेकिन वक़्त को तो कुछ और ही मंजूर था। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा और फिर वहीं हमेशा के लिए पैर जमा लिए।
कुछ यूं हुई पीएम मोदी से मुलाकात
साल 1980 में 16 साल की उम्र में वे RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) से जुड़ गए थे और ABVP (अखिल भारतीय विद्या परिषद्) के कार्यकर्ता के तौर पर उभरे थे। अपनी सीखने की ललक और कार्यक्षमता के चलते उन्हें मात्र दो साल में एबीवीपी की गुजरात इकाई का जॉइंट सेक्रेटरी बना दिया गया। साल 1986 में वे पीएम मोदी से मिले और यही मुलाकात दोनों की पक्की यारी में तब्दील हो गई।
चुनावों का संभाला जिम्मा
1987 में शाह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की और बीजेपी की युवा इकाई भारतीय जनता युवा मोर्चा में शामिल हो गए। 1997 में उनकी BJYM के कोषाध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की गई। और 1989 में वे बीजेपी अहमदाबाद शहर के सचिव बनाये गए। शाह को राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रचार प्रसार के लिए भी याद किया जाता है। उसी दौरान उनकी लाल कृष्ण आडवाणी से मुलाकात हुई थी। आडवाणी उस समय गुजरात के गांधीनगर से लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरे थे। शाह ने उस समय चुनाव संयोजक की पहली बार भूमिका निभाई और 2009 तक लगातार उठाते रहे।
वित्त निगम को घाटे से उबारा
1995 में शाह गुजरात प्रदेश वित्त निगम के अध्यक्ष बने। अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने न सिर्फ इसके मुनाफे में 214 प्रतिशत की वृद्धि की, बल्कि कार्यकाल के दौरान निगम को घाटे से बाहर भी उबारा। उनके अध्यक्ष रहते हुए पहली बार पत्ता खरीद फरोख्त, कार्यशील पूंजी अवधि लोन और ट्रक ऋण शुरुआत की गई। 36 साल में शाह अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक के युवा अध्यक्ष बने। यहां भी उन्होंने अपने पद की महत्वता कायम रखते अपनी पूरी तरीके से निभाई। और महज एक साल के भीतर 20.28 करोड़ का घाटा पूरा किया।
ऐसे बने पार्टी के फेवरेट
साल 1997 में पहली बार वो चुनावी लड़ाई में उतरे और सरखेज विधानसभा से बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर विधायक पद के लिए नामांकन भरा। और भारी भरकम वोटों से विजयी हुए। और ये जीत का अंतर हर चुनाव में लगातार बढ़ता ही गया। उनकी अद्वितीय रणनीति के चलते उन्हें 2001 में बीजेपी की राष्ट्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ का संयोजक नियुक्त किया गया। इस दौरान उनकी कार्यकुशलता को सबसे ज्यादा लाइमलाइट मिली जिसके चलते उन्हें पितामह की उपाधि मिल गई।
वर्तमान में है केंद्रीय ग्रहमंत्री की कमान
शाह की मेहनत और दृणता को देखते हुए बीजेपी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष से उन्हें इस साल केंद्रीय गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी अपने बेहतरीन नेतृत्व के चलते उन्होंने पार्टी को यूपी की 80 में से 71 सीटों पर जीत दिलवाई थी। ये कहना बिलकुल भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 2019 में बीजेपी की सत्ता वापसी का कहीं न कहीं श्रेय अमित शाह को भी जाता है।