बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर हमेशा ही इस कोशिश में लगे रहे कि मनुष्य मनुष्य के बीच का जो भेद है वो खत्म हो जाए। इसके लिए उन्होंने उम्रभर संघर्ष किया। एकात्मता की बात होती है ऋग्वेद में है, या फिर गीता में अर्जुन को जो बातें भगवान श्रीकृष्ण ने समझाई उसी बात को बाबा साहेब ने ब्राह्मवाद के नाम पर समझाने की कोशिश की। ऐसा लगता है कि उनका अभियान ब्राह्मणों के अगेंट्स था। फिर जब अंबेडकर के विचारों को गहराई से समझा जाता है तो फिर एक बात स्पष्ट हो जाती है कि उन तथाकथित ब्राह्मणों के लिए उनका विरोध या गुस्सा प्रति था, जो मनुष्य और मनुष्य के बीच में एक भेद को पैदा करते हैं, उनको एक दूसरे के लिए अछूत बनाते हैं। आज हम ये जानेंगे कि ब्राह्मणवाद पर आखिर क्या सोचते थे बाबा साहब अंबेडकर…
महार परिषद में डॉक्टर अंबेडकर ने क्या कहा ये जानना होगा। दरअसल उन्होंने कहा था कि ये दृष्टिकोण प्रमादपूर्ण है कि अस्पृश्यों के सारे ब्राह्मण शत्रु हैं। ब्राह्मणों की उस वृत्ति से आपत्ति है जो ऐसा मानती है कि वो बाकी की जातियों से उच्च और श्रेष्ठ हैं। अंबेडकर ने कहा कि उन ब्राह्मणों का हम स्वागत करते हैं जो ब्राह्मणवादी वृत्ति से मुक्त हैं, जन्म का नहीं गुणवत्ता का महत्व है।
जो बात अपने महार परिषद के संबंध में डॉक्टर अंबेडकर ने कहीं उसके जरिए तब उन्होंने समझाया था कि व्यक्ति का विभाजन नहीं बल्कि व्यक्ति का महत्व कर्म के आधार पर ही कम होगा या फिर बढ़ेगा। ये तो एक मौका था जब उन्होंने ऐसी बातें कही, लेकिन अपनी बात रखने में वो कभी भी पीछे नहीं रहते थे।
जब 12 फरवरी 1938 को मनमाड़ में उन्हें एक और मौका मिला दलित रेल्वे कामगारों के बीच बोलने का, तो उन्होंने कहा कि मैं जब कहता हूं कि ब्राह्मणवाद शत्रु से सामना करना है तो उसका मतलब गलत नहीं लेना चाहिए। उन्होंने इस बारे में कहा था कि मैंने ब्राह्मणवाद शब्द को यूज ब्राह्मण जाति की सत्ता, उसके अधिकार और हित के संबंध के बारे में नहीं किया है। मेरे ब्राह्मणवाद शब्द का मतलब है स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व भाव का विरोध करने की मानसिकता।
इन बातों से जो एक बात साफ हो जाती है वो ये कि उनका अभियान एक समुदाय के उत्थान का तो था लेकिन तय ये भी होता है उनके विचारों से कि उनका अभियान किसी के विरुद्ध नहीं था। हमेशा ही अंबेडकर समाज में समरसता और बराबरी लाने की कोशिश करते रहे। उनका विरोध व्यक्ति से तो नहीं था, लेकिन हां मानसिकता से जरूर था। अंबेडकर किसी जाति के अगेंट्स तो नहीं थे लेकिन जाति को जरिया बनाकर शोषण करने या फिर एक समुदाय को दरकिनार करने के बिल्कुल अगेंट्स थे। हिंदू समाज में रहने वाले हर एक शख्स को वे एकसमान अधिकार, एकसमान सम्मान और प्रगति के एकसमान मौके देने की बात किया करते।