आपको अपने आसपास ऐसे बहुत कम ही लोग दिखाई देंगे जिन्हें चॉकलेट नहीं पसंद होगी. ऐसे लोगों का मिलना मुश्किल ही नामुमकिन है. मतलब साफ है कि ज्यादातर सभी लोग चॉकलेट खाना पसंद करते हैं. जिस वजह से चॉकलेट की भारत तो क्या पूरी दुनिया में काफी खपत है. 2002 से 2013 तक का डेटा देखें तो चॉकलेट की 1.64 लाख टन की खपत उस दौरान 2.28 लाख टन तक पहुंच चुकी थी. और वर्तमान समय तक अनुमान है कि ये आंकड़ा निश्चित ही बढ़ चुका होगा. ये इजाफा करीब 13% की दर से है. लेकिन आपको ये जानकर काफी दुःख होगा कि अब ये चॉकलेट धीरे धीरे ख़त्म हो रही है और एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब ये आपको कभी टेस्ट करने को न मिले.
ये है मुख्य वजह
दरअसल ऐसा ग्लोबल वार्मिंग के चलते बताया जा रहा है. जैसे जैसे ये ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है, वैसे वैसे इसके ख़त्म होने की आशंका भी तेज होती जा रही है. यूएस नेशनल ओसिएनिक एंड एटमोसफेयरिंक एडमिनिस्ट्रेश की रिपोर्ट के मुताबिक अगले आने वाले 40 सालों में चॉकलेट का नामो-निशां खत्म हो सकता है. क्योंकि चॉकलेट के सोर्स कोको के फलने फूलने के लिए 20 डिग्री से कम तापमान होना जरूरी है. लेकिन बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के चलते ऐसा आने वाले सालों में असंभव सा दिख रहा है.
चॉकलेट उत्पादन खतरे में
अगर ऐसी ही स्थिति बरकारार रही तो चॉकलेट उत्पादन धीरे धीरे खतरे में पड़ता चला जाएगा. इससे आने वाले सालों में चॉकलेट मैन्युफैक्चरर्स को काफी नुकसान होने की उम्मीद है. ये सब बढ़ते प्रदूषण, आबादी और बदलते भौगोलिक समीकरणों के चलते हो रहा है और आने वाले 30 सालों में धरती का तापमान करीब 2.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की संभावना है. इसका सबसे बड़ा असर चॉकलेट पर पड़ेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि चॉकलेट इंडस्ट्री के पास बड़ी मुश्किल से 10 साल बचे हैं. उसके बाद ये सारा धंधा चौपट हो जायेगा. अगर अच्छी बारिश होती है तो इससे जलस्तर सुधरेगा और बढ़ते तापमान पर लगाम लगेगी.
कहां सर्वाधिक उगाई जाती है कोको
- कोटे डी’आइवर- 201 करोड़ किग्रा
- घाना – 17.9 करोड़ किग्रा
- इंडोनेशिया- 29 करोड़ किग्रा
- इक्वाडोर- 27 करोड़ किग्रा
- कैमरून- 24 करोड़ किग्रा
- नाइजीरिया- 22.5 करोड़ किग्रा
- ब्राजील- 18 करोड़ किग्रा
- पापुआ न्यू गिनी- 04 करोड़ किग्रा
ये आंकड़े 2016-17 के हैं. इनका स्त्रोत स्टैटिस्टा है.