भारत में संस्कृत का हिंदी से भी ऊपर स्थान है. पुराणों और एतिहासिक ग्रंथों में संस्कृत भाषा को उच्च दर्जा मिला हुआ है. इसे देवलोक की भाषा माना जाता है. लेकिन पश्चिमी सभ्यता के देश में पांव पसारने के बाद से ही ये भाषा धीरे धीरे कहीं विलुप्त सी होती दिख रही है. मौजूदा समय में देश में 22 भाषाओं में संस्कृत सबसे कम बोली जाने वाली भाषा है. लेकिन अभी तक देश में इसके वर्चस्व को कायम रखने वाले कई ऐसे लोग जिंदा है. इसी कड़ी में महादेव की नगरी काशी में एक वकील है जो पिछले 42 सालों से संस्कृत में दलीलें दे रहे हैं.
1978 मे छेड़ी थी मुहिम
ये बात आपको भले ही थोड़ी चौकाने वाली लगे पर बिलकुल सच है. वाराणसी के इस वकील का नाम आचार्य श्याम उपाध्याय है. ये देश के इकलौते ऐसे वकील हैं जो अपनी दलील संस्कृत भाषा में देते हैं. कोर्ट में होने वाली सारी गतिविधियां यानि पत्र लिखने से कोर्ट में बहस तक की सभी चीजें वे संस्कृत में ही देते हैं. 1978 में उन्होंने इसकी शुरुआत की थी और तब से अब तक वे अपने इस कदम से पीछे नहीं हटे हैं.
बचपन से ही ठान ली थी बात
इस बारे में मीडिया से बात करते हुए आचार्य श्याम उपाध्याय ने बताया कि उनके पिता ने बचपन में उन्हें बताया था कि कचहरी का सारा कामकाज उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी में ही होता है. इसमें संस्कृत भाषा का कहीं दूर दूर तक प्रयोग नहीं होता. जिसके बाद ही उन्होंने वकील बनकर इस भाषा को न्याय दिलाने की ठान ली थी. उनका कहना है कि अब तक वे हजारों मुक़दमे संस्कृत भाषा में ही लड़ चुके हैं. और जीत भी चुके हैं.
जजों को आती है काफी दिक्कतें
जाहिर है ये भाषा आम नहीं है तो उपाध्याय को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा. इस बारे में किस्से बताते हुए श्याम बताते हैं कि शुरुआती दिनों में तो मुवक्किल के उनके द्वारा लिखे गए कागजात को देखकर जज हैरान हो जाते थे. हालांकि किसी नए जज के आने पर आज भी ऐसा होता है. जज को दलीलें सुनने में कठिनाई होने के चलते उन्हें अनुवादक की मदद लेनी पड़ती है. सिर्फ कोर्ट में ही नहीं वे आम बोलचाल भाषा में भी संस्कृत का ही इस्तेमाल करते हैं. उनकी कोशिश है कि संस्कृत भाषा को भी देश में खासी अहमियत मिलनी चाहिए.