मध्य प्रदेश का अलीराजपुर जिला एक ऐसा इलाका है जहां मूलभूत सेवाओं की सख्त जरूरत है। क्योंकि यहां गरीबी इस कदर फैल चुकी है कि लोगों को खाने के लिए खाना तो दूर की बात है जरूरी सामान भी नहीं मिल पा रहा है। नीति आयोग द्वारा वर्ष 2021 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भी अलीराजपुर भारत का सबसे गरीब जिला है। अलीराजपुर जिले की हालत इस हद तक खराब हो चुकी है कि यहां के लोगों को कई बार रोटी के साथ सब्जी की जगह पानी का सेवन करना पड़ता है क्योंकि उनके पास सब्जी खरीदने के लिए पैसे नहीं होते हैं। अलीराजपुर की बात करें तो ये मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। जिसका गठन 2008 में आदिवासी जिले झाबुआ से हुआ था। गुजरात की सीमा से लगा ये जिला अपने नूरजहां आम, रजवाड़ा किला, ब्रिटिश काल के ‘विक्टोरिया ब्रिज’ के अवशेष और स्वतंत्रता सेनानी व शहीद चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली होने के कारण मशहूर है। इतना सब होने के बाद भी यहां के हालात दयनीय हैं लेकिन ये हालात ऐसे क्यों हैं, आइए आपको विस्तार से बताते हैं।
अलीराजपुर की 90 प्रतिशत आबादी आदिवासी
अलीराजपुर की आबादी में लगभग 90% आदिवासी हैं। भील जनजाति यहां की अधिकांश आबादी का निर्माण करती है। राज्य के व्यावसायिक केंद्र इंदौर और इसके बीच की दूरी लगभग 200 किमी है। नीति आयोग के अनुसार, यह मध्य प्रदेश के बहुआयामी गरीबी सूचकांक में दूसरा सबसे गरीब और अभावग्रस्त जिला है। राज्य के औसत 70.06% की तुलना में, इसकी साक्षरता दर 37% है। हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में सबसे बड़ा आदिवासी मिशन घोषित किया है, फिर भी अलीराजपुर के अधिकांश निवासियों को सरकारी कार्यक्रमों तक पहुँचने में कठिनाई होती है। 1984 में स्थापित अलीराजपुर के भील आदिवासियों के एक व्यापारिक संगठन, खेदुत मजदूर चेतना संगठन (KMCS) के एक सामाजिक कार्यकर्ता शंकर तड़वाल के अनुसार, अब जिले में युवा और बूढ़े दोनों ही रहते हैं।
आजीविका के लिए गुजरात पलायन करते युवा
तड़वाल कहते हैं, “गुजरात में सभी वयस्क आजीविका कमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। आप इसे अलीराजपुर बस स्टैंड से दक्षिण गुजरात (210 किलोमीटर से अधिक दूर) के लिए रवाना होने वाली बसों में देख सकते हैं, जहाँ 56 सीटों वाली बस में 200 से अधिक लोग यात्रा करते हैं।” झाबुआ और अलीराजपुर तथा गुजरात सीमा पर कम से कम 50 ऐसे स्थान हैं जहाँ से हर घंटे गुजरात के विभिन्न शहरों के लिए बसें और अन्य वाहन निकलते हैं।
गुजरात में कर रहें हैं मजदूरी
अलीराजपुर निवासी केरा ने बीबीसी से बातचीत के दौरान बताया कि देश के इस हिस्से में रहने वाले लोगों का जीवन कितना कठिन है। उनका कहना है कि नदी पार के इलाकों में किसी भी तरह की बुनियादी सुविधा नहीं है। न सड़कें हैं, न बिजली और न ही स्कूल। वे अपने परिवार के साथ मजदूरी करने गुजरात जाते हैं। फिर जब कुछ पैसे बच जाते हैं तो वापस आ जाते हैं।
उन्होंने आगे कहा, “हम गुजरात में खेतों में मजदूरी करने जाते हैं। वहां एक से डेढ़ महीने रहते हैं और फिर घर लौट आते हैं। यहां हमें कोई मजदूरी नहीं मिलती। हमें बच्चों को भी साथ लेकर जाना पड़ता है। अपने बूढ़े पिता को घर पर अकेला छोड़कर।”
केएमसीएस द्वारा किए गए तथा इंदौर में आदिवासी अधिकार संगठन के कार्यकर्ता राहुल बनर्जी द्वारा लिखित एक अध्ययन में पाया गया कि 3 लाख से अधिक परिवारों के सदस्य हर साल लगभग 4 से 6 महीने के लिए अलीराजपुर से पलायन करते हैं, जिससे उन्हें प्रति वर्ष लगभग 40 करोड़ रुपये की आय होती है।
कृषि एक अभिशाप
कृषि राजस्व में कमी इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर पलायन का मुख्य कारण है; अलीराजपुर में, एक सामान्य परिवार के पास 0.25 हेक्टेयर भूमि है। बनर्जी ने कहा, “भूमि की गुणवत्ता ज़्यादातर खराब है, जबकि वन अत्यधिक क्षरित हैं, जिससे लघु वनोपज और पशुपालन से होने वाली अतिरिक्त आय कम हो गई है।” उन्होंने यह भी कहा कि “95.7% आबादी किसान या कृषि मज़दूर हैं।” विकास योजनाएँ कभी-कभी भ्रष्टाचार से भरी होती हैं और अनुचित तरीके से क्रियान्वित की जाती हैं।
दो साल में अलीराजपुर की तस्वीर बदलने का दावा
अलीराजपुर के जिला मजिस्ट्रेट राघवेंद्र सिंह ने बीबीसी द्वारा पूछे गए सवाल पर माना कि पलायन इसलिए होता है क्योंकि इलाके में पर्याप्त रोजगार के अवसर नहीं हैं। जिला मजिस्ट्रेट के अनुसार, पूरे जिले में बहुत कम उद्योग हैं। इसके अलावा, उनका दावा है कि अलीराजपुर की भूमि में उर्वरता की कमी के कारण लोग कृषि से बहुत अधिक लाभ नहीं उठा पाते हैं। उनके अनुसार, जिले की साक्षरता दर भी काफी पुरानी है। हालांकि, राघवेंद्र सिंह का दावा है कि जब अगले दो सालों में लोगों को नर्मदा नदी से पीने का पानी सीधे तौर पर मिलने लगेगा, तो अलीराजपुर के बारे में लोगों की धारणा बदल जाएगी।
सुविधाएं पहुंचाने में क्या है दिक्कत?
अलीराजपुर के जिला मजिस्ट्रेट के अनुसार, यह समस्या मुख्य रूप से उन दुर्गम गांवों में है, जो नर्मदा के डूब क्षेत्र में हैं। उन्होंने कहा, “यदि आप उत्तर भारत में गांवों की संरचना को देखें, तो यह पूरी तरह से अलग है।” इन बस्तियों में एक-दूसरे के पास बहुत ज़्यादा घर नहीं हैं। चूँकि एक स्थान पर दो घर हैं और दो घर काफ़ी दूरी पर स्थित हैं, इसलिए सरकारी अधिकारियों के लिए हर घर में सुविधाएँ प्रदान करना चुनौतीपूर्ण है।” इसके अलावा, उनका दावा है कि अन्य क्षेत्रों में भी तेज़ी से विकास हो रहा है, जिसकी झलक जिला कार्यालय से लेकर उन गांवों तक देखी जा सकती है जहाँ नई सड़कें बनाई गई हैं।
क्यों खाली हैं अलीराजपुर के गांव?
आदिवासी कार्यकर्ता नितेश अलावा का दावा है कि अलीराजपुर जिला कई मापदंडों पर देश के अन्य हिस्सों से काफी कमजोर है। इसके लिए वह जनप्रतिनिधियों के रवैये को जिम्मेदार मानते हैं। नितेश अलावा कहते हैं कि साल के ज्यादातर महीनों में अलीराजपुर के गांव खाली ही नजर आते हैं, जहां सिर्फ बुजुर्ग लोग ही नजर आते हैं।
वे कहते हैं, “पूरा गांव खाली हो जाता है। लोग अपने परिवार के साथ मजदूरी करने के लिए पलायन कर जाते हैं। ये लोग सिर्फ़ दो बार ही अपने गांव लौटते हैं। किसी पारिवारिक समारोह में या फिर दिवाली पर। खरीफ की फसल कटते ही गांव के लोग पलायन करना शुरू कर देते हैं।”
अलावा के अनुसार अलीराजपुर दो हैं, एक तो मुख्यालय और आसपास का इलाका जो ठीक-ठाक दिखता है और दूसरा वह जहां लोगों के पास पहनने के लिए कपड़े, मकान और अन्य बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं।
राजनेता भी नहीं देते खास ध्यान
बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले पांच सालों में राज्य में दो अलग-अलग सरकारें रही हैं: एक कांग्रेस पार्टी की अगुआई में और 15 महीने तक चली कमल नाथ की सरकार और दूसरी भारतीय जनता पार्टी की सरकार और शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में। हालांकि, यहां रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं और आदिवासी कार्यकर्ताओं का मानना है कि क्षेत्र के नेता वोट मांगने के लिए आते ही नहीं हैं, इसलिए ये चुनाव अलीराजपुर के लोगों के लिए कोई खास महत्व नहीं रखते। यहां के कई लोग तो यह भी याद नहीं कर पाते कि उनका हाल ही में किसी सरकारी अधिकारी से सामना हुआ था या नहीं।